– जयंती पांडेय
नेताजी काल्हु दुपहरिया में गावें अइले. चुनाव के मौसम बा ना त ऊ अइसन जरत दुपहरिया में एसी से निकले वाला जीव ना हउअन. काम रहे सब वरकरन के चुनाव के पाठ पढ़ावल. वइसे त ऊ पिछलको चुनाव में ई पठवा पढ़वले रहले लेकिन डर रहे कि कहीं ई लोगवा भुला ना गइल होखे. तनिको रिस्क लेवे के पक्ष में ना रहले. अरे, दस पांच दिन के दौड़ धूप आ पूरा जिनगी के माजा.
गांव के बीच में बासदेव बाबा के बर के नीचे वरकर लोग जउरियाइल आ नेताजी बेखइले पीअले लगले कहे- जेकर लाठी होई ओही के भईंस होई. बे लाठी के ई दुनिया में केहु के गुजारा नइखे. एक जमाना रहे कि लोग गांधी जी अइसन अहिंसा अहिंसा कहत चले लेकिन अब त लोग लाठी ले के गांधी बाबा के मूर्ति पर माला चढ़ावेला लोग. ई जातना बुद्धिजीवी लोग बा ऊ लोग काल्हु ले अपना बुद्धि पर नाज करे लोग आ लाठी के हीन जाने लोग. आज तऽ हाल ई बा कि केहु बे लाठी के बात नइखे करत. अरे माइंड पर केहु राज करे ला त लाठिये करे ले. हम तऽ अपना वर्कर लोग से इहे कहब कि संसद से सड़क ले सब केहु लाठी ले के चलो. काल्हु ले जे बड़का माइंड वाला अपना के बूझे उहो आज हमार लाठी लेके रिरियाता कि नेताजी फलनवा विश्वविद्यालय के वी सी बनवा दऽ, मुअला के बादो लाठी ढोएब. भाई लोग, ई जमाना होखो चाहे ऊ जमाना बिना लाठी के भइसिया पानी में चल जाई. दूध तऽ नाहिये दी.
भाई लोग सांच कहीं त प्रेम आ चुनाव में कवनो आचार संहिता ना होला. ई जे आचार संहिता लागू भइल बा ऊ एकदमे बेकार बा. जइसे दांव लागी तइसे आगे बढ़े के होला. ई बात गिरहि बांध ल कि सांझ के जे माल खाई ऊ सबेरे जरूर भुला जाई पर सांझ के जे लाठी खाई ऊ सबारे त नाहिये भुलाई. नेताजी कहले कि जबे चुनाव लड़े के हमार उमिर भइल तबसे अबले चुनाव लड़त आवऽतानी. करिया बार अब उज्जर हो गइल, हर तरह के तजुर्बा कइनी. हम त इहे कहेब कि लाठी होई त जीत होई ना होई त हार. वर्कर लोग में बइठल लस्टमानंद नारा लगवले ‘लट्ठमेव जयते’.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
303 total views, 2 views today