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– जयंती पांडेय

गरमी के पसीना से तर-बर भइल रामचेला हाफत-डाफत गुरू लस्टमानंद का लगे पहुँचले. सस्टांग दंडवत कइके आशीर्वाद लेहला के बाद रामचेला कहलन, गुरू आजकाल गउवों में बदलाव के बयार बड़ा तेजी से बहऽता.

लस्टमानंद पूछलन, काहे? का हो गइल? समु के साथे त हर चीज बदल जाला. परिवर्तन त संसार के नियम हवे. एहिमें परेशान होखेला का बा?

रामचेला कहले, गुरू पहिले बिआह होत रहे त बड़ा मजा आवे. एतने ले ना. बेटिहा किहां बारात पंहुचे आ जनवासा में लउंडा के नाच होखे त बुढ़उवो लोग मजा लेबे से पीछे ना रहत रहुवे लोग. लउंडवा सब नाचते-नाचत बुढ़ऊ लोग के अंचरा ओढ़ावे लागे अउर बुढ़ऊ बाबा ईया के पइसा देत होखस चाहे ना बाकिर लउंडवा के जरूर देस. तिलक आ बिआह में भातखई में भूईया बइठ के खइला के आपन आनंद रहे. जेकर दुआर जेतना बड़का ओकर ओतने बड़का हैसियत रहे. बड़का लोग किहां त एगो पाँत में हजार आदमी खा लेत रहलन बाकिर अब सभे व्यस्त हो गइल बा.

बिआह में मरजाद त दूर अब साँझी खान बारात जाता आ रतिए खान लवटि आवता. भुईंया बइठ के पाँत में खाए वाला सिस्टम के साथे-साथ पूड़ी तरकारी आ दही-चिउरो खतम हो गइल. अब त का कहता लोग, बुफे सिस्टम में खियावे के.

पता ना ई बुफे कहवां से आइल बा लेकिन एह सिस्टम में खाए वाला लोग लाज-हया घोर के पी गइल बा. ससुर होखस चाहे भसुर, ओ लोग के समनहीं कनिया लोग प्लेट में चम्मच हिलावत चपर-चपर मुँह चलावता लोग. एह बुफे में बड़-छोट के लेहाज नइखे रहि गइल. केहू, केहू के सोझा कवनो तरह खाता.

दही चिउरा का जगह अब चाउमीन, पनीर, डोसा, इडली अउर ना जाने का का कचबच खाता लोग. अब रउए बताईं ई नवका रहन त पेट अउरी चाल-ढाल दूनो के निगलत बा कि नांही?

बाबा लस्टमानंदो के ना बुझाइल कि का जवाब देस.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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