छब्बीस रुपिया में अमीर हो गइले लस्टमानंद

– जयंती पांडेय

जबसे योजना आयोग के मोंटेक भाई ई कहले कि हमरा गांव के लोग 26 रुपिया में अमीर हो जाई तबसे बाबा लस्टमानंद सीना फुला के घूमत रहले लेकिन ई पूजा में जब बजार करे गइले तऽ बुझाइल कि ई तऽ कुछऊ ना हऽ. काहे कि बजार में तऽ 26 रुपिया के तरकारियो अतना नइखे मिलत कि पांच गो आदमी के परिवार ठीक से खा लेउ. अरे अउरी तऽ अउरी सतुआ 60 रुपिया किलो हो गइल. माने कि 26 रुपिया में आधा किलो सतुओ ना भेंटाई. लेकिन ओइसे का. एकर दोस तऽ योजना आयोग के ना दिहल जा सकेला. सस्ता में चाहे सेतिहे मरि जाई केहु तऽ दोस सरकार के आ कानून के अउरी जदी महंगाई में केहु जीयते बा तऽ दोस सब समाज पर कि देखऽ समाज में केतना बिषमता बा. आ 26 रुपिया वाला बात में मोंटेक जी के कवन गलती. सुप्रीम कोर्ट जब पूछी तऽ बतावहीं के पड़ी कि सांच का हऽ. जे ना पूछले रहित तऽ ऊ थोड़े बतवते. आ जब बतवते तऽ के पतिआइत. उनका से के पूछित कि ई सब फैक्ट कहंवा से पइला भइया, आ देस में ऊ कवन गांव बा जेह में अभी अतना सस्ती बा ? चलऽ आहिजे जा के रहल जाई. लेकिन मोंटेक भाई के का कहऽतारऽ. ऊ कवनो गांव में गइले नइखन आ देखले नइखन कि 26 रुपिया के अवकात का होला. केतना अमीरी कइल जा सकेला ओहमे. अतना कहि के के बाबा बगली में से सुरती निकलले आ देखि के धऽ लिहले. राम चेला पूछले, बाबा बनइब ना ?

काहे बनाईं ? एह जमाना में सुरती खाली देखे के चीज हऽ खाये के ना. ई कम बड़हन बात बा कि हम अमीर बानी आ बगली में 26 गो रुपिया बा. माने 26 रुपिया धऽ के इतमिनान से रहल जा सकेला तऽ सुरतियो बगली में धऽ के ई मन में राखल जा सकेला कि खा लिहनी. वइसे ई जान लऽ रामचेला कि अर्थशास्त्री बने के खातिर गांव में गइल आ उहंवा के अर्थ व्यवस्था के अध्ययन कइल कवनो जरूरी नइखे. जइसे प्रधानमंत्री बनला खातिर अर्थशास्त्री भइल एगो क्वालिफिकेशन बा इलेक्शन लड़ल जरूरी ना. बड़हन अर्थशास्त्री बने खातिर न्यूयार्क, वाशिंगटन आ लंदन गइल जरूरी बा. सुने में आइल बा कि मोंटेक सिंह पांच बरिस में 16 हाली अमरीका गइले आ ओहपर 11 करोड़ रुपिया खर्च भइल. सोचऽ पिछला पांच बरिस से हम कासी नहाये आ बाबा विश्वनाथ के दर्शन करे के सोचऽ तानी आ कऽ नइखीं पावत. आ ई मोंटेक सिंह 16 हाली अमरीका घूम अइले. हां इहो सुनाता कि उनका मोट पइसा मिलेला. काहे ना मिली ? उनका बिदेश में ई बतावे के बा कि भारत अब गरीब नइखे रहि गइल. गरीबी मेटावे के ई फारमूला जे कुछि बरिस पहिले आ गइल रहित तऽ गरीबी कबले मेट गइल रहित. लेकिन ओह समय में तऽ गरीबी में रोटी के संगे कपड़ा आ मकानो जोड़ा जात रहे. लेकिन ई 26 रुपिया में तऽ का रोटी, का कपड़ा आ का मकान. लोग दनादन अमीर भईल जाता आ हमहु कहे के खातिर अमीर भईल जातानी.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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One thought on “छब्बीस रुपिया में अमीर हो गइले लस्टमानंद”
  1. हम त अबहीं ले अमीर नइखीं जी…ई खबर तS पहिले बेर मालूम भइल कि मोन्टेक 16 हाली अमेरीका जाके एगारे करोर रोपेया उड़ा देलन…एतना में 70512 आदमी पाँच साले ले छब्बीस रोपेया खरच करी त गरीब ना रही, ई मोन्टेक अकेलहीं एतना उड़ा देलें?

कुछ त कहीं......

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