उल्था आ उलटबाँसि (बतकुच्चन – 206)


आजु ढेर दिना बाद बतकुच्चन लिखे बइठल बानी. करीब पाँच बरिस पहिले हर हफ्ता एगो बतकुच्चन लिखल मजबूरी जइसन रहत रहे. काहें कि कलकत्ता (आजु के कोलकाता) से छपे वाली प्रतिष्ठित हिन्दी समाचार पत्र सन्मार्ग में हर अतवार के निकलल करे हमार स्तम्भ. फेरु कुछ अइसन हालात बनि गइल कि अखबार में छपे के क्रम तूड़े के पड़ि गइल. तब से बतकुच्चन करे के आदत भलहीं ना गइल बाकिर बतकुच्चन लिखलका जरुरे छूटि गइल. ढेर दिन बाद एक बेर भोजपुरी पत्रिका पाती के सम्पादक अशोक द्विवेदी जी के आदेश पर एगो कड़ी लिख के भेजी बाकिर कड़ी जुड़ ना सकल.

अब फेरु एक बेर कोशिश करत बानी कि बतकुच्चन लिखे के क्रम शुरु हो जाव. आ बतकुच्चन करे के एहला पड़ि गइल कि उल्था आ अनुवाद के चरचा उठ गइल एक दिन. कई गो शब्दन के मतलब कई बेर कईगो निकलल करेला जइसे कि हरि हरि के देखलसि त हरि में कूद गइल. अब हर हरि के मतलब अलग बा एहमें. आ –
चरण धरत चिंता करत चितवत चारहु ओर
सुबरन को खोजत फिरत कवि कामी और चोर.

त उल्था के मतलब अनुवादो होला आ कवनो बाति भा चीझु के उलटावलो. अब उलटावे आ अनुवाद में साम्य खोजल मुश्किल ना होखे के चाहीं. काहें कि अनुवाद एक भाषा से दोसरा भाषा में कइल जाला आ एह काम के उलटावलो माने में कवनो दिक्कत ना होखे के चाहीं. बाकिर कवनो शब्द के प्रयोग करे से पहिले एकरो पर धेयान दीहल जरुरी होखे के चाहीं कि ओह शब्द के पढ़े आ सुने वाला लोगन में से अधिका लोग कवन मतलब निकाली. अब रउरा उलटबाँसि करे चलीं आ सुने वाला उलुटा बाँस करे पड़ि जाव त अपना हालात के अन्दाजा कर सकीलें. आजुकाल्हु उलटबाँसि करे वाला, भा कहीं कि स्टैंडिगं कॉमेडियनन का संगे इहे हो रहल बा. ऊ त हँसी-मजाक करे खातिर गंभीरो मसला के हलुक बना के परोसेलें बाकिर कुछ सुनेवाला ओकरा से अतना नाराज हो जालें कि ओकरा के चहेट मारेलें उलुटा बाँसि करे ला. अब ई मत कहीं कि उलुटा बाँसि करे के मतलब का होला !

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