आग लगावत पानी

by | Nov 7, 2013 | 0 comments

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद आ रामचेला दुर्गा पूजा देखे कोलकाता गइले. उहां मिडल क्लास में पढ़े वाला उनकर नाती जब पूछलस कि बाबा हो ‘सावन में लग गई आग’ गीत के माने का होई. जवन पानी से पियास मेट जाला चाहे आग बुता जाला ऊ पानी कइसे आगि लगा दी? हालांकि फालिन तूफान के असर शुरू हो चुकल रहे. तबो बाबा कुछ ना बोलले. जब ऊ लईका एकदम जिदीया गइल आ रामचेला मुस्किया के कहले कि बाबा तहार सब अकिलिये गुम हो गइल बा. तब बाबा कहले कि बबुआ तहरा ना बुझाई काहे कि अबही ओतना समझदार नईखऽ भइल.लेकिन बालहठ त बालहठ हऽ. ऊ कहले, सांचो पानी से आगि लागेला. एकरा के पानी ना परीक्षक बूझऽ, परीक्षक. ई होला त अपने तरल, बाकिर परीक्षा लेला बहुत कड़क.

अब देखऽ, ई बरसऽत पानी केतना लोग के परीक्षा लेला – नाली जाम ना होखो एकर परीक्षा लेला, सीवर जे बा से रीवर (नदी) ना बने, कूड़ा-करकट अपना जगह जमल रहे के, नाला सबके ना उफने के, नवका सड़कन के आपन फिगर मेंनटेन रखे के, पुरान सड़कन के अपना देहि पर बनल गड़हन के पोखरा ना बने देवे के, लाइट के रोशन रहे के, पम्पिंग सेट के रुक-रुक के ना चले के, संक्रामक रोग के ना फैले के तेज रफ्तार से, ट्रांसफार्मर के खुद से जर जाये से बचावे के, लोहा के खंभा के करंट के लागे से बांचे के, लबालब पानी में लुकाइल खुलल मेनहोल के पावे के, आदमी के टोहू प्रवृत्ति यानी सिक्सथ सेंस के, वीआईपी एरिया के आपन प्रेस्टीज बचावे के, समय पर कार्यालय आवे के, देर से घर ना पहुंचे के, उफ! ई बरसऽत पानी परीक्षा ना अग्निपरीक्षा लेवे ला, अग्निपरीक्षा.

काल्हु तक जवन शहर के हम सोने की लंका समझत रहीं, थोड़की से बरखा ओकरा के पल भर में भस्म कर दिहलस. आ हम दुख के दरिया में ना पूरा तरह से डूबऽतानी ना उतरा तानी. कुछ देर खातिर बरसात, आ तब व्यवस्था एकरा सामने पानी मांगने पर विवश. एगो शेर बा न कि ‘ये बरसात नहीं आसां, बस इतना समझ लीजे, एक आग का दरिया है और व्यवस्था को डूब के जाना है।’ एकरा के बरसात के आग उगिलल ना कहल जाई त का कहल जाई. अफसर-बाबू बने खातिर इहां एक बेर परीक्षा पास करे के परेला. मगर ई माटी लगवना बरसात त हर साल परीक्षा लेला. दोसर सब परीक्षा से त बांचल जा सकेला. माई-बाप लाख कहत रहे, ना देहलऽ कवनो परीक्षा. पर बरसात त सब केहु के परीक्षा लेले. आ ई परीक्षा में नकलो के अधिका गुंजाइश ना होला. इहो ना कि मौसा भा चाचा से कहवा के पैरवी से अंक नम्बर बढ़वा लीं. बहुत जबर्दस्त परीक्षा ह भाई.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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