पता ना हमहन भोजपुरियन के कवन कीड़ा कटले रहेला कि 8वीं अनुसूची, 8वीं अनुसूची के माला जपत रहीला. सरकार से त सभे माँगत बा बाकिर का कबो सोचले बानी जा कि भोजपुरी के हमनी का का देत बानी जा.

भोजपुरी प्रेमियन के कई गो खाँचा में डालल जा सकेला. एक त ऊ लोग बा जे बस भोजपुरी से प्रेम करेला आ ओकरा ला काम करत रहेला. एक ऊ लोग बा जे भोजपुरी के नाम पर कुछ बना कमा लीहल चाहत बा. फेर कुछ लोग अइसनो बा जे बात त भोजपुरी के करी बाकिर हिन्दी बूके से बाज ना आई. कुछ लोग भोजपुरी के रुसवाईए में लागल रहेला ओकर कमजोरी, ओकर दोस देखावत. अब के कवना खाँचा में बा, केकरा के नीमन कहल जाव केकरा के बाउर, ई त रउरे सभे अपना अपना हिसाब से तय कर लीं. हम ना त भोजपुरी के ठेका ले के रखले बानी ना केहू हमरा के जिम्मा दिहले बा भोजपुरी ला काम करे के! अपना मन से आपन जाँगर ठेठावत, आपन पइसा लगा के, अपना मनमर्जी से काम करत रहीलें. पार लागल त कइनी ना पार लागल त मुँह तोप के सूत गइनी.

बाकिर आज अतना कुछ लिखे के जरूरत एहसे पड़ गइल कि भोजपुरी खातिर काम करे वालन में विश्व भोजपुरी सम्मेलन, विश्व भोजपुरी सम्मेलन के मुखपत्र समकालीन भोजपुरी साहित्य के नयका अंक सामने पड़ल बा आ हम देखत बानी ओहमें हिन्दी में लिखल एगो आलेख. आलेख कवनो दुसर तिसर आदमी नइखे लिखले, लिखले बाड़न पत्रिका के सह संपादक बलभद्र जी, आ ओकरा के शान से चुनले बाड़न पत्रिका में जगह देबे खातिर संपादक अरूणेश नीरन. नीरन जी के बिना भोजपुरी पता ना कहवाँ हेराइल बिलाइल रहीत. ई त धन्यभाग भोजपुरी के जे एकरा अरुणेश नीरन जी जइसन लोग भेंटा गइल. विश्व भोजपुरी सम्मेलन के केहु नाम लेब चाहे मत लेब, बाकिर भोजपुरी के धंधा में लागल लोग नीरन के बिसरा ना सके. हँ त इहे अरुण जी समकालीन भोजपुरी साहित्य में हिन्दी में लिखल एगो आलेख के शान से जगहा दिहले बाड़न काहे कि आलेख उनुका सह संपादक बलभद्र के लिखल ह आ अपना लोग के जे आगे ना बढ़ावे त ऊ आगे कइसे रही.

बस हमरा के केहु समुझा सके त समुझा देव कि भोजपुरी के समकालीन साहित्य में हिन्दी के कवन काम? कवनो हिन्दी पत्रिका में इहे लेख छपल रहीत त हमहीं एकर गुणगान करे में कवनो कोर कसर ना छोड़ले रहतीं. बाकिर भोजपुरी पत्रिका में छपल बरदाश्त नइखे होखत. भोजपुरी पत्रिका में छपे खातिर कवनो रचना के भोजपुरी में होखल पहिला शर्त होखे के चाहीं. अब या त संपादक जी के एह पर नजर ना पड़ल भा अपना व्यस्तता का चलते उनुका इहो ना मालूम होखी कि उनका संगठन के मुखपत्र में छपत का बा. हो सकेला कि अबले एह लेख के देखलहुं ना होखब.

हमहूं एह बात के अतना बेहयाई से लिखत बानी त एही भरोसे कि भोजपुरी के कर्णधारन का लगे समय ना होखे भोजपुरी पढ़े के. ऊ लोग त हिन्दी भा अंगरेजी में आपन बात कहेला, सोचेला. नीरनो जी का जिम्मे अतना काम बा कि का करसु. कबो मारीशस, कबो सूरीनाम, कबो एह शहर त कबो ओह शहर. कतना आ का का करसु अकेला नीरन!

बाकिर जे लोग एह लेख के पढ़त बा से त बता सकी कि विश्व भोजपुरी सम्मेलन के मुखपत्र में ओकरे सह संपादक के लिखल हिन्दी आलेख का बारे में का कहल जाव. मखमल में टाट के पैबन्द कि टाट में मखमल के? हम ई नइखीं मानत कि बलभद्र के भोजपुरी लिखे ना आवत होखी. भोजपुरी ना आइत त भोजपुरी कविता पर अइसन बढ़िया आलेख कइसे लिखाइल रहीत. त फेर एकरा के हिन्दी में काहे लिखलन, आ लिखलन त समकालीन भोजपुरी साहित्य में काहे शामिल करवलन? का एह चलते कि ऊ एकर सह संपादक हउवन?

जबाब सभके मिल के खोजे के बा. आ जबाब खोजल भोजपुरी के 8वीं अनुसूची में शामिल करावे से पहिले कर लीहल जरुरी होखे के चाहीं.

– ओम प्रकाश सिंह

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कुछ त कहीं......

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