भउजी हो !

का बबुआ ?

ई टोंटी के टोंट बन्द के क दीहल ? हम त टोंटी खुला छोड़ले रहीं कि तनी जमकल पानी बह जाव. बाकिर देखऽतानी कि केहू टोंटी बन्द क दिहले बा.

बबुआ सुनले नइखीं कि जल ही जीवन है, त केहू के लागल होखी कि पानी जियान होखत बा त ऊ बन्द कर दिहले होखी.

का भउजी, हमरा तहरा से ई उमेद ना रहुवे. हम त सोचले रहीं कि तूं त उड़त चिरई के हरदी लगावेला हऊ त हमरा बाति के मतलब निकहा समुझ लेबू. बाकिर देखऽतानी कि तूं शाब्दिक अर्थ ध लिहलू, वाचिक अर्थ बिसरा दिहलू.

ना बबुआ, हमहूं उहे कहनी ह जवन रउरा कहत रहीं. अब त भुला गइल बानी कि अलंकार कतने तरह के होला बाकिर कुछ-कुछ अबहियों ईयाद बा. जइसे कि –

“साहित्य में अर्थगत चमत्कार को अर्थालंकार कहते हैं। प्रमुख अर्थालंकार मुख्य रुप से तेरह हैं-उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, भ्रान्तिमान, सन्देह, दृष्टान्त, अतिशयोक्ति, विभावना, अन्योक्ति, विरोधाभास, विशेषोक्ति, प्रतीप, अर्थान्तरन्यास आदि।”

साफ-साफ बुझावऽ कि तूं बुझलू का ?

एगो टोंटी ह जवना के नाम इण्डी अलायंस रखाइल बा. केहू ओह टोंटी के खोल के खुला छोड़ दिहलसि. त इण्डी के सगरी पानिए बहल जात रहुवे. केहू ना केहू के त एह टोंटी के बन्द करही के रहल.

टोंटी खुलल कइसे ?

एक जने दोसरा जने के चिरकुट कह दिहलें त दुसरका के तिसरका हीत उनुका के ओखिलेश कह दिहलन. बस टोंटी अइसन खुलल कि लागल कि अब सगरी पानिए निकल जाई इण्डी के. त जेकर जान बसल बा एह तोता में ऊ गँवे से टोंटी खोले वाला के समुझवलसि कि – ऐ बबुआ, अतना लापरवाही ठीक नइखे. पानी बहि जाई त खाली हमरे दिक्कत ना होखी, तोहरो होखी. बबुआ बाति मान लिहलसि आ टोंटी बन्द कर दिहलसि.

वाह भउजी, कतना बढ़िया से समुझा दिहलू.

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कुछ त कहीं......

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