jayanti-pandey

– जयंती पांडेय

सीताराम बनिया मुंहअन्हारे बाबा लस्टमानंद के दुअरा आ पहुंचले. बाबा ओह समय बैलन के सानी-पानी करे के तइयारी में रहले. हाथ में छईंटी रहे. सीताराम बनिया के देख के छईंटी धऽ के खड़ा हो गइले.

सीताराम नीयरा आ के कहले, बाबा हो, तहरा के काल्हु कुछ कहि दिहनी त माफी चाहऽ तानी. मन में शांति ना रहे एही से सबेरे-सबेरे आ गइनी. बाबा मुस्किया के कहले, ना त, अइसन कवनो बात नइखे. आ तू त हमरा ले जेठ हउव. इस्कूलो हमरा ले ऊंचा कलास में पढ़त रहलऽ आ मान ल कवनो बात कहिये देले होखऽ त एह में माफी के कवन दरकार बा. उल्टे हम तहरा से माफी मांग लेब अगर अइसन कबो हो जाई. काहे लजवाव तारऽ भाई.

सीताराम जी कहले, ना हो, संसद के समाचार पढ़ि के चलि अइनी हं.

भाई सीताराम जी संसद में लपफंगन के कवन कमी बा. आ ओकनी के चुनियों के त हमनिये का भेजले बानी सन.

सीताराम अपना बेशर्मी पर उतरत आवत रहले. कहले, बाबा हो एतना गिरल नइखीं कि माफियो ना मांग सकीं तहरा से.

बाबा त समझ गइले कि अब ई बनिया भाई दिमाग चाट जाई. जबसे दोकान पर बइठे लागल बा तबसे एकर इहे काम हो गइल बा कि केहु ना केहु के दुअरा पर जा के एही तरह समय बरबाद करे के.

सीताराम फेरू बाबा के हाथ ध के कहले, का हो, हमरा माफियो मांगे के अधिकार नइखे?

अब ऊ मूड में आवत रहले. अचके कहले, बाबा चाह बनवाव आ एही पर बतिया लिहल जाई कि हमरा माफी मांगे हक बा कि ना.

बाबा कहले, भाई अभी बैलन के सानी-पानी देवे के बा आ ओकरा बाद भईंस खूंटा पर हुमचत बिया ओकरा दूहे के बा. तब बैद जी किहां जा के बुढ़िया के दवाई ले आवे के. अबहीं सवांस नइखे बतियावे के.

कह के बाबा जसहीं चले के भइले सीताराम जी खिसिया गइले. लगले कहे, हम माफी मांगऽतानी आ तूं जे बाड़ऽ मुड़ि पर चढ़ल जा रहल बाड़ऽ.

तूं चाह पिये आइल बाड़ऽ कि हमार खून?

सीताराम जी अउरी गरमा गइले. हाला सुनि के बाबा के श्रीमती जी निकलली. का हो सीताराम जी, का बात बा? काहे खिसियाइल बाड़ऽ?

ऊ कहले, देखऽ, तूं त समझदार बाड़ू. हम आवते अपना गलती के माफी मांगि लिहनी आ इनका से एक कप चाह पियावे के कहऽतानी आ ई बाड़े कि एकदम मुड़ी पर चढ़ल चा रहल बाड़े.

ओह दिन बाबा के बूझाइल जे जेकर लाठी ओकर भईंस. अंत में चाह बनवावे के परल आ सीताराम जी के पियावे के परल. बाबा दिन भर माफी मांगे के एह लफंगई पर सोचत रह गइले.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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