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– जयंती पांडेय

अबहीं हाले में जवन चुनाव खतम भइल ओकरा खातिर नेताजी गांवे आइल रहले. गांव में लस्टमानंद समझवले – ‘नेता जी, हालत के चूल्हा पर राजनीति के रोटी मत सेंकऽ’. ऊ जिद करे लगले, ना हो हम त रोटी सेंकबे करब. उनका समझावल गइल कि भले समय के तावा पर रोटी सेंकत होखब लेकिन सांच के रोटी सेंकल आ तावा पर से फुला के उतारल बड़ा कठिन काम बा. तहरा बस के रोग नइखे. मानऽ कि गैस महंग हो गइल बा पर अतनो ना कि तू लकड़ी गोइठा पर रोटी सेंके लागऽ.

नेता जी के मन ई आइडिया जम गइल. सोचे लगले कि जे ऊ चूल्हा पर से रोटी जनता के सामने उतार दिहले त कहीं अइसन ना होखो कि सरकारी पर्टियो जनता के नजर से उतर जाउ. पारंपरिक उर्जा स्रोत जइसे लकड़ी-गोइठा के चूल्हा से रोटी उतारे खातिर जमीन से जुड़े के होई. उनका लस्टमानंद इयाद परवले कि तीस बरिस पहिले जब चुनाव जीत के गइले तबसे जमीन पर नइखन बइठल. अब अइसन डील डौल हो गइल बा कि जमीन पर बइठल मुश्किल हो गइल बा.

रामचेला कहले, अरे नेता जी रोटी सेंके के काम भौजी क देस आ ऊ ओहिजा खड़ा खड़ा रोटी खा के देखा देस कि ई असली बा त ओहु से काम चल जाई. लेकिन भौजाई कवन ठीक बाड़ी. तीस बरिस पहिले रोटी सेंकले रहली तब से अब ले ना क पवली. अब जे मेहरारू विधान सभा के चुनाव लड़े के जोगाड़ में होई ऊ रोटी सेंके जाई!

अब कहीं मोका हाथ से ना निकल जाउ इहे सोच के ऊ हरान रहले आ चक्कर में रहले कि रोटी सेंक लियाउ. ई विचार मन में आवते उनकर गाल फूल के तावा पर फूलल रोटी अस हो गइल.

अतने में केहु बतावल कि ऊ जे लकड़ी गोइठा पर रोटी सेंकि लिहले त जनता के सामने एगो सस्ता विकल्प आ जाई आ महंगाई के आग के धाह कम लागी. सरकार चैन से बइठ जाई.

अब नेता जी लवटि गइले. लस्टमानंद के गांव में चाहियो के रोटी ना सेंक पवले. अइसन पहिलका बेर भइल. आ नेता जी के अफसोस रहे कि ना बेसी त गांव से कवनो मेहरारू के पोल्हा भरमा के ले अइतीं त रोटी सेंके के काम त आइत.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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By Editor

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