अमीरी के नया शौक

by | Apr 5, 2010 | 0 comments

– जयन्ती पाण्डे

वइसे त कलकत्ता शहर के बड़ाबाजार के सेठ अमीरचंद का लगे बहुत दौलत रह, करिया आ सफेद दूनो. कारोबारो कई गो रहे. जायज कम आ नाजायज बेसी. धन रहे त नाँवो रहे चारू ओर. समाज में रुतबा रहे. तबो अमरचंद के बुझाव कि कवनो ना कवनो कमी जरूर बा. एही बीच कलकत्ता नगर निगम के चुनाव आ गइल. उनकर चमचा सलाह दिहले सँ कि केतनो धन होखो, आदमी का हाथ में पावर ना होखे त कुछ नइखे. अमीरचंद के बात बा गइल. सोचले चिनिगी के सब मजा त अजमा लिहनी, अब इहो सवाद देख लिहल जाउ. बस अब का देरी. धोती चढ़वले आ कूद गइले राजनीति का सागर में.

जब कूदिये गइके त सागर के भँवर आ गहराई के अंदाजा भइल. अमीरचंद पार उतरे खातिर हाथ पैर मरले त चमचा कहले सँ, अइसे काम ना चली. एह चुनाव से पार उतरे खातिर कवनो मुद्दा जरुरी होला. मुद्दो तनी धारदार होखे के चाहीं कि सीधे मन में उतरि जाव. अमीरचंद तब बेचैन हो के पुछलें, त बतावऽ सँ ना! ऊ कवन तीर हऽ जेकरा के चला के हम सत्ता तक चहुँप जाईं.

एगो सीनियर चमचा कहलसि कि भईया जी, अपना देश में गरीबी नाम के एगो चुड़ैल रहेले. ओकरा से देश के जनता बड़ा आतंकित बिया. जे भी जनता के ओह चुड़ैल से मुक्ति दिआवे के बात करेला जनता ओहि के आपन मसीहा समुझ लेले.

मगर गरीबी नाम के ई चुड़ैल रहेले कहवाँ? ओकर हुलिया कइसन बा? कइसे चिन्हाई? ओकर पता ठेकाना त बतावऽ. आ ओकरा के भगावे के उपाय का हऽ? अमीरचंद के उत्सुकता बढ़ले जात रहे.

देखऽ भईया! हमरा देश में एगो लाइन खींचल बा जेकरा के गरीबी रेखा कहल जाले. गरीबी ओहि रेखा के ओह पार रहेले. ओकरा के भगावे के थोड़े परेला. बस भगावे के बात करे के बा. ई गरीबी बड़ा काम के चीज हऽ. करेके बस अतने बा कि विकास के डंडा हवा में घुमा के जनता के भोरावे के बा. जनता बड़ मासूम ह. मोहब्बत आ चुनाव में सब कुछ जायज होला. ई दूनों चीज में कसम आ वादा के बड़ा महत्व होला. रउरा कसम खा के जनता से वादा क देब कि यदि आपके सत्ता मिल गइल त आप जनता के गरीबी के चंगुल से जरुर मुक्ति दिलवा देब. बस जान जाईं कि हो गइल आपके काम. चमचन के जनरल नालेज काफी हाईफाई होला.

अरे भाई, हम त अब ले एक ही रेखा देखले रहीं, फिल्मन में, एक रेखा सुनले रहीं बोर्डर पर होला जवना के नियन्त्रण रेखा कहल जाला. ई ससुरी गरीबी के रेखा कहाँ से आ टपकल? खैर अब जब कूद परल बानी त पार त जइसे तइसे होखहीं के बा. चलऽ पहिले गरीबी से मिलल जाव.

अमीरचंद अपना दल बल का साथ लाइन आफ पावर्टी पार कर के गरीबन के बस्ती में चहुँपलन. ढुकते उनका नाक में बदबू के एगो जोरदार भभका टकराइल. ऊ नाक पर रुमाल रख लिहले. गन्दा मोरी में कुछ नंग धड़ंग लड़िका नाक सुरकत कागज के नाव चलावत रहले सँ. अमीरचद एगो लइका के बोलवलें आ ओकरा के एगो टॉफी दे के प्यार से पुछलें, तूं एने कहीं गरीबी के रेखा के देखले बाड़ऽ? बचवा बोललस, ना त! गरीबी एने ना रहेले. अमीरचंद चिहुँक परलें, का कहले रे? गरीबी गरीबन का मुहल्ला में ना रहे ले त फेर कहाँ गइल? गरीबी आ गरीब के त जनम जनम के रिश्ता होला. ओहमें दरार पड़ल कइसे?

ई गरीबी के दूर करे खातिर कर्मचारी रिश्वत लेला, अफसर घोटाला करेला, नेता दलाली खाला. व्यापारी मिलावट करेला, टैक्स चोरावेला, कालाबाजारी करेला. गरीबी तबो दूर ना होले त जनसेवक के चोला पहिर के राजनीति में कूद जाला. जइसे आप कूद परलीं. गरीबी वहीं रहेले जहाँ कवनो चीज के अभाव रहेला. हमरा लगे कवनो कमी नइखे. दोसरा ओर आप अपना बस्ती में गौर से हर आदमी के चेहरा पर अभाव के हरुफ पढ़ सकेनी. जहाँ गरीबी बा उहें पावर पैदा होले, पावर गरीबी दूर करे में लाग जाले. अमीर लोग गरीबी के चाय पिये खातिर बोलावे ला लोग आ गलत से गलत काम कइयो के गरीबी के खुश ना कर पावे त एही के पावर टी कहल जाले. जाईं आप अपना बस्ती में. गरीबी के नचाईं चाहे मुजरा सुनीं बाकिर हमनी के अपना हाल पर छोड़ दीं.

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(4)

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(7)
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