ई जग ह भ्रष्टाचारी !

by | May 1, 2011 | 0 comments

– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद लमहर सांस घींच के कहले, हो राम चेला ई कुटिल, कपटी जुग में अबहियों कातना लोग भेंटाता ई कहे वाला कि “हम आजु ले कवनों भ्रष्टाचार नइखी कइले. नाजायज पइसा के हाथ से छुअल का हम त ओकरा इयोर तकबो ना करीले. एकदम हम पांकी में कमल नाहिन बानी.” लेकिन जब उहे अदमिया के बारे में दोसर लोग लागेला बखाने कि बाबा, कै दिन से उनुका के जानऽ तारऽ ? नम्बर एक के बेईमान ह, पक्का कामचोर. आफिस में फाइल ओकरा लगे गइला के देर बा कि ओहमें अइसन अइसन रोड़ा अंटका दी कि बस ! कवनो काम ना जोई. ऊ त करबे ना करी दोसरो के करे लायक ना छोड़ी. उहे खिस्सा ह “ना खेलब ना खेले देब, खेलवे बिगाड़ देब”. मोका नइखे कि चोरइहें त भ्रष्टाचार कहाँ से करीहें ?

कुछ लोग में ई आदत होला कि अपना के एकदम पकहर कही आ दोसरा के बड़का चोर. कुछ लोग त असहुओं होला कि हर बात में किरिया खाला. किरियो अइसन जोरदार ढंग से कि कुछ कहल ना जा सके.कबहुं ताबीज निकाल के भगवान जी के छू के आ जब खनाद होला त ऊ अइसन झूठा निकलेला कि मत पूछऽ. ऊ लोग दोसरा के महाबोका बुझेला. जान जा रामचेला कि हमार एक जाना परिचित बाड़े, हरमेस भाई. एगो बड़हन कंपनी में काम करेले. बड़ा पइसा कमइले. जब भेंटइहें तब आपन बात एहिजे से शुरु करीहें कि हम आजु ले झूठ नइखीं बोलले. अरे भाई कबहुओं त बोलले होखब ? ना एकदम ना, आखिरी बेर कब बोलले बानी हमरा इयाद नइखे. केहु केहु त कहियो देला कि ई इनकर अइसन झूठ ह जेकरा से बात शुरु करेले. फेर आगे बोलत जाले, अब त आतना पाक गइल बाड़े कि सुधरे के कवनो चानस नईखे.

हमरा कहे के अर्थ ह कि आजुओ लोग बा जे थोथा आदर्श चिलगम अइसन चबावत रहेला.मौका कुमौका ना देखे, बस शुरु हो जाला. कहे लागेला कि आदमी पइसा के पीछे पागल हो गइल बा. आखिर अतना पइसा के ऊ करी का ? मुअला के बाद सब छूटि जाई. अइसन लोग पाकिट में ईमानदारी के साबुन ले के चलेला. जबे मोका मिलल त सामने वाला एकदम धो के चकाचक क देला लोग. बुझाला कि ईमानदार धर्मगुरु ह लोग. सामने वाला के कही, खूब खा तारऽ तनी सम्हार के खा. धरइल त ऊ का कहाला कि नाक कटि जाई. कई लोग त मजबूरी में ईमानदार होला. खायेके मोके नइखे त खाई कइसे ? कुछ लोग भयवादी होला. एकदम दस पाँच रुपिया में संतोष क लेला. कुछ लोग के पेट बड़हन होला, ऊ कहेला, अब के पचीस पचास के खातिर ईमान छोड़े जाउ. लेकिन जब लाख दू लाख के बात होला त देखऽ कइसे लार चूअता.

कुछ लोग भय का मारे भ्रष्टई ना करे ला, ई दुनिया में भ्रष्टाचार के परिभाषा बदल गइल बा. केहु के काम करवला के बदले जे लिहल जाला ओकरा के कमीशन, चाहे मिठाई, चाहे भेंट सौगात इत्यादि कहल जाला. ई भ्रष्टई का श्रेणी में ना आवेला. रामचेला जेकरे ओरि झाँकऽ उहे भ्रष्ट निकली. एह दुनिया में केहु ईमानदार नइखे बस ओकर रूप बदल गइल बा. हो रामचेला, ई जग ह भ्रष्टाचारी !


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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(4)

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(7)
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(5)

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