चुप रहऽ, अदालत का खिलाफ मत बोलऽ – बतंगड़ 59

– ओ. पी. सिंह

याद करावल अब जरुरी हो गइल बा कि अदालत का खिलाफ कुछ बोलल नुकसानदायक हो सकेला. देखले बानी कि बड़हन-बड़हन अपराधी कतना आराम से कहेलें कि उनुका देश के अदालत प पूरा भरोसा बा. निर्दोष लोग भरोसा करे चाहे मत करे ओही लोग का नाम प बहुते अपराधी छूट जालें. काहें कि हमहन के अदालत ई मान के चलेले कि चाहे हजार गो अपराधी छूट जासु बाकिर कवनो निर्दोष के सजा ना होखे के चाहीं. अब अइसना अदालत खातिर आदर के भाव ना राखल गलत कहाई आ अदालत एह बात प बहुते कड़ा रुख राखेले कि केहू ओकर अपमान मत कर जाव. सहारा श्री के एह बात के पता बहुत देर का बाद चलल ना त अतना दिन ले जेहल के सुख भोगे के ना पड़ीत उनुका.
अब रउरा देश के, देश के झण्डा के, राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होखीं भी मत होखीं ई रउरा मन प बा बाकिर एह भरोसे मत रहीं कि जब अदालत में मी-लार्ड पधारसु त खड़ा होके उनुका के सम्मान दीहलो रउरा मने प बा. ओहिजा चुपचाप खड़ा हो जाईं ना त कनटेंप्ट लाग जाई. कवनो आतंकी के फाँसी रोकवावे वाला चाहे त अधरतियो में अदालत खोलवा सकेला आ महामहिम लोग ओह प बाकायदा सुनवाई क ली. एगो फोन प जमानत दे दी, कश्मीरी पण्डितन के केस पुरान बता के पल्ला झाड़ ली बाकिर रोहिंग्या मुद्दा प पुरा धेयान दी. बीफ के मामला आदमी के खानपान के आजादी मान ली, बीच सड़क प, रेल लाइन प, जहवें मन करे तहवें इबादल के छूट दे दी. ई सब अदालत के हिसाब से सोचे विचारे के मामला ना होखी.
बाकिर खबरदार जे फगुआ प रंग खेललऽ, दीयरी बाती का दिने पटाखा फोड़लऽ त अदालत के टेढ़ नजर तहरा प जरुर पड़ी. छठ का मौका प नदी तालाब किनारे अरघा दीहला प ग्रीन ट्रिब्युनल के आपत्ति हो जाई काहे कि बहुते सोच विचार के ओकरा नाम में ग्रीन राखल गइल बा. आ ग्रीन के खयाल राखल बहुते जरुरी बी एह देश में. अदालत आ अखबार अकिलियते का अकिल प चलेलें आ ओह लोग ला हर कायदा कानून परम्परा के तूड़ सकेलें. आ एही परम्परा तूड़े का नाम प हिन्दू परबनो के परम्परा तूड़त रहे के हक मिल गइल बा कोर्ट के. अब त केन्द्रो सरकार बाकायदा अदालत में हलफनामा दाखिल क के कहले बिया कि मी-लार्ड रउरा सभे बहुते अधिका बेंवतगर बना लिहले बानी अपना के. संविधानो में जतना ना सोचल गइल ओकरो ले बेसी अधिकार रउरा सभे हथिया लिहले बानी. जब सरकार मान लिहलसि त हमनियो के मान लेबे के चाहीं कि मी-लार्ड लोग जवन चाहे वन कर सकेला आ केहू के ओह प कुछ बोले के हक नइखे.
हद त ई हो गइल कि अब अदालत इहो तय करे लागल बिया कि शिवजी प कवना तरह के आ कतना पानी डाल सकीलें रउरा सभे. पता ना कानून के कवना किताब में बतावल गइल बा कि शिवजी के आरओ वाला पानीए चढ़ावल जा सकेला, नदी तालाब इनार पोखरा के पानी ना. हमरा त लागत बा कि अदालत देखल चाहत बिया कि हिन्दू कतना बरदाश्त कर सकेलें. ऊ हमहन के जानबूझु के कनटेंप्ट में अझूरावल चाहत बिया आ एहसे सावधान रहला के जरुरत बा. अदालत कतनो उकसावे, कतनो खोभे चिहुँकला करहला के जरुरत नइखे. अगर कुछुवो बोलब त फँस जाएब. कोर्ट में करोड़ों मामिला लटकल होखे त लटकल रहे, मी लार्ड लोग के जब फुरसत मिली तब देख सुन ली लोग ओह केसन के. बाकिर अबहीं त ई तय कइल बेसी जरुरी बा कि पूजा में आधा लीटर पानी से अधिका ना चढ़ावल जा सके.
एह सभका बावजूद तू चुप रहऽ, अदालत का खिलाफ मत बोलऽ. हमहूं तय कइले बानी कि कुछ ना बोलब. महामहिम लोग जवन चाहे तवन फैसला देत रहो.
(अतवार 29 अक्टूबर 2017 का दिने कोलकाता से छपे वाला अखबार समाज्ञा में अँजोर भइल.)

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