Tag: कविता.

हमहु बोली बोलब

– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी हमरा मालूम न नीमन-बाउर, भर दिन कलई खोलब. हमहु बोली बोलब. चीचरी परलका कागज लाइब, दुअरा बईठ के किरिया खाइब, मंच पर चढ़के दांत चियारब, जी…

पिन्ड छोड़ दीं अब्बो से; मत अँखिया लाल करीं

– डा0 अशोक द्विवेदी सबुर धरीं कबले , हमहन के मत कंगाल करीं साठ बरिस किरसवनी/ अब मत जीयल काल करीं ! नोच -चोंथ के खा गइनी सब / कुछऊ…

शरद सुहावन

– डाॅ. अशोक द्विवेदी रतिया झरेले जलबुनिया फजीरे बनि झालर झरे फेरु उतरेले भुइंयाँ किरिनियाँ सरेहिया में मोती चरे ! सुति उठि दउरेले नन्हकी उघारे गोड़े दादी धरे बुला एही…

बाबूजी बहुते कुछ समुझवनी ह

– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी आजु हमरा के नियरा बईठा के बाबूजी बहुते कुछ समुझवनी ह । दुनियाँ – समाज के रहन सभ हमरा के विस्तार मे बतवनी ह ॥ बाबूजी…