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गरमी से निपटे के उपाय

by | May 30, 2014 | 3 comments

– आलोक पुराणिक

AlokPuranik
चुनावी बक-चक से बहरि आ गइल होखीं, त कुछ ठोस, असली मुद्दन के बात क लिहल जाव.
अगर रउरा बड़का आदमी ना हईं, त गरमी रउरा के सताई.
वइसे जे बड़का आदमी ना होला, ओकरा के गरमीए का सरदिओ सतावेले.
नत्थू हवलदारो सतावेला, कल्लू चक्कूबाजो हड़कावेला.
से सगरी बवालन आ सवालन के हल एकही बा कि बड़का आदमी बन जाईं. का पूछनी, बड़का आदमी कइसे बनल जाला, अजी अगर हमरा इहे आवत रहीत त का गरमी पर सिरिफ लेखे लिखत रहतीं. स्विटजरलैंड जा के स्विस बैंकन में कुछ ठोस काम ना करत रहतीं.

बड़का लोग एह सीजन में बर्लिन भा लंदन में भा न्यूयार्क में राष्ट्रीय समस्यन पर अंतरराष्ट्रीय तरीका से बात विचार करेला. बड़का विद्वानन के सेमिनार-भाषण एह सीजन में ठंडा देशन में तय होखत रहेला. छोटका आदमी गरमी के सीजन में हद से हद रायपुर, रोहतक में बइठ के कहत सुनत रहेला कि – ओफ्फो कइसन तिक्खर गरमी बा.

वइसे ई खाकसार गरमी से निपटे खातिर कुछ उपाय खोज निकलले बा. रउरो देखीं –

उपाय नंबर एक – सबले पहिले त दुपहरिया बारह बजे घाम में एक घंटा बहरि टहल के आईं. एकरा बाद रउरा घर के गरमी कम लागी. जब घर में गरमी लागे लागे, त बहरि घुमलका याद कर लीं, गरमी अपना आपे कम हो जाई.

उपाय नंबर दू – साँझि बेरा आइसक्रीम के ठेला लगावल करीं. आइसक्रीम के ठेला लगे गरमी कम लागेला. अब सवाल उठी कि आइसक्रीम के धंधा में कंपटीशन एतना बा कि आइसक्रीम बेचब कइसे. त एकर उपाय ई बा कि कवनो चाट वाला का दोकान का लगे रउरा आपन ठेला लगावल करीं आ अपना अगल-बगल कवनो पानी बेचे वाला के खड़ा जन होखे दीं. चाटवाला से बतिया के ओकरा चाट में मिर्ची दुगूना करवा दीं. लोग चाट खाके पानी मांगे लागी, जवन ओहिजा मिली ना, से जाहिर बा कि रउरा आइसक्रीम के बिक्री चल निकली. आइसक्रीम के ठेला लगवला के एगो फायदा अउर होखी कि राउर इज्जत रूरा बचवन का बीचे बढ़ जाई. लड़िकन का नजर में संसार के सबले सम्मानजनक आ धांसू धंधा बस दूइए गो होला – एक त आइसक्रीम बेचे के, दुसरका चाकलेट बेचे के. हमार बेटी हमरा से हमेशा कहेले कि पापा राउर लक खराब बावे नू, तबहिए त रउऱा आर्टिकल लिखीले, नीमन रहीत, त आइसक्रीम बेचतीं.

उपाय नंबर तीन – अगर रउरा नियरा कवनो एयरकंडीशंड मल्टीप्लेक्स होखे, त ओहमें सबेरहीं घुस जाईं आ साँझि ले बारी-बारी एह दोकान से ओह दोकान ले घूमत रहीं. का कहनी, कि आसपास के लोग रउरा के घूरे लागी. जी ना! उ लोग अइसन करिए ना पाई. काहे कि उहो लोग त गरमी से बाचे ला एहिजा आइल बा.

उपाय नंबर चार – टीसन के अपर क्लास वेटिंग रुम के अटेंडेंट से दोस्त साध लीं. कबो-कबो ओहिजो के एयरकंडीशनर काम कर जाला.

उपाय नंबर पांच – सोचीं कि गरमी से रउरा कतना हजार बचा लिहलीं.
कइसे, सुनीँं अइसे. हम हर साल सभका के बताइले कि शिमला जात बानी, भा नैनीताल जात बानी. बाकिर जाईं ना, से साहब परियार साल हम शिमला ना जाके करीब दस हजार बचवनी, पर साल नैनीताल ना जाके दस हजार बचवनी. एह साल त हम लमहर हाथ मरले बानी, ऊटी ना जाके करीब बीस हजार बचा लिहनी. एतना बचत सोचिए के कलेजा के ठंडक मिल जाले.

उपाय नंबर छह – कवनो बड़का आदमी के सार, जीजा, दामाद, साढ़ू, वगैरह बने के स्कोप होखे,त ओकरा के खोजीं. बड़का आदमी स्विटजरलैंड, लंदन अकेले थोड़ही जाले, दू-चार गो चंपुअनो के ले जाले.

अब चलत बानी, आइसक्रीम के ठेला लगावे के बा, बेटी बहुत देर से हल्ला मचवले बिया.


आलोक पुराणिक जी कवनो परिचय के मुहताज ना हईं. ईहाँ के सटीक तंज गहिरा ले चोट कर जाले. सतसइया के दोहरे अरु नावक के तीर, देखन में छोटन लगे, घाव करे गंभीर. अँजोरिया पर पहिलहू ईहाँ के अगड़म-बगड़म प्रकाशित होत रहे. बीच में कुछ बाधा का बाद फेरु शुरू बा गुरूदेव के अगड़म-बगड़म.
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3 Comments

  1. Editor

    माफ करिएगा पंकज जी, यह आलोक जी की रचना का भोजपुरी अनुवाद है जो उनकी अनुमति लेकर किया गया है.

  2. pankaj

    AAP BHOJPURI BHI JAANTEY HAIN…WAAH WAAH.

  3. Anonymous

    मस्त बा हो.पुराणिक जी के हम त पहिले से फैन बानी.

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