एतना उतार चढ़ाव में सांच कहाँ ?

by | Jul 25, 2011 | 1 comment

– जयंती पांडेय

बात चलल लस्टमानंद से कि साँच का होला. बाबा कहले साँच त हमरा के लइकाईं से हरान कइले बा. लईकाईं में पढ़नी कि बुद्ध आ महाबीर साँच के खोज में घर बार त्याग दिहले. बाकी ए घरी त साँच के खोजे खातिर दुनिया भर के जाँच कमीशन बइठ जाला. पहिले के राजा लोग साँच जाने खातिर आपन भेस बदलि के रात के गांव गांव घूमत रहे कि उनकरा बारे में प्रजा के का विचार बा. अपना बारे में प्रजा के विचार जान के ऊ लोग के राजपाट चलावे में बड़ा ही मदद हासिल होखे. वइसे साँच के रूप बड़ा ही कठिन होला. अब देखीं ना रउए, एगो गिलास में आधा गिलास पानी भरल बा. केहू कही कि आधा गिलास खाली बा, अउर दूसर के नजर में उ गिलास आधा भरल बा. अब दूनो बात त साँचे बा, बाकी एहिसे देखे वाला के नजरिया के पता चल जाला. अब देखे वालन के नजर के फेरे त रहे कि सीता मईया के अग्नि परीक्षा का बादो अपना पर लांछन सहे के पड़ल अउर उनकरा अयोध्या के राजमहल छोड़ के जंगल में बाल्मीकि ऋषि के आश्रय लेवे के पड़ल.

अब सवाल करे वाला लोग इहो पूछेला कि राजा रामचंद्र मर्यादा पुरुषोत्तम रहलन अउर ऊ त साँच जानत रहलन कि सीता मईया एकदम पवित्र रहली. तऊ चुप काहे लगा गइलन ? साँचो. साँच का बारे में जानल अउर बूझल एतना सहज नाहीं होला. जिनगी के साँच जाने खातिर सिद्धार्थ घर छोड़के बाहर निकललन अउर गौतम बुद्ध हो गइलन. जिनगी के साँच उनुके “सम्यक दर्शन” में भेंटाइल. ओहिजे एक अउर राजकुमार महावीर के ई साँच “स्यादवाद” में भेंटाइल. असल में सब रास्ता एके ओर जाला, बाकी चले वाला अपना अपना नजर से साँच खोजेला. अब अइसना में एगो कहानी याद आवऽता.

एगो गाँव में हाथी आइल. ओह गाँव में कई गो सूरदास भाई रहे लोग. हाथी का बारे में लोग से सुन के उहोलोग के जाने के मन भइल कि हाथी कइसन होला. टोहत टोहत पहुँच गइल लोग हाथी का लगे, अउर छू छू के हाथी के जानल लोग. अब घरे लवटि के आपस में चर्चा करे लागल लोग. जे पोंछ धइले रहे ऊ कहल कि हाथी त मोटका रस्सी लेखा बा, कान धरे वाला कहल कि बड़का सूप लेखा. गोड़ छुवे वाला के मोटका खंभा लेखा त सूंढ़ छूवे वाला के हाथी मोटका पाइप लेखा लागल.

अब रउए बताईं कि ओहसब में से के गलत रहे ? अब एकर जबाब एतना जल्दी रउआ वइसहीं ना खोज पायेब जइसे सरकारी आयोग सब सालो साल बितला का बादो असल अपराधी के ना खोज पायेला लोग. जवन आयोग छह महीना के भीतर रिपोर्ट देवे खातिर बनी, जान लीं कि ऊ बारह साल बाद पहिलका रिपोर्ट दाखिल करी, एकरा बाद ओह आयोग के रिपोर्ट के सच्चाई जाने खातिर दोसर आयोग बइठी. साँच के जाँच एहि तरह चलत रही काहें कि राजनीति के एताना उतार चढ़ाव के बीच साँच के खोज पावल ओतने कठिन बा जेतना ई बूझ पावल कि गिलास आधा खाली बा कि आधा भरल.

एकरा बादो रउआ ना मानब आ आगे बढ़ के साँच खोजत रहब त ऊ हथिये लेखा रउआ साँच के महसूस कर पाइब.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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1 Comment

  1. amritanshuom

    वाह! बहुत बढ़िया .आजकल साँच के जाँच के आंच लगा दिया त बा .
    ओ.पी.अमृतांशु

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