– जयंती पांडेय
अभी अभी महात्मा गांधी के जनम दिन गुजर हऽ. राजघाट पर बड़े बड़े नेता लोग ना जाने कवन कवन किरिया खाइल लोग. एही में से एगो बड़हन नेता के जे रामराज पार्टी के रहे. उनका से भेंट भईल. ऊ लोग के पार्टी गांधी बाबा के नांव पर जुलूस निकलले रहे. हम उनका से सवचनी कि जब तहरे पार्टी के लोग गांदी के गोली मारल तब से ले के आजु ले नीति में ई परिवर्तन कइसे हो गइल? ऊ हमार मुंह देखे लगले कइसन बुड़बक आदमी हऽ. जानता नइखे कि नेता लोग के जबान आ काम कब का होई एकर ठीक नईखे. सांचो आजु काल्हु , जान जा ए रामचेला कि नेता लोगन के जबान बिछला जा तिया. कहले बा कि चाम के जीभ हऽ बिछला जाले. लेकिन नेता लोगन के जीभ सबसे जियादा बिछलाले. खास के जब चुनाव के पहिले वाला मौका हो. अब देखऽ ना कि दू दिन पहिले ही मोदी जी , चाहे करुणानिधि जी का बोलले अब का लीपापोती करऽ ता लोग. बिछलाला तऽ गोड़ भी लेकिन ऊ जब बिछलाला तऽ लोग गिर परेला आ ओकरा बाद आंखि झुका के धुरा झारे ला आ एने ओने तिकवे ला कि केहु देखत तऽ नईखे. लेकिन नेता के जब जबान बिछलाले तऽऊ आंखि उठा के बहस करेला. जान जा कि जिनगी तीन गो चीज बिछलाला , एगो जीभ, दोसर के गोड़ आ तीसरके नजर. गोड़ बिछलाइल तऽ बूझि जा कि आदमी लापरवाह रहे, जबान बिछलाइल तऽ माने कि ओह पर भरोसा करे लायक नईखे आ जे आंखि बिछला गईल तऽ जान जा कि आदमी बदचलन बा. ई देश के राजनीति के तऽ कवनो चरित्र बा ना एहिसे जब नेता के जुबान बिछलाले तऽ केहु के हरानी ना होला. काहे कि नेता के जबान बिछलाले ना, ओकरा के ढकेल के बिछलावल जाला आ ढकेले वाला खुद उहे होला जेकर जबान होले. ई काम जहां वोट बैंक होला ओहिजा बेशी होला. अईसन बूझाला कि वोट बैंक के चौकठ पर केला के छिलका गिरल रहेला. ई जान जा कि जे केला के छिलका ना गिरल होखो तऽ नेताजी अपना पाकिट में से निकाल के ओहिजा गिरा देले. अपना देश में केला के बड़ा महत्व बा. केला के पतई , चाहे के धड़ , चाहे केला के घवद सबके अलग- अलग महत्व बा. एहिसे अपना देश में नेता लोग केला पाकिट में ले के घूमे ला. फल खा लिहले आ छिलका गिरा दिहले. अगर कम्पीटीटर बा तऽओकर गोड़ बिछलाई आ बोटर बा तऽ ओकरा खातिर नेताजी जबान बिछलाई.
अब ई जान जा कि चुनाव नारा काल होला प्रश्न काल होल, असमंजस काल होला , चुनाव फिसलन काल होला. कवनो नेता के जिनगी में चुनाव हरला से बड़हन डर कवनो ना होला. अब ई मत सोच लिह कि जबान जे नता होई ओकर चमड़ा भी ओही के होई. नाहीं, जबन तऽ ओकरे बा लेकिन ऊ जबान के चमड़ा ओकर ना होला. ई केहु के मार के लिहल जाला. इहे कारण हऽ कि आजादी के बाद एतना लोग मुआ के ई चमड़ा हासिल कइले बा लोग. उहे चमड़ा के कारण पूरा देश ऊ लोग केला के छिलका पर रखले बा. जब चाहे धकिया के पूरा सिस्टम के गिरा देवे.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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