खोबसन के तोड़ चाहीं : बतंगड़ – 34

by | Apr 14, 2017 | 0 comments

– ओ. पी. सिंह


रोज ब रोज खोबसन सुने के आदत पड़ गइला का बादो आजु भोजपुरी कवि अशोक द्विवेदी के कविता – रेवाज – के एगो टुकड़ा दिमाग में घुमिरी लगावे लागल –

खोबसन सुनि-सुनि बड़ भइल बेलिया.
रोग सिरहाना, बलाय पैताना.
करम के लेख रहे, सुन्नर-सुरेख रहे.
अँतरा लुकात, हुँसात, डँटात
आन घरे गइल बाप मतारी हलुक भइल !

बेलिया बेचारी त आन घरे जा के एह खोबसन से छुटकारा पा लिहलसि बाकि ई सुभाग सभकर ना होखे. कुछ लोग के त भर जिनिगी एही खोबसन का साथे बितावे के पड़ेला. एह देशो के इहे हाल बा. हिन्दू बेचारे जइहे त कहाँ जइहें ! कतहीं केहू सुने वाला नइखे इनकर. अब रात दिन मिले वाला एह खोबसन के तोड़ खोजल जरुरी लागल त एगो गोल बहुत हद ले एकर काट खोज लिहले बावे. बहुत हद ले – एह चलते कहे के पड़त बा कि कुछ खोबसनिया लोग के खोबसे के आदत अतना पोढ़ बा कि ऊ हिन्दुवन के खोबसले बिना आपन खाना ना पचा सकसु. ईद क्रिसमस के परब मनवला से कतहीं कवनो बवाल होखे के अनेसा ना होला बाकि अगर रामनवमी मनावल चाहब त बन्दिशन से पार पावे खाति अदालत गोहारल जरुरी हो जाई. दोसरा मजहब सम्प्रदाय के भगवान के जनम भइला के सबूत केहू ना माँगे, ना खोजे. बाकि हमनी के श्रीराम जी के जनम स्थान के सबूत मांगे वालन के कमी नइखे. एगो अदालत से पार पा जाएब त दोसरका अदालत में जा के माथ रगड़े के पड़ी आ कमाल त तब हो जाला जब देश के माथ अदालत एह मामिला के फैसला करे से आपन मूड़ी बचावल जरुरी समुझे लागेले. बड़ा मासूमियत से सलाह दे दीहल जाला कि एकरा के मिल बइठ के सलटा लेव सब फरीक !

अरे भाई, मिलिए बइठ के सलटा लेबे के रहीत त आजु ले ई मामिला लटकत रहीत ? बाकि शायद अदालतो के अनेसा बा कि अगर ऊ फैसला देइयो दिहलसि त एगो फरीक एकरा के कायदा कानून से परे मान के आपन जिद पूरावे के ठान लीहें. आ तब इहे खोबसनिया फेरु खोबसे लगीहें हिन्दूवन के कि काहे एगो मंदिर खातिर देश के माहौल बिगाड़ल जात बा. बिगाड़े वालन के दोस देबे के बेंवत तबो उनुका लगे ना होखी. ऊ त हमेशा से एह बवालियन के साथ देत आइल बाड़ें. फौज प पत्थर मारे वालन के भटकल नौजवान बतावेलें, देश के टुकड़ा करे के बात बोले के आजादी बतावेलें.

खोबसनिया खोबसल छोड़ देव, ई कबो होइए ना सके ! बाकिर आजु हमरा सोझा एगो अउर समस्या बा. अंगरेजी में नैगिंग होला बाकि हिन्दी में एकरा ला कवनो शब्द खोजले नइखे भेंटात. भोजपुरी में अलबत्ता खोबसल बाकायदा मौजूद बा. खोबसल मौजूद बा त खोबसन आ खोबसनिया खोजे में देर ना लागी. अगर केहू एकरा ला हिन्दी शब्द बता सकी त हमरा बहुते खुशी होखी. गूगलो बाबा से पूछ देखनी ह बाकि उनुको लगे एह सवाल के जवाब मौजूद नइखे. आ इहे बाति हमरा ला खोबसन बनि गइल बा. एह खोबसन के तोड़ चाहीं. अलग बाति बा कि सेकूलर खोबसन के तोड़ निकल गइला का बावजूद दीदीया दोसरे दुनिया में मगन बिया. दुआरी आ गइल खड़खड़ाहट ओकरा सुनाते नइखे. ऊ त इहे सोचत लागत बिया कि –
कौन आया है यहाँ, कौन आया होगा ?
मेरा दरवाजा हवाओं ने खटखटाया होगा !
खुदा खैर करसु इनकर.

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