jayanti-pandey

– जयंती पांडेय

लस्टमानंद के नतिया लोअर इस्कूल में पढ़त रहे आ कहत रहे अंकल माने चाचा, मामा, फूफा. उनका आपन दिन याद आ गइल. उहो त इहे पढ़ल रहले. जब ऊ पढ़त रहले त अंग्रेजी पढ़ल मास्टर के बड़ा रुतबा रहे. ऊ मैट्रिक पास रहे बाकी लोग मिडल पास. अग्रेजी त करिया अक्षर भईंस बराबर. ऊ माट साहेब सिखवले कि ब्रोदर माने भाई, सिस्टर माने बहिन आ फादर माने बाबूजी. मदर माने माई आ अंकल माने चाचा वगैरह. माटसाहेब कई गो अउरी रिश्ता बतवले जेकरा हमनी का लईकाईं में घोट गईल रहनी सन. एकदमे से इयाद क लेले रहनी सन. अब ई बात माटसाहब ना कहले रहस कि अंकल के माने खाली चचे ना होला मामा, फूफा आ बड़का बाउजीओ होला. मौका परला पर दादो हो सकेला. ई बात दोसर बा कि ई अंग्रेजी सिखियो गइला पर हमनी का कबहुओं गांव के केहु आदमी के ब्रोदर, चाहे अंकल कहि के ना बोलवनी सन. काहे कि ऊ जमाना में गांव में केहु अंग्रेजी बूझे ना आ इहो डर रहे कि जे एकर कवनो गलती मतलब निकल गइल ओकरा मन में त अईसन कान अंईठी जइसे बोतल के ढकना अंईंठल जाला. लेकिन एइसे कवनो फरक पड़त नईखे.

जब बाबा लस्टमानंद शहर में अपना रिश्तेदार लोग के लगे जाले त देखे ले कि छोटे-छोटे लईकन में बड़कन के कवनो डर नईखे. अब एक दिन लस्टमानंद शहर के एगो कपड़ा के दोकान में कपड़ा कीने गइले त का देखऽतारे कि एगो जवान लईकी ओहिजा बिया आ टूल पर बइठल बिया. बाबा के देखते कहलस, अंकल आप यहां टूल पर बईठ जाइये. बाबा के चेहरा मोहरा के देख के लोग सहजे बाबा कहेला. ई सुंदरी के ऊ अंकल बुझातारे. लेकिन ज्ञान के कमी कबो कबो आदमी के गड़बड़ा देले. ऊ सोचे लगले कहीं अंकल माने बाबा त ना होखे. लेकिन का करसु? लईका रहित त टोकियो देते. ऊ त रहे लईकी. दोकान में बइठल उनका भारी लागे लागल. कसहुं दोकान से निकलले आ चलले भाग जइसे दिसा के जोर होखो. दिसा के जोर के बारे में बतावे के दरकार नईखे. दुनिया में शायदे केहु होखी जे परम उत्तेजना के ई घड़ी के परतियवले ना होखी. बहुत सोचला पर पता चलल कि ऊ बाबा कहि देत त ओकरा के लोग बहिन जी टाइप करार दे दीत एही से ऊ अंकल कहत रहे. माने लोग ओकरा फारवर्ड कहो. लेकिन तबो ई अंकल के प्राब्लम अबले ना समझ में आइल कि अपना गांव में चचा के जे अंकल कहेब त मामा के का कहेब?


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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2 thoughts on “ई अंगरेजी हऽ जहाँ चाचा मामा फूफा सभे के अंकल कहाला”
  1. ठिके कहतानी अंग्रेजी के बाते निराला बा….

कुछ त कहीं......

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