नीक-जबून – 10 ( विमल के डायरी )


– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

बोले खातिर बोलल

जब से नोकरी के शुरुआत भइल तबे से देखत आ रहल बानी. आजु तक एहमें कवनो कमी नइखे आइल, बढ़ंतिए भइल बा. जरूरत खातिर बोलेवाला कम मिलले. लोग बूझसु कि हमहूँ बोलींले, अइसने लोग ढेर लउकले. जब-जब जाएके परेला सेवाकालीन प्रशिक्षण शिविर में, तब-तब ई संकट झेले के मन बनाके जाईंले. कई बेर त धन्यवाद ज्ञापन कवनो अभिभाषणो से बड़ हो जाला. जो केहू बहिर्मुखी व्यक्तित्ववाला अध्यापक के मंच संचालन के काम मिल गइल (माने ऊ ले लिहले) त समुझीं कि रहल-सहल मए कमी पूरा हो गइल. कवि के मौलिक कविता जतना सुने के मिली ओकरा दुगुना दोसरा के कविता पँचफोरनजी सुनाइबि. बिना भूमिका के सुना के हम त महटिया जाईंले बाकिर बड़ा पकावेला लोग. एहू पारी अनुभव अइसने मिलल. रोज दस घंटा के पढाई अधिकतर 12-13 घंटा हो जाई. सुबह जोग से शुरू होके रात में ध्यान तक के सफर बहुत नीक लागल. ग्वालियर जइसन जगह में, जहाँ गरमियो ओसहीं परत रहे, बुझाइल ना. बहुत सहज, बहुत स्वाभाविक रहल ई प्रशिक्षण शिविर. बहुत कुछ भेंटाइल. कुछ पाके आ कुछ देके मन के बहुत संतोष मिलल.

धन्य बानी तुलसीदासजी

24 तारीख के लगभग 2 घंटा तक हिंदी के 45 मूर्धन्य विद्वान लोगन का साथे रामचरितमानस पर डॉक्टर उमाशंकर पचौरी के व्याख्यान सुने के मोका मिलल. रामचरितमानस पर अतना बढ़िया व्याख्यान हम अबहीं ले ना सुनले रहीं, चाहे सामने बइठि के भा टीवी पर. बहुत संतोष मिलल. मन आउर आत्मा, दूनो के काम भर खुराक मिलल. हमनी का आग्रह पर उहाँ का फेरु एक बार 27 तारीख के अइलीं, फेरु मन तृप्त भइल. ए पारी के विषय रहे – रामचरितमानस में जीवन मूल्य. सचमुच उहाँ के भाषण बेजोड़ रहे. रामचरितमानस में भारतीय शिक्षा पद्धति आ रामराज्य के स्वरूप पर वहाँ के जब हम व्याख्यान सुनलीं त हम उहाँके फैन हो गइलीं. एह दृष्टि से रामचरितमानस के हम कबो ना पढ़ले रहीं ना सोचलही रहीं. एगो बढ़िया दृष्टि मिलल रामचरितमानस के फेरु से पढ़े के. धन्य बानी तुलसीदासजी. साहित्य, समाज, संस्कृति आउर जीवन के कवनो संदर्भ नइखे छूटल, जवना प उहाँके स्थापना ना होखे. का बूढ़, का लइका, का पढ़ल आ का अनपढ़, सभ खातिर रामचरितमानस में नियामक सूक्ति मिल जाई.

बहुत मुश्किल होला साँच सूनल आ बोलल

बहुत मुश्किल होला साँच सूनल आ ओकरो से कठिन होला साँच बोलल. आजु अपना एगो आत्मीय के जब एगो सत्यकथा का माध्यम से एगो कानून के जानकारी दिहलीं त उनुका नीक ना, बाउर लागल. ऊ दिल प ले लिहले. बाद में जब हमरा एह बात के पता चलल त हमरा अइसन लागल जइसे कवनो पाप हो गइल हमसे. अबहिंयो लोगन के स्थिति ईहे बा कि जवन बात आ काम उनका सोहावन लागी, ऊहे साँच ह, ऊहे कानूनो-सम्मत. ई देखि आ सोचिके मन मेहराइल बा. नीमन-नीमन लोग जे साँच के कटु सत्य कहिके ओकर दोहाई देत ना थाके आ अपना के ओकर पक्षधर मानेला, ओकरो मिठबोलवे नीक लागेला.

जाति चिन्हावल

जेकरा के अतना गंभीर मानत रहलीं, ऊ एगो छोट बात पर आपन जाति चिन्हा दिहलसि. एकरा बाद कई गो लोग लाइन में लउकल. पहिले के कई गो यादि ताजा हो गइली सन. बार-बार हमरा मन में ई बात उठतिया कि लोग जब जानतारे कि आजु ना काल्हु ई बात फुटबे करी, एक दिन सभका सोझा पैजामा खुलहीं के बा, तबो काहें अपना तनिका फायदा भा दोसरा का परेशानी खातिर लोग जाति चिन्हा देलन. साइत लोग आपन सुभाव ना छोड़ पावसु.

परोजन, बेंजन आ स्टाल

आजु अइसहीं बात चल गइल परोजन पर. हम रामेंदर से कहलीं कि ई कइसन लागी जो तिलक में पूजा, हवन ओगैरह बढ़िया से होखो आ एक स एक रुपया तिलक में चढ़ो. जेकर ढेर सवख होखे ऊ चानी के एकाध गो सिक्का चढ़वा लेउ. ऊ कहले कि बिचार त बहुत नीमन बा बाकिर मानी के ? कुछ दिन पहिले सोशल साइट पर एगो मारवाड़ी संगठन का ओर से एगो पोस्ट वायरल भइल रहे, “जवना परोजन में खाएके छव गो बेंजन से जो एकहू अधिका मिली त ओह परोजन के बहिष्कार कइल जाई.“ हमरा दिमाग पर ई बात जइसे छवा गइल रहे. हमरा मुँह से निकलल – “हमहूँ ईहे करबि, चाहे जे होखे.” बफे सिस्टम से त मन अइसहीं पिनकि जाला. भोजन आराम से करे के चीज हटे, ई दउरा-दउरी कइसन ? एगो त पलेट अइसहीं मुँह बिरावत रहेला, तनिका बैलेंस बिगरल कि आपन कम दोसरा के कपड़ा गइल आ ऊपर से खड़े-खड़े. टूङीं कम आ अपना के बचाईं ज्यादा. स्टाल त भारतीय संस्कृति से बिल्कुले अलग लागेला. जब खाए से पहिले पेट आधा-सूधी भरिए जाई त फेरु मन से भोजन का करिहें लोग ? आ जो मन से भोजन ना करिहन लोग त बेमारी घलुआ में.

रेलवे के साहित्य सम्मान

29 मई के भोरहीं कोलकाता खातिर निकलि गइलीं जा हमनी के. ग्वालियर का वेटिंग रूम में ग्वालियर क्षेत्र के हिंदी के महान साहित्यकार लोगन के ससम्मान प्रदर्शित सूची पढ़ि आ देखिके मन अगरा गइल. . ओहिजा का रेल प्रमंडल का प्रति मन में बहुत आदर के भाव आइल. जो अइसहीं हर प्रमुख स्टेशनन पर एह तरह के काम प्रदर्शित होखित त वर्तमान आ भावी पीढ़ी के बहुत लाभ पहुँचित. ईहे सोचत-सोचत गाड़ी बाँदा स्टेशनो पार क गइलि. हमनी का गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण करत उहाँका जन्म आ कर्मभूमि के प्रणाम करत विश्राम का मुद्रा में आ गइलीं जा.

कब तक बलि चढ़त रही ?

9 जून के रामगढ़ जिला के रजरप्पा में जाए के सुजोग बनल. छिन्नमस्तिका माई के दर्शन करे के बहुत कोशिश कइलीं. तीन गो पांडा माई का मूर्ति का सोझा खड़ा रहन. अइसन लागत रहे जइसे ऊ लोग मन बना लेले रहे कि दरशन ना होखे दिहल जाई. हमरो जिद रहे, दरशन त कइए के रहबि. बाकिर सफलता ना मिलल. मूर्ति का नाम पर खाली अन्हार रहे, कुछऊ बुझाइल ना. मन कसमसा के रहि गइल. बाहर अइलीं त सचाई के पता चलल.
बाहर अइला पर मंदिर का आसपास माछी लउकली सन. ई उहे मंदिर हटे, जहाँ कबो हमरा माछी ना लउकल रही सन. पहिले लोग कहिहें कि ओहिजा बलि लगातार होत रहेले बाकिर एकहूँ माछी ना लउक सन. हम ओहिजा के लोगन से बात कइलीं. लोग बतावल कि जबसे एहिजा से मूर्ति चोरी भइल बिया, तबे से एहिजा माछी लउके लागल बाड़ी सन. तब जाके पांडा लोगन के हरकत समझ में आइल. जय हो छिन्नमस्तिका माई.

भोजपुरी के तीर्थ-स्थल

10 जून के खाली एके दिन हमरा पटना में रहे के मिलल. काम ढेर रहे आ टाइम कम. राजीव जी का ऑफिस में कई गो साहित्यकार आ कलाकार लोगन के जुटान रहे. हमार अहोभागि कि हमहूँ शामिल हो गइलीं ओहमें. आपन काव्य संग्रह ‘फगुआ के पहरा’ उहाँ सभके भेंट कइके हम गौरवान्वित भइलीं. कवनो एक जगह पर भोजपुरी के पत्र-पत्रिकन आ किताबन के उपलब्धि पर कुछ चिंतन-मनन भइल. कल्पना, आदर्श आ बेवहार के कई गो संदर्भ खँघरइले सन. हमरा लागल जे भोजपुरी के कवनो तीर्थ-स्थल में बइठल बानी.

एह उतजोग से पतई के गाँज ना उटकेराई

दु-चार दिन पहिले बक्सर में गवनिहार, संगीतकार आ गीतकार लोगन के एगो बरियार बइठकी भइलि. हमहूँ आमंत्रित रहीं बाकिर सपरिवार ऑलरेडी रिजर्वेशन रहला का कारन संभव ना रहे. केहू पेपर के कटिंग भेजल. हमरा त जइसे काठ मारि गइल. ओहमें कुछ अइसनो नाम रहे, जेकरा गवनई से अश्लीलता के निकाल दिहल जाई त उनुका के केहू सुनबे ना करी. अइसन लोगन के शरम काहें ना लागेला ?

एह अखबार के कटिंग में जतना नाम बा, ओहमें से एकाध गो के त सुनते हमार रोंवा खाड़ हो जाला. दु-एक बरिस पहिले बक्सरे में अपना बड़ भाई सतीश जी किहाँ जात रहीं. रेलवे कॉलोनी में एगो तथाकथित प्रतिष्ठित गायक के रामायन शैली के गवनई होत रहे. सुने खातिर खड़ा हो गइलीं आ कुछुए देर का बाद कान में अङुरी देके ओहिजा से जाए के परल. हमरा बिचित्र एहू से लागल कि कॉलोनी में लोग सपरिवार रहेला आ ओहिजा अश्लील, कामोत्तेजक आ अभद्र भाषा के प्रयोग करत आ ओही प्रकार के कहानी सुनाके लोगन के आनंदित कइल कवना सभ्य व्यक्ति के काम हो सकता ? हमरा एह तरह के काम कवनो नीच हरकत से कम ना लागे. शृंगार रस, फुहरकम आ गारी के अंतर एह तरह के गायक आ गीतकार लोग जहिया समुझि जाई, ओही दिने ई बिपति टरि जाई बाकिर समुझावे के ई उपकार करी के ? जे करी ऊ अपना के नोचवावे आ उजरवावे खातिर तेयार रहो. सभ या त दोसरा के मुँह ताकता, नाहीं त हवा में तीर चलावता बाकिर अतना त साफ बा कि एह उतजोग से पतई के गाँज ना उटकेराई.

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