रोज-रोज काका टहल ओरियइहें !
(भोजपुरी गीत) – डा. अशोक द्विवेदी भीरि पड़ी केतनो, न कबों सिहरइहें.. रोज-रोज काका टहल ओरियइहें! भोरहीं से संझा ले, हाड़ गली बहरी जरसी छेदहिया लड़ेले सितलहरी लागे जमराजो से,…
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(भोजपुरी गीत) – डा. अशोक द्विवेदी भीरि पड़ी केतनो, न कबों सिहरइहें.. रोज-रोज काका टहल ओरियइहें! भोरहीं से संझा ले, हाड़ गली बहरी जरसी छेदहिया लड़ेले सितलहरी लागे जमराजो से,…
(ललित-व्यंग) – डा0 अशोक द्विवेदी आदमी आखिर आदमी हs — अपना मूल सोभाव आ प्रवृत्तियन से जुड़ल-बन्हाइल। मोह-ममता के लस्का आ कुछ कुछ आदत से लचार। ओकर परम ललसा ई…
– अशोक द्विवेदी ना जुड़वावे नीर जुड़-छँहियो में, बहुत उमस लागे. चैन लगे बेचैन, देश में बरिसत रस नीरस लागे! बुधि, बल, बेंवत, चाकर… पद, सुख, सुविधा, धन, पदवी के…
– डा. अशोक द्विवेदी गँवई लोक में पलल-बढ़ल मनई, अगर तनिको संवेदनशील होई आ हृदय-संबाद के मरम बूझे वाला होई, त अपना लोक के स्वर का नेह-नाता आ हिरऊ -भाव…
– डा. अशोक द्विवेदी छोट घर-बार में हमहन क, अब समाव कहाँ नेह ऊ बा कहाँ अपनन में, ऊ लगाव कहाँ जीउ टेघरे लगे गैरन के लोर चुवला पर अब…
– डा. अशोक द्विवेदी बाहुबलियन से चलत बा काम जब सरकार के का सुनी, केहू भला कमजोर के, लाचार के ! हर खबर में बा मसाला, पढ़ीं चाहे, मत पढ़ीं…
– डा0 अशोक द्विवेदी सबुर धरीं कबले , हमहन के मत कंगाल करीं साठ बरिस किरसवनी/ अब मत जीयल काल करीं ! नोच -चोंथ के खा गइनी सब / कुछऊ…
– डाॅ. अशोक द्विवेदी रतिया झरेले जलबुनिया फजीरे बनि झालर झरे फेरु उतरेले भुइंयाँ किरिनियाँ सरेहिया में मोती चरे ! सुति उठि दउरेले नन्हकी उघारे गोड़े दादी धरे बुला एही…
– डा0 अशोक द्विवेदी सुतल बा जागि के जे, ओके का जगइबऽ तूँ ? घीव गोंइठा में भला कतना ले सुखइबऽ तूँ ? बनल बा बेंग इहाँ कतने लोग कुइंयाँ…
– डा0 अशोक द्विवेदी हुक्मरानन का खुशी पर फेरु मिट जाई समाज अपना अपना घर का आगा, खोन ली खाई समाज । कर चुकल बा आदमी तय सफर लाखन कोस…
– डा0 अशोक द्विवेदी एह बेशरम-अनेति पर अउँजा के, का लिखीं उरुवा लिखीं, उजबक लिखीं कि बेहया लिखीं लंपट आ नीच लोग बा इहवाँ गिरोहबन्द सोझबक शरीफ के बा बहुत…