कहाँ गइल उ दिन

by | May 8, 2011 | 0 comments

– जयंती पांडेय

घर के बूढ़ पुरनिया कहेलन कि सब दिन होत न एक समाना. तुलसिओ बाबा एतना बड़ रामचरितमानस लिख के समुझवले बाड़न, “होइहें वही जो राम रचि राखा, को करि तरक बढ़ावहीं शाखा.” सचहूँ, समय बहुते बलवान होला. एकर महिमा त नर अउर नारायण दुनु जाना के माने के पड़ल रहे. किताबन में लिखल हमनी के पढ़लहीं बानी जा कि, “पुरुष बली नहीं होत है, समयहोत बलवान, भीलन लूटीं गोपियां वही अर्जुन वही बाण.” समय जवन न करा देव.

रामचंद्र बने जात रहलन राजा लेकिन चौदह बरीस तक जंगल में भटके के पड़ल. कहाये के भगवान बाकिर जंगल जंगल भटके के पड़ल. मेहरारू तक दोसर केहू उठा ले गइल. बानर भालू का सहायता से आपन मेहरारू के छोड़ाये के पड़ल. ओने जब रावण के टाइम खराब हो गइल रहे त ओकर सोने के लंका एगो मेहरारू का चक्कर में फूंका गइल. “एक लाख पूत सवा लाख नाती, ओकरा घरे दिया ना बाती” के नौबत आ गइल. कुंभकर्ण मेघनाद जइसन वीर मरा गइले.

सचहूं जब टाइम खराब होला त कुछ के कुछ हो जाला. कहल जाला कि भूँजल मछरियो पोखरा में कूद के भाग जाले. अब जे होशियार होला, ऊ त टाइम के हमेशा सही इस्तेमाल करेला,बाकी जे ओकर सही कीमत ना जानेला, ओकरा के बहुत कुछ देखे अउर सुने के पड़ेला. काल्हु ले जे अखबार से लेके टेलीविजन के परदा पर हीरो बन के छाइल रहे आजु उहे विलेन बन जाला. सब टाइम के फेर हऽ. काम त सभे उहे करऽता. जब के धरात नइखे तबले राजा हरीशचन्द्र !

दू दिन पहिले ले जे राजा लेखान रहत रहे अउर हवाई जहाज, हेलीकाप्टर के नीचे बात नाहीं करत रहे, ऊ आजु कोठरी में बंद हो के आपन दिन बितावत बा.

टाइम महाराज जवन ना करावसु. खेला खेला में जे करोड़न के दाछ खेले, देश से ले के विदेश तक करोड़ों करोड़ में खेले ऊ आजु केतरे धकियावल जात बाड़े. देश दुनिया सब देखऽता. जे कबो पूरा दुनिया में आतंक फइलावत रहुवे ऊ अपने घर में केतरे मराइल, सभे देखल, जानल. इहे कहल जाला टाइम टाइम के फेर. समय कबो सब कुछ शाइनिंग बना देला त कबो प्रेस्त्रोइका (पुनर्निर्माण) का नाम पर सब कुछ उलट पुलट देला.

आजु “हाथ” लगवला से सब कुछ सोना हो सकेला लेकिन गारंटी इहो बात के नइखे. हो सकऽता कि काल्हु फेरु कीचड़ में “कमल” खिल जाव. पिछला दस साल से बंगाल में “हँसुआ हथौड़ी” केतनो कोशिश का बादो “घास फूल” के पनपे ना दिहलसि बाकिर काल्हुओ इहे हाल रही, एकर गारंटी नइखे.

लोकतंत्र में त खैर गारंटी कउनो चीज के दिहल बड़ा कठिन बा, चाहे ऊ ईमान होखे भा कुरसी. कब दुनु कहाँ सरक जाई बतावल मुश्किल बा. अइसन हालात में कबो बंगला त कबो तिहाड़ के कोठरी में रहि के टाइम पास करे के पड़ी त कउनो अचरज के बात नइखे. अब एही में टाइम महाराज के दोष दिहल कहवाँ ले उचित बा, आखिर उनुको त टाइम पास करे के बा.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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