वरमाला
– कामता प्रसाद ओझा ‘दिव्य’ अन्हरिया….. घोर अन्हरिया…. भादो के अन्हरिया राति. छपनो कोटि बरखा जइसे सरग में छेद हो गइल होखे. कबहीं कबहीं कड़कड़ा के चमकि जाता त बुझाता…
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– कामता प्रसाद ओझा ‘दिव्य’ अन्हरिया….. घोर अन्हरिया…. भादो के अन्हरिया राति. छपनो कोटि बरखा जइसे सरग में छेद हो गइल होखे. कबहीं कबहीं कड़कड़ा के चमकि जाता त बुझाता…
– गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’ पाकिस्तान के मारि के हमार सिपाही ओकर छक्का छोड़ा दिहलन सऽ. चीन क कुल्हि चल्हाँकी भुला गइल. मिठाई खाइब… हो… हो. ईहे हई नगरी, जहाँ बाड़ी…
– ईश्वरचन्द्र सिन्हा सिंहवाहिनी देवी के सालाना सिंगार के समय माई के दरबार में जब चम्पा बाई अलाप लेके भैरवी सुरू कइलिन, त उहाँ बइठल लोगन क हाथ अनजाने में…
– डॉ॰ उमेशजी ओझा अरे ए रबिन्दरा, आपन दिमाग ठीक राख, जमीन प रहेके सीख, हवा में मत उड़. सब कोर्इ के इजत होला. जोऽ, आ लईकी देख आउ आ…
– देवेन्द्र कुमार गुलजारी लाल जी आपन संघतिया मनमौजी के संगे साप्ताहिक बाजार मंगला हाट में हफ्ता भर के जरूरी सामान के खरीदारी करे खातिर गइल रहलें. दूनो संघतिया बाजार…
– डॉ॰ उमेशजी ओझा एगो छोटहन गांव में दीपक अपना धर्मपत्नी सुरभी आ एगो 14 बरीस के बेटा विशाल के साथे रहत रहले. दीपक के कतही नोकरी ना लागल रहे.…
– डॉ॰ उमेशजी ओझा नीलम के गोड़ धरती प ना पड़त रहे. खुशी के मारे एने से ओने उछलत कुदत चलत रही. एह घरी के सभ लइकी आ लइका के…
– संतोष कुमार ‘इहाँ हमरा से बड़का हीरो कवनो बा का ? हम अभिए चाहीं त निमन निमन जाने के ठीक कर दीं’ – किसुन दारु पी के अपना घर…
– डा॰ गोरख प्रसाद मस्ताना लोर से भरल आँख अउरी मुँह पर पसरल उदासी साफ साफ झलका देला कि कवनो परानी दुख में केतना गोताइल बा. बेयाकुल चिरई के बोली…
– नीमन सिंह बात १९८० के बरसात के समय के ह. हमरा खेत में धान रोपे खातिर बेड़ार में बिया उखाड़े लागल मजदूर बिया उखाड़त रहले सन. बगल में भिंडा…
– केशव मोहन पाण्डेय जमाना बदलऽता, एकर लछन शहर से दूर गाँवो-देहात में लउकऽता. अब ठेंपों छाप लोग के बात-व्यवहार में जमाना के नवका रूप झलकेला. सुन्नर बाबा ढेर पढ़ले…