– जयंती पांडेय
रामचेला बाबा लस्टमानंद से पूछले कि आजुकाल्ह आतना झगड़ा काहे बढ़ गइल बा. बाबा खखार के कहले, बड़ बूढ़ लोग कहि गइल बाड़े कि दुनिया भर के झगड़ा जर जोरू आ जमीन के ले के होला. इहवां जर माने सोना चांदौ आ रुपिया पइसा के बात नइखे, जोरू माने मेहरारुओ के नइखे, बाति बा जमीन के, जमीन दखल के ना लेकिन जमीन के बाति त जरुर बा. आजुकाल्ह फेर जमीन के झगड़ा बढ़ रहल बा. अब देखऽ ना चुनाव के पहिले ममता दीदी वादा कइले रही सिंगुर के जमीन लवटावे के. अब कहऽतारी कि ना हो एह में त कानूनी अड़चन बा.
खैर ई त सरकार के कामे हऽ कि रोज नया नया लोभ दे देउ आ आदमी ओही में घुमत रहे. एहि से बूढ़वा लोग जमीन के नम्बर एकदम आखिर में दिहले बा. सबले पहिला नम्बर बा जर माने कि सोना याने धन दौलत रुपिया पइसा के. अब रुपिया पइसा खातिर का का होता ई बतवला के दरकार नइखे. नौकर अपना मालिक के मारि के भाग जाता त कहीं भाई से भाई बेइमानी क देता. कहीं दोस्त दोस्त का पीठ में छूरा घोंप देता त कहीं बेटा बाप के नइखे चीन्हत. रुपिया पइसा खातिर का हो ता ई जाने खातिर दूर गइला के दरकार नइखे. बस रोज सबेरे के अखबार उठा लऽ आ सब पता चल जाई. बेइमानी के एक से एक नया तरीका. खैर केहु तरे पइसा कमा लिहल लोग त अब लागेला जोरू के खोज होखे. जोरू माने फालतू खरचा के जिन्दा रूप. इन्कम टैक्स वालन से भले रुपिया बाँच जाव लेकिन भाई रामचेला, ई जोरू का नजर से ना बांच सकेला.
आ जब जोरू भेंटा गइल त जान जा रामचेला अब आदमी सोचे ला कि कहीं चार कट्ठा जमीन हो जाइत. अब लागेला ओकरा चक्कर में. एही खातिर सब मारामारी होखेला. आदमी आपन जमीर खतम क देला. नेता होखो भा पइसा वाला, एही तीन का चक्कर में हमेशा पड़ल रहेला. अब करीब किसान का लगे जोरू होला, जमीनो होला. कभी कभार फसल ठीक भइल त जर भेंटा गइल ना त जै श्रीराम ! ना कहीं घूमे के औकात ना जोगाड़. बस से जात रेलगाड़ी देख के आपन सवख पूरा क लेला लोग. सब लड़ाई जमीन का खातिर आ अंत में ओही जमीन में मिल जाये के बा.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.