– ओ. पी. सिंह


एह घरी के चरचन आ बकतूतन के अलगे अन्दाज हो चलल बा. सभे एही अन्दाज में पूछत बा कि – हम सही कि तू गलत ? आ जबाब देबे वाला के कहना रहत बा कि – ना तू सही, ना हम गलत ! केहु ई माने ला तइयार नइखे कि उहो गलत हो सकेला.

साइकिल से चलत, मास्टरी के नोकरी से परिवार चलावे वाला नेताजी बनते करोड़े ना, अरबो में खेले लागत बा आ ओकरा बादो पूछत बा कि – का हम बेइमान हईं ? ना चचा, तोहरा के बेइमान कहि के आपन मूड़ी थुरवावे के शौक केकरा होखी ? तू त ईमानदारी के नमूना हउव. दीदीया अलगे छाती कूटत बिया. बहिना के ना रोवते बनत बा ना हँसते.

सभे परेशान बा कि जनता के दिक्कत होखत बा बाकिर केहु जनता के नइखे सुनत कि ओकरा कवनो परेशानी नइखे. ऊ एक दिन के रोजी छोड़ के लाइन में ठाड़ आपन दू हजार रुपिया बदले के इन्तजार करत बा. आ इहे सोच के खुश बा कि करोड़ अरब रखले लोग आपन नोटवा कइसे बदलावत बा. सरकार आ करियाधन वालन का बीचे तू डाल-डाल, हम पात-पात के चूहा-बिल्ली दौड़ चालू बा. दिहाड़ी पर मजूरा राखि के आपन नोट बदलावत देखि के सरकार बदलैन के सीमा घटा दिहलसि. फक्कड़ गरीबन के खोलल जन धन खाता में नोटन के बरसात देखि सरकार ओकरो पर नजर डेढ़ क लिहले बिया. कुछ लोग के अब बीपीएल सुविधो छीनाए के खतरा बन गइल बा. तरह तरह के कानूनन के लोचा खोजात बा आ ओकर भरपूर इस्तेमालो हो रहल बा.

बाकिर सब कुछ होखला का बादो नेता परेशान बाड़ें कि नोट चलावे के कुछ अउर मौका दीहल जाव. नाम त लेत बा लोग किसान आ गरीबन के बाकिर मकसद बा धन के खेती करेवाला अपना जइसन नेता राजनीतिक किसानन के माल के सफाई करावल. पहिले नेता चैन से रहत रहलें आ जनता परेशानी में रहत रहुवे. अब जनता चैन लीहल चाहत बिया त नेता परेशान हो गइल बाडें. सत्तर बरीस के खुला लूट के जमाना देखले एह नेतवन के इचिको अनेसा ना रहल कि अइसनको हो सकेला. आ अब जब हो गइल बा त लोग आँख मींच मींच के देखल चाहत बा कि कवनो डरावन सपना त नइखीं देखत हम ?

30 सितम्बर अब सबका याद आवत बा. कुछ लोग सोचले रहुवे कि आपन करियका धन डिक्लेयर क दीं बाकि सलाहकार लोग कह दीहल कि महटियाईं ना. अबहीं अउरी मौका दीहि सरकार जइसे अब ले देत आइल बिया. ना त 30 सितम्बर बढ़ल, ना 30 दिसम्बर बढ़े के उमेद लउकत बा. बेनामी सम्पति प संकट अलगे मडँरात बा. नेता लोग के सगरी नेतागिरी भुला गइल बा. भठियरपन के नाम ले के सत्ता के मलाई चाभत पापियन के परेशानी अलगे बा. ओकनी ला अब अन्ना सरकार के चाटुकार हो गइल बाड़न. ऊ अबहियों एही गफलत में बाड़ें कि हम सही आ लोग गलत. बाकिर लोगो अब चालाक हो चलल बा. ऊ अब एह बहकावा में नइखन आवे वाला. ना त अइसन बड़हन फैसला अतना आराम से ना सकार लेतें. चोर नेतवन के लाख उकसवला का बादो उकसत नइखन.

एही माहौल में तीन तलाक आ इस्लामिक बैंकिंग के बैलून उड़त देखि के सेकूलर जमात अलगे परेशान हो चलल बा. अगर कहीं उहो जमात सेकूलर चालबाजी बूझ जाई त एह लोग के सगरी दोकानदारी बन्द होखे के अनेसा बढ़े लागल बा. कहीं मजबूरन मानिये मत लेबे के पड़ो कि हँ भईया, तू सही, हमही गलत.

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By Editor

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