अनसोहाते अनसाईल अनसाह (बतकुच्चन – 194)

by | Aug 9, 2015 | 0 comments

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कबो ट्रेन के टाइम त कबो हवाई जहाज के टाइम का चलते अनसोहाते मौका मिल जाला बतकुच्चन से आराम करे के. सोहाव त ना बाकिर कुछ देर ला सोहावन जरूर लागेला. आ आज एहीसे अनसोहाते पर बतकु्च्चन करे के मन बनवले बानी. अब रउरा एहसे अनस आवे, रउरा अनसा जाईं, राउर मन अनसाइल हो जाव त अलग बात बा बाकिर हमार मकसद रउरा के अनसावल इचिको नइखे. हँ कुछ अनसाह लोग हमेशा बहाना खोजत रहेला अनसाए के, त ओह लोग के जरूर मौका मिल जाई.

रउरा पूछ सकीलें कि अनसोहाते से अनस के का संबंध, त बतावल जरूरी हो जाई कि जब कुछ अनसोहाते होखे लागेला तबे अनस बड़ेला, मन खिसियाला. एह अनस आ अनसोहाते के संबंध बहुते घनिष्ठ होला. काहे कि अनसोहाते होखे वाला बात, मन मरजी का खिलाफ होखे वाला बात, केहु के सोहाव ना. अचके भा अचानके होखे वाला बात जरूरी नइखे कि अनसोहातो होखे. अनसोहात के अचानक होखलो जरुरी ना होखे. ऊ त बस अनसोहात होला जवना से मन के अनसोहाती महसूस होला.

मोहन आ सोहन नीक दुनू लागेला बाकिर मोहन अपना मोहिनी से मोहेला बाकिर सोहन अपना सोहाइल भइला का चलते. खेत भा बाग से खर पतवार के छाँट के निकाले के काम निराई भा सोहनी कहल जाला. निराई से आइल निरापन आ सोहनी से उपजल सोहावन में भावना के फरक आ जाला. निरा निरा होला, साफ सुघर, तटस्थ. ऊ ना त मन बिजुकावेला ना सोहावेला बाकिर सोहनी के परिणाम से जवन दृश्य बनेला ऊ त बस सोहावने होला. सभके सोहेला काहे कि कतहीं कवनो खर पतवार ना लउके आ सब कुछ साफ सुथर मन के सोहावे वाला हो जाला. सोहनी आ सोहाई सोहे के कामो के कहल जाला आ सोहला का चलते मिला वाला मजूरिओ के.

अब एही सोहे से आगा बढ़त हम आ जात बानी सोहर भा सोहिला पर. घर में लड़िका जनमेला त सोहर गावल जाला. सोहर माने मंगल गान, खुशी के मौका पर गावल जाए वाला गीत. एकरे के सोहिलो कहल जाला. नीक लागे वाला बात भा गीत गवनई मन के सोहासित करेला आ एही से उपजल ठकुरसुहाती. ऊ बात कहल जवन ठाकुर माने मालिक के सोहाव. ठकुरसुहाती बतियावे में धियान राखे के पड़ेला कि जवन कहीं तवन सुने वाला के सोहाव. जरूरी ना होखे कि ठकुरसुहाती साँचो होखे, भा कह सकीलें कि ठकुरसुहाती के नाता साँच से वइसने होखे के चाहीं जइसन पुरनका जमाना में भवे भसुर के होत रहुवे. एहिजा पुरनका के बात कुछ सोच के उठवनी काहे कि नयका जमाना में बहुते कुछ बदलल बा, बहुते कुछ गिरावटो आइल बा. अब रउरा अनसोहाते कवनो पुरान कहाउत याद आ जाव त याद कर लीं, हम दोहरावे वाला नइखीं. पता ना अगिला बेर कब फेर टाइम टेबल के टाइम आ जाई.

हँ अतना जरूर कहब कि अरधो कहे त सरबो बूझे, सरबो कहे त बरधो बूझे!

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(1)


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(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
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(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
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एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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