का लिखीं, का छोड़त जाईं : बतंगड़ – 82
- ओ. पी. सिंह हर बेर जब बतंगड़ लिखे बइठिलें त मन में कवनो ना कवनो खाका बन चुकल रहेला आ बाति पर बाति निकलत जाले आ बतंगड़ई पूरा हो…
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- ओ. पी. सिंह हर बेर जब बतंगड़ लिखे बइठिलें त मन में कवनो ना कवनो खाका बन चुकल रहेला आ बाति पर बाति निकलत जाले आ बतंगड़ई पूरा हो…