“अंगुरी में डँसले बिया नगिनिया ए ननदी सईंया के जगा द, रसे रसे उठेला लहरिया ए ननदी, सईंया के जगा द.”

अब ई बस एगो संजोगे भर हऽ कि एने कई बेर से बतकुच्चन के शुरुआत कवनो गाना के लाइन से हो जात बा. आजु बतियावल चहनी बाथा बथी ले के त पंडित महेन्दर मिसिर के लिखल ई पूरबी याद आ गइल. काहे कि एहू में दरद के लहर उठला के बात बा. संस्कृत के व्यथा भोजपुरी में आवत आवत बाथा भा बथी बन गइल. व्यथा में दुख के वर्णन होला त बाथा में दरद के चरचा. अब दरद से दुख त होला बाकिर दुख से दरद ना पीड़ा होले. अलग बात बा कि पीड़ा में दुख आ दरद दुनु शामिल होला. माथा के दरद कपारबथी कहल जाला. कपारबथी कवनो बीमारी से हो सकेला भा केहू का बतकुच्चन से. एही तरह पेटबथी पेट का बीमारी से हो सकेला त कवनो बात पर बेहिसाब हँसलो से. गोड़ भा हाथ के बथला के एगो प्रकार टटैनी कहल जाला जवना खातिर अंगरेजी में क्रैंप के इस्तेमाल होला. टटैनी पेट में ना हो सके, कपार में ना हो सके. जब होखी त हाथे भा गोड़ में. अब बथी भा दरदो कई तरह के होला. कुछ दरद टभकेला, कुछ अंगरेला, कुछ मरोड़ देला. एह दरदन के अनुभव आदमी के आए दिन होत रहेला. अधकपारी माइग्रेन के कहल जाला जवना में पूरा कपार ना अधवे कपार दुखाला, टभकेला. चिकित्सा विज्ञान दरद के एही तरह तरह के वर्णन से सही निदान पर चहुँपेला. हर दरद एक जइसन ना होखे आ अलगा अलगा दरद अलगा अलगा कारण से होले.

दरद के बात चलल त दू गो भोजपुरी कहावतो याद आ गइल. बाँझ का जनिहें परसवति के पीड़ा आ बूझेली चिलम जिनका पर चढ़ेला अंगारी. दरद उहे बूझेला जेकरा झेले पड़ेला. परसवति के पीड़ा ना त बाँझ बुझीहें, ना कुँआर, ना मरद, ना लइका. बूझ लीं कि देह के छब्बीस गो हड्डी एके संगे टूटला से जवन दरद होखी वईसने दरद होला प्रसव में. एह दरद के मुकाबिला हार्ट अटैक के दरद से कइल जा सकेला.

अब रउरा सोचत होखब कि आजु का बात बा जे दरद बथला पीड़ा के चरचा पर अटक गइल बा बतकुच्चन ? त जान जाईं कि नाक में बलतोड़ हो गइल बा आ ओकरा दरद का आगा दोसर कवनो बात दिमाग में घुसत नइखे. समय पर बतकुच्चन के कड़ी ना जा पाई त ओकर पीड़ा अउर हो जाई. एहसे सोचनी कि काहे ना आजु दरदे पीड़ा के बात कर लिहल जाव. अगिला बेर जब दरद बिला गइल होखी त कुछ अउर सोच लिहल जाई,

हईं लीं बात करत करत एगो बात आइए गइल सामने. बिलाइल आ भुलाइल. सोचीं कि कब बिलाइल कहल जाई आ कब भुलाइल. फेर भुलाइल आ बिसराइल के चरचो हो सकेला. साहित्यकारन के एह बिलाइल, भुलाइल, आ बिसराइल से हमेशा पाला पड़त रहेला. अचानक मन में कवनो विचार आइल आ ओकरा के कहीं लिख ना मरनी त जान जाईं कि ऊ अइसन बिलाई कि याद करे के सगरी कोशिश बेकार हो जाई. बिलाइल के मतलबे होला कवनो बिल में चल गइल जहाँ से ओकरा निकले के कवनो आस उमेद ना रहि जाव. भुलाइल चीझु बतुस भा विचार आजु ना त काल्हु मिले के उमेद होला. बिसरावल जाला कवनो याद के. बिसरावल आ भुलइला में सबले बड़का फरक इहे होला कि भुलाए खातिर कोशिश ना करे के पड़े बिसरावे खातिर करे के पड़ेला. तबे नू एगो शायर लिखले रहलन कि, वो मुझे भुलने की फिक्र में हैं, ये मेरी फतह है शिकस्त नहीं.

चलीं आजु एहीजे छोड़ल जाव. दरद फेर टभके लागल बा.

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2 thoughts on “बतकुच्चन १०५”
  1. बहुत नीमन आ मजेदार बतकुच्चन लागल .सबेरे -सबेरे मन ताजा हो गइल. बहुत -बहुत धन्यवाद .

कुछ त कहीं......

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