ना नीमन काम करे ना दरबारे ध के जाय – बतंगड़ 52

– ओ. पी. सिंह

प्राइवेसी के मुद्दा एहघरी पब्लिक में बा. केहू हरान त केहू परेशान बा आपन प्राइवेसी बनवले राखे खातिर. ऊ लोग चाहत नइखे कि ओह लोग के राज खुलि जाव. कहि देब हो राजा राति वाली बतीया कहि कहि के उनुका के उघार मत करा देव केहू. आ सभले बेसी चिन्ता ओह लोग के बा जिनकर करीया कमाई, कुकरम सामने आवे के डर बा. उनुका पैन बनवावे में दिक्कत ना रहल काहे कि कई गो पैन बनवावल सहज रहुवे. दिक्कत आधार से बा. दू गो आधार बन ना सके आ सरकार जे बिया कि गरदन दबवले जात बिया. गँवे-गँवे हर काम खातिर आधार जरुरी करत जात बिया. आधार का चलते ऊ लोग बेआधार होखे का कगार प आवत जात बा. से आधार के विरोध करत बा लोग. अब एकर चिन्ता ऊ लोग करत रहे चलीं देखल जाव कि आपन निजता के बचा के राखल कतना आसान बा.
पढे जाएब त नामम लिखवावे के पड़ी. अब ले बाप माई जतना पढ़ा दीहल ओतने प रोक दीं कि राउर निजता के जानकारी पसरे से रोकल जा सके. कतहीं नौकरी खातिर दरखास्त मत लगाईं काहे कि ओहिजा अपना पढ़ाई, अनुभव, बाप-महतारी, अता-पता के जानकारी देत फोटउवो लगावे के पड़ी आ दस्तखतो करे के पड़ी. बैंक में खाता जिन खोलीं काहे कि ओहिजो बहुत कुछ जानकारी दीहल जरुरी होखी. दोस्ती-हितई-मितई से फरदवला रहीं. काहे कि जतने बड़हन दायरा होखी रउरा हित-मीत के ओतने बड़हन खतरा होखी राउर निजता उघार होखे के. मोबाइल हटा दीं. अगर बहुते जरुरी होखल त बेस्मार्ट आ बिना फीचर वाला फोन राखीं. काहे ई ससुरा मोबाइल वालन के सगरी जानकारी हो जाला कि रउरा कन्टैक्ट लिस्ट में के-के बा, रउरा कहाँ-कहाँ केकरा-केकरा से आ का-का बतियावत बानीं. इन्टरनेट प त भुलाइयो के मत जाईं. काहे कि ओहिजा कुछऊ निज नइखे रहे वाला. गूगल बाबा सब जान जालें कि रउरा का पढ़त बानीं, का देखत बानीं आ ओही हिसाब से ऊ रउरा फोन भा कम्प्यूटर प विज्ञापन ठेले लागेलें. रउरा रंगीन मिजाजी, राउर पसन्द-नापसन्द सभ के जानकारीं उहाँ का लगे बा. ओतना जतना शायद रउरो अपना बारें में ना जानत होखब. कवनो काम-धंधा रोजी-रोजगार मत करीं काहे कि करब त पता ना कतना जगहा राउर जानकारी दर्ज करावे के पड़ी. हाटे-बाजारे मत निकलीं काहे कि ओहिजो रउरा के जाने-चिन्हे वाला लोग भेंटा जाई आ ओह लोग के दुआ-सलाम ओह लोग से बातचीत से कुछ अउरीओ लोग रउरा बारे में जान जाई. ट्रेन से गइल जरुरी होखे त आरक्षण मत कराईं. ट्रेन-बस में एकदम चुप्पी सधले रहीं. बाकिर टिकट देखावहीं के पड़ी आ ओकरा से पता चल जाई कि कहाँ जात बानीं. से कहीं अइला-गइला के जरुरत नइखे. राउर त बहुते कुछ निजला राउर बाप-महतारीं उघार क दीहलें रउरा ई सभ गलती मत दोहराईं. अपना बाल-बचवन के कहीं दाखिला मत कराईं. ओकनी के दोसरा बचवन से बचा के राखीं. ओकनी के कवनो नाम मत राखीं. काहे कि निजता उघार होखे के शुरुआत ओहीजे से हो जोलो जब केहू के नाम रखा जाला. अब दोसरा के ई जनला के का जरुरत बा कि रउरा के हईं, का हईं. कहीं से सब्जी मीट मत खरीदीं काहें कि ओकरा पता चल जाई कि रउरा का खाइलें आ इहो निजता उघार होखल हो जाई. कवनो जमीन-जायदाद मर-मकान मत बनाईं. काहे कि बहुते लोग जान जाई कि ई मकान केकर ह, ई जमीन केकर ह. बेटा-बेटी के शादी-बिआह का फेर में मत पड़ीं काहे कि ओहू में देखनवरु आवे लगीहें आ ऊ लोग पता ना रउरा निजता में कतना गहीरा ले घुसे से कोशिश करी. रउरा कहाँ के हईं, राउर जात-पाँति, गोत्र, अमहर-ममहर का बारे में सवाल करींहें.
ले-दे के अइसन कुछ मत करीं कि लोग रउरा बारे में जान सको. शायद एही से ई पुरान कहाउत चलत आइल बा कि – ना नीमन काम करे ना दरबारे ध के जाय.


(3 सितम्बर 2017 का दिने समाज्ञा अखबार में अँजोर भइल)

Loading

कुछ त कहीं......

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll Up