पहिर ल त शान बढ़ी आ चल गइल त मान घटी

by | Jul 7, 2011 | 0 comments

– जयंती पांडेय

रामचेला पूछले बाबा लस्टमानंद से कि ई जूता बड़ा अजीब चीज ह. बाबा कहले, हँ एकर लमहर इतिहास बा, अब देखऽ ना कुछ साल पहिले बगदाद में एगो पत्रकार महोदय जार्ज बुश पर जूता तान दिहले. बुश भअई ओह घरी अमरीका के राष्ट्रपति रहले. अब ओकरा बाद त नेता लोगन पर जूता ताने के आ जूतिआवे के बाढ़ आ गइल. पाकिस्तान के अबसे पहिले के राष्ट्रपति मुशर्रफम अबहीं जे बाड़े जरदारी भाई, चीन के बेन जिआओ, ई सब लोग के जूतियावे के कोशिश हो चुकल बा. अपनो देश में इहे होत बा.

कुछ दिन पहिले जरनैल भाई, उहो त एगो पत्रकारे रहले, प्रणव दादा पर जूता बिग दिहले आ कुछ दिन पहिले कांग्रेस के जनार्दन द्विवेदी त सफा जूता खात खात बांच गइले.

वइसे ई जान जा बाबू रामचेला कि ई जूता बड़ा काम के चीज ह. बाबा अतना कहि के सुर्ती थूक दिहले. आगे कहले, हँ त जान जा रामचेला कि एह जूता के महातम पुरनका जमाना से चलल आवत बा. जूते के एगो भाई रहले खड़ाऊँ. ओकरा के भगवान राम पहिरले आ भाई भरत ऊ खड़ाऊँ गद्दी पर राखि के १४ बरीस ले शासन चलवले. अब के जमानो में ओकर बड़ा मोल बा. अंग्रेज जमाना में हमनी भारत के लोग के फौज में भरती करवावे खातिर राष्ट्रकवि दिनकर लिखले,

भर्ती हो जा रे रंगरूट
इहां मिलेगी टूटही पनहिया
वहाँ मिलेगा बूट
भर्ती हो जा रे रंगरूट.

एकरा बादो बाति नइखे ओराइल. आजुओ का जमाना में जयललिता का घरे एक हाली छापा पड़ल रहे त कई सौ जोड़ी चप्पल धराइल रहे. आजु जे जूता शानदार होखो त लोग बूझेला कि निकहां बड़का आदमी ह. आ तनी फाटल चाहे मुँह बवले होखो जूता त ठाढ़े इज्जत चलि जाला. रिसर्च से पता चलल बा कि सबसे पहिले हिममानव जूता पहिनत रहे. मिश्र का मंदिरन में तीन हजार साल पहिले के चित्र में जूता पहिरले देखावल गइल बा. ओह समय जूता पहिने के हक खाली राजा आ रईस लोग के रहे. एगो मामूली आदमी के लइका कवनो रईस के बिगल जूत पहिर लिहलसि त ओकर गोड़ काट लिहल गइल.

जहाँ ले जूता के फैशन के सवाल बा त सबसे पहिले हाई हील के चप्पल कहऽ चाहे सैंडिल कहऽ साल १५०० में फ्रांस के चित्रकार लियोनार्दो दा विंची शुरू कइले. आ कहल जाला कि उनुका सैंडिल के मारो सहे के पड़ल रहे. जूता हर जमाना में कमाल कइले बा. कई गो हीरो हीरोइन के पहचान उनका जूते से होला. फिल्म का परदा पर जूता पहिले लउकेला, आ हीरो चाहे विलेन के चेहरा बाद में. जूता इज्त दियावे आ बेइज्जत करावे, दुनु के साधन हऽ. एही से बबुआ रामचेला, जूता से हरदन हुशियार रहीहऽ.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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