नीक-जबून – 11 ( विमल के डायरी )


– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

बड़की बलिहार आ नदिया के पार

आजुए रामेंद्र के फोन आइल रहल हा कि बड़की बलिहार गइल रहलीं हा. नाँव सुनते ‘नदिया के पार’ फिल्म के याद आ गइल. एह सुपरहिट फिल्म के कहानी ओही गाँव के हटे. लोग कहेला कि एकदम साँच. केशव प्रसाद मिश्र के उपन्यास ‘कोहबर की शर्त’ पर फिल्म बनल. पटना के अशोक टॉकीज में एक सइ दिन पूरा भइला का बादो भीड़ के कवनो थाह ना रहे. ओह घरी पटना में सीनियर एसपी का रूप में कुणाल जी नया-नया आइल रहीं. सभ केहू में एगो डर समाइल रहे कि पता ना कब नवका एसपी आके पँजरे खाड़ हो जइहें. सिनेमा हॉल पर अपनहीं लाइन सीधा रहे, कवनो शोर ना. हमनी का एकाध बेर लवटि आइल रहीं जा. अंत में एक दिन अपना एगो मित्र का भैने (बहिन के बेटी) का हाथे टिकट कटवा के फिलिम देखलीं जा. ‘कवन दिशा में लेके चला रे बटोहिया’ गीत हर किशोर आ जवान का सपना में अक्सर चलत रही. बड़की बलिहार उत्तर प्रदेश में बा. ओहिजा के मिसिर लोग सुअराटाँड़ के मिसिर ह लोग, हमरा गाँव (बड़कागाँव) के दक्खिन टोला ले गइल रहे लोग. केशव प्रसाद मिश्रो जी ओहिजे के रहीं.

जीवन में कबो दबाइबि मत केहू के

एही क्रम में कृष्ण बिहारी मिश्र जी याद आ गइलीं. जब हम एम.ए. करत रहलीं त उहाँका बोटनी बिभाग में प्रोफेसर रहीं. बड़ा गंभीर व्यक्तित्व. मिलहूँ में सोचे के परे. ईहों का प्रकारांतर से गाँवे के रहीं, माने बड़की बलिहार के. काका के आदेश रहे कि कबो टाइम निकालि के जरूर मिल लिह. बेरा-कुबेरा कबो जरूरतो पर सकता. आपन आदमी हईं, गार्जियन नियन रहबि. कवनो बाप दूर से अइसन निर्देश देके तनिका निश्चिंत हो जाला. एक दिन गइलीं उहाँका क्वार्टर में. बड़ा आवभगत भइल एह विद्यार्थी के. घर के हर सदस्य के जानकारी हो गइल रहे कि इहाँका हमरा गुरुघराना से आइल बानी, खाली हमरा के छोड़ि के. हमरा ई बात तब बुझाइल जब खाना खतम भइला का बाद हँ.. हँ..करत-करत हमरा जूठ बरतन में अच्छा-खासा भोजन के सामान धरा गइल. माने ऊ अब परसादी हो गइल, उहाँका परिवार के हर आदिमी ओहके खाई. हम गाँवके लइका, अतहत बड़ आदमी किहाँ… हमरा त कठेया मार दिहलस. ओकरा बाद हम उहाँ किहाँ बहुत कम जाईं, आ जाईं त अइसना स्थिति में कि कुछ खाए-पिएके मति परो. रीजल्ट निकलला का बाद जब अंतिम दिन हम उहाँसे मिले गइल रहीं त उहाँ के बाति आजुओ यादि बा – “देखीं, रउँआ के केहू दबवले नइखे, रउँओ अपना जीवन में कबो दबाइबि मत केहू के.” पता ना एह घरी उहाँका कहँवा बानी, बाकिर उहाँके यादि कइके मन भरि आवता आ मन करता कि मिलिके कहीं कि रउरा आदेश के अक्षरश: पालन भइल बा. ओह काँच उमिरि के सलाह हमरा सुभावके अंग बनि गइल.

दुर्गापुर में रहीं त कलकत्ता (अब कोलकाता) के कृष्ण बिहारी मिश्र जी से मिले के इच्छा प्रबल रहे. हमार स्पेशल पेपर हिंदी पत्रकारिता रहे आ ओह पर इहाँके शोध-ग्रंथ हम खूब पढ़ले रहीं. ईहों का बड़किए बलिहार के रहीं. एहसे प्रेम ढेर रहे. कलकत्ता अइला पर अपना एगो मित्र उपाध्याय जी से उहाँका बारे में बहुत जानकारी मिलल. उहाँके कई गो किताबन के भी देखे-पढ़ेके मोका मिलल. सॉल्ट लेक से बैरकपुर आ गइला का बाद कोलकाता जाए में बड़ा असकति लागे. रोज खाली पलाने बने आ कवनो ना कवनो बहाने टरि जाइ. हम देखलीं कि अइसे त ढेर दिन निकलि जाई. बिना कवनो बरियार कारन के त हम हिलेवाला बानी ना. एहसे मिलेसे पहिले एक दिन हम उहाँके स्पीड पोस्ट से आपन एगो हिदी काव्य संग्रह भेजलीं. आपन कंटैक्ट नंबर ओगैरह अलगा से लिखलीं आ एगो चिठियो. उपधियो जी के बतवलीं. उहाँके एगो पोस्टकार्ड त दूर, एगो फोनो ना आइल. हमहूँ भुला गइलीं काहें कि ओहिजा संबंध के अधार ना गाँव-जवार रहे, ना साहित्य. एगो संवादहीन बेजान संबंध जवन खाली हमरा आदर आ सम्मान पर टिकल होखे. अइसना संबंध से हम भरसक बाँचल चाहींले, काहें कि एकतरफा संबंध निबहे ना. एकर उमिरि बहुत कम होले. तनिको लिलार प बल आइल कि गइल.

भोजपुरियो के दिन लवटबे करी

कुछ दिन से एगो नया खेल शुरू हो गइल बा भोजपुरी के हिंदी से लड़वावे के. जब देश के अउरी भाषा संविधान के आठवीं अनुसूची में आवत रही सब, तब इहाँ सभ उँघाइल रहीं, भोजपुरी के पारी आवते नीनि टूटि गइलि. निनिये ना टूटलि, जड़ैया बोखार ध लिहलसि. हिंदी राष्ट्रभाषा बिया, हमरा देश के सम्मान आ स्वाभिमान बिया. ओकरा से हमनी के तुलना नइखे करेके. भोजपुरी हमार मातृभाषा ह आ ओकरो के माई के सम्मान मिलहीं के चाहीं, बस. हमरा त ई बुझाता जे एह खेल के नन्ही चूकी ना बूझेके चाहीं, जरूर एकरा पाछा केवनो तीसर आ बरियार आदिमी के हाथ होई. खेल बड़हन लागता. उतजोग होत रहो, रचनात्मक काम चालू रहो. अब ढेर दिन नइखे, भोजपुरियो के दिन लवटबे करी.

भोजपुरी गर्वके भाषा बने लागल बिया

सोशलो साइट के माध्यम भाषा भोजपुरी बने लागल बिया. नीक भा जबून, नवही लिखे लागल बाड़न. भोजपुरियन का बीच भोजपुरी लिखित रूप में भी संपर्क भाषा बने लागल बिया. ई संतोष आ सुख के विषय बा. फेसबुकिया संवाद आ जन आंदोलनन के बाढ़ि साफ-साफ इशारा कर रहल बिया कि भोजपुरी अब गर्वके भाषा बने लागल बिया. भोजपुरी के समान यू ट्यूब पर खङ्घराए लागल बा. ईहे सुगबुगाहट त एक दिन लुत्ती बनी आ देखते-देखत भोजपुरी के अँजोर अकासे खिलि जाई.

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