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अण्णा के मौन व्रत

by | Nov 7, 2011

– जयंती पांडेय

अण्णा मौन व्रत ले लिहले बाड़े. एक तरह से दमी साध ले ले बाड़े. काहे कि उन कर संघतिया लोग अलटाय बलाय बोलऽता लोग ओह से कहीं ऊ ना फंस जास. ना बोलिहें ना कौनो बिबाद होई. ई सब देखि के सुनि के बेचैन रामचेला बाबा लस्टमानंद से कहले “बाबा ई सब का होऽता?”
बाबा कहले, “ई गीता के नया ज्ञान के अवसर हऽ. भ्रष्टाचार मेटावे के महाभारत में दुनू इयोर से मोर्चा तैयार बा. दुनूं इयोर के लोग के देखि के बुझाता कि एक इयोर नगाड़ा बाजऽता तऽ दोसरका इयोर टिरी री झाल. आ युद्ध स्थल पर अजरुन नाहिन किंकर्त्तव्यविमूढ़ बाबा हजारे. जनता हरान. काहे कि ई पूरा युद्ध ओही के नांव ले के हो रहल बा. चारू इयोर से आरोप प्रत्यारोप के बंड़ेरा उठल बा आ अकास ढांक लेले बा. दूनूं तरफ नर नाहर लोग बांहि चढ़वले तैयार बा. जनता बेचारी का करे. अइसन हालत में अपना हाथ में माइक थमले रणभूमि में ठाड़ एगो मीडियाकर्मी से प्रश्न करऽता – हे समाचार प्रदाता, हमार मन आज बहुत व्यथित बा. आप ज्ञानीलोगन में श्रेष्ठ हईं. ताजा स्थिति से भलीभांति अवगत रहीले. कृपा कऽ के हमरा बताईं कि सदाचारी लोगन के ई व्यूह आ भ्रष्टाचरिन के भारी भरकम फौज के परम पराक्रमी और महारथी तथा अनेक प्रकार के हथियार से सज्जित निर्लज्ज वाक् युद्ध में निपुण वीरन में आज जवन संग्राम हो रहल बा ओहमें केकर जय होई? के पराजित होई आ हमनी के का होई. तब आम जन के ई आर्त वचन के सुनके ऊ मीडियाकर्मी अइसन बचन कहलस, हे जनता जनार्दन ई सदाचारी आ भ्रष्टाचारी के कार्यकलाप देखि के कबहुओं बिचलित मत होखिह. दूनो के सम्बंध दूध आ पानी के होला. जे सदाचारी बा ऊ भ्रष्टाचारी भी बा आ जे भ्रष्टाचारी बा ऊहो सदाचारी होला. ई समझे के खातिर तहरा ई समझे के होखी कि आज जे बहू बा काल्हु सास होई आ आज जे सास हऽ ऊ काल्हु बहू रहे. हे भाई, जैसे आत्मा आ परमात्मा अपना मूल स्वभाव में एके होला तबो फरका-फरका लऊकेला ई भ्रष्टाचार आ सदाचार के भी समझऽ. द्वैत आ अद्वैत के दर्शन के गुत्थी के समान इहो एक दोसरा से गुत्थमगुत्था बा. हे प्रिय भाई, ई मनुष्य के जीवन भोग के निमित्त बनल बा. इहे ज्ञान से भ्रष्टाचारी लोगन के अंत:प्रेरणा आ अवसर प्राप्त होला . सदाचारी लोग अइसन अवसर के पेंड़ा जोहेला. जब सदाचारी के ई दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाला, तऽ उहो भ्रष्टाचरण में शुरू कऽ देला . एही से तूं सबलोग हमार बाति के ध्यानपूर्वक श्रवण करऽ. तत्पश्चात एह पर शांत मन से मनन करऽ. सब कुछ स्वत: स्पष्ट हो जाई. तब ऊ मीडियाकर्मी के एह भांति कहल वचन के सुन के आम जन के बोलती लगभग बंद हो गइल आंखि आधा खुल गइल. ऊ थपरी पार के हंसे लागल .


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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