भोजपुरी साहित्य के गौरव आ एगो मजबूत पाया जगन्नाथ जी काल्हु शनिचर 14 मार्च 2020 के साँझि खा साढ़े चार बजे पटना के अपना साधनापुरी निवास पर आपन आँखि मूदि लिहलीं.
भोजपुरी गजल में जगन्नाथ जी के बड़हन योगदान का चलते उनुका के भोजपुरी के गालिब नाँव से जानल जाए लादल रहुवे. 19 जनवरी 1934 के कुकुढ़ा (इटाढ़ी) में जनमल जगन्नाथ जी के भोजपुरी कविता आ खासकर गीत-गजल के जहाँ कई गो संग्रह प्रकाशित बा, उहवें गजल का शास्त्रीयता आ विकास यात्रा पर भी उहाँके यादगार ग्रंथ बाड़ी सँ. उहाँके किताबि ‘लर मोतियन के’ आ ‘पाँख सतरंगी’ बहु लोकप्रिय भइली सँ. भोजपुरी गजल के जब-जब चर्चा होई, बिना उहाँके सुमिरले शुरुए ना होई.
अबहीं हालही में भगवती प्रसाद द्विवेदी के संपादन में पराश पत्रिका के अंक जगन्नाथ जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व पर केन्द्रित छपल रहुवे.
जगन्नाथ जी के गंगालाभ पर डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल, भगवती प्रसाद द्विवेदी, महामाया प्रसाद विनोद, कृष्ण कुमार बगैरह अनेके साहित्यकार आपन संवेदना व्यक्त कइले बाड़ें.
अँजोरिया परिवार का ओरि से भोजपुरी के लाल जगन्नाय़ जी के नमन आ विनम्र श्रद्धांजलि.