भउजी हो !

अब का हो गइल ? बाकिर आजु रउरा पहिले हमरा सवाल के जबाब दीं. अँजोरिया के एह स्तम्भ के प्रारुप देवर-भउजाई के बातचीत वाला काहें बनवनी ? मरद-मेहरारु, बाप-बेटा, चाचा-भतीजा, भाई-भाई, माई-बेटा वगैरह में से एकरे के काहें चुननी ? काका हो ! का हो ! काहें ना बनवनी ?

तोहार सवाल एकदमे जायज बा. तूंही बतावऽ एहमें से कवन प्रारुप अइसन हो सकत रहुवे जवना में राजनीति, परिवार, समाज वगैरह हर तरह के चरचा हो सकत रहे. देवर-भउजाई में जवन संबंध होला तवन अपना में माई-बेटा, मरद-मेहरारु, भाई-बहिन, प्रेमी-प्रेमिका वगैरह हर तरह के अपना में समाहित कइले रहेला. देवर-भउजाई का बीच हर तरह के चरचा – नीमन-बाउर, भेज-नॉनवेज, हँसी-मजाक, शिकवा-शिकायत – सब कइल जा सकेला आ कवनो चरचा अपना सीमा का बहरी ना मानल जा सके.

आजु रउरा हमार मन खुश कर दिहनी. हमरा अइसने जबाब के उमेदो रहुवे. हँ त अब सुनीं कि सतभतरी का लगे अइसन का होला जवन एकभतरी का लगे ना होखे ? सतभतरी का लगे उहे सब कुछ होला जवन एकभतरी का लगे रहेला. बस अन्तर एहसे पड़ि जाला कि मरद के कमजोरी के ऊ कइसन इस्तेमाल कर लेत बिया. मरद के कमजोरी एकभतरिओ के मालूम होला आ सतभतरिओ के. बाकिर एकभतरी ओह कमजोरी के लुका-तोप के राखेले जबकि सतभतरी ओहि कमजोरी का बल पर मरद के आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक हर तरह के दोहन कर लेले.
अब एही पर एगो सवाल हमरो ओर से. रउरा हर बाति में राजनीति काहें घुसेड़ दिहिलें ?

एहसे भउजी कि हर सवाल के कारण कवनो ना कवनो तरह से राजनीति के जोगदान रहेला. राजनीति हर सवाल के जबाब देबे के कोशिश करेले आ कई बेर ओह कोशिश का चलते कई गो नया सवाल पैदा हो जाले. आ रहल तोहरा सवाल के. त तुहूं जानते बाड़ू कि ई सवाल हम सुशासन बाबू भा पलटू चाचा के नयका बयान से उठवले रहीं. जेकर घर-दुआर, धन-दउलत सब बरबाद करे के किरिया खइले रहलन अब ओकरे से कहत बाड़न कि ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, छोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ न छोड़ेंगे !

अब जात-जात इहो सुनले जाईं कि मरद चाहे कतनो किरिया खा लेव कि फेर कबो एह छिनरी के फेर में ना पड़ब, बाकिर छिनरी जबे चाही तबे ओकरा के अपना मोह-पाश में बान्ह ली.

देखल जाव भउजी, ई बाति कतना आ कब ले साँच साबित होखत बा.

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कुछ त कहीं......

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