विमर्श : भोजपुरी गीत के भाव-भंगिमा
– डॉ अशोक द्विवेदी कविता के बारे में साहित्य शास्त्र के आचार्य लोगन के कहनाम बा कि कविता शब्द-अर्थ के आपुसी तनाव, संगति आ सुघराई से भरल अभिव्यक्ति हऽ। कवि…
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– डॉ अशोक द्विवेदी कविता के बारे में साहित्य शास्त्र के आचार्य लोगन के कहनाम बा कि कविता शब्द-अर्थ के आपुसी तनाव, संगति आ सुघराई से भरल अभिव्यक्ति हऽ। कवि…
– अशोक द्विवेदी ओढ़नी पियर, चुनरिया हरियर / फिरु सरेहि अगराइल जाये क बेरिया माघ हिलवलस, रितु बसन्त के आइल! फुरसत कहाँ कि बिगड़त रिश्ता, प्रेम पियाइ बचा ले सब,…
(वसन्त पंचमी, 1ली फरवरी 2017, प मंगल कामना करत) – अशोक द्विवेदी कठुआइल उछाह लोगन के, मेहराइल कन -कन कवन गीत हम गाईं बसन्ती पियरी रँगे न मन !! हर…
(भोजपुरी गीत) – डा. अशोक द्विवेदी भीरि पड़ी केतनो, न कबों सिहरइहें.. रोज-रोज काका टहल ओरियइहें! भोरहीं से संझा ले, हाड़ गली बहरी जरसी छेदहिया लड़ेले सितलहरी लागे जमराजो से,…
(ललित-व्यंग) – डा0 अशोक द्विवेदी आदमी आखिर आदमी हs — अपना मूल सोभाव आ प्रवृत्तियन से जुड़ल-बन्हाइल। मोह-ममता के लस्का आ कुछ कुछ आदत से लचार। ओकर परम ललसा ई…
– अशोक द्विवेदी ना जुड़वावे नीर जुड़-छँहियो में, बहुत उमस लागे. चैन लगे बेचैन, देश में बरिसत रस नीरस लागे! बुधि, बल, बेंवत, चाकर… पद, सुख, सुविधा, धन, पदवी के…
– डा. अशोक द्विवेदी गँवई लोक में पलल-बढ़ल मनई, अगर तनिको संवेदनशील होई आ हृदय-संबाद के मरम बूझे वाला होई, त अपना लोक के स्वर का नेह-नाता आ हिरऊ -भाव…
– डा. अशोक द्विवेदी छोट घर-बार में हमहन क, अब समाव कहाँ नेह ऊ बा कहाँ अपनन में, ऊ लगाव कहाँ जीउ टेघरे लगे गैरन के लोर चुवला पर अब…
– डा. अशोक द्विवेदी बाहुबलियन से चलत बा काम जब सरकार के का सुनी, केहू भला कमजोर के, लाचार के ! हर खबर में बा मसाला, पढ़ीं चाहे, मत पढ़ीं…
– डा0 अशोक द्विवेदी सबुर धरीं कबले , हमहन के मत कंगाल करीं साठ बरिस किरसवनी/ अब मत जीयल काल करीं ! नोच -चोंथ के खा गइनी सब / कुछऊ…
– डाॅ. अशोक द्विवेदी रतिया झरेले जलबुनिया फजीरे बनि झालर झरे फेरु उतरेले भुइंयाँ किरिनियाँ सरेहिया में मोती चरे ! सुति उठि दउरेले नन्हकी उघारे गोड़े दादी धरे बुला एही…