आजु का गलीज राजनीतिक माहौल में अटल बिहारी बाजपेयी के याद बहुते आ रहल बा. बाजपेयी जी अपना बीमारी का वजह से राजनीति से सन्यास ले चुकल बाड़न आ लोग उनुका के जियते जिनिगी में भुला दिहले बा. राजनीतिक अस्थिरता का दौर में बाजपेयी जी पहिलका गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहलन जे पूरा पाँच साल सरकार चलवलें. हालांकि उनुका पहिलका प्रधानमंत्रित्व का दौरान कांग्रेस के अनैतिक आचरण का चलते उनकर सरकार एक वोट से गिर गइल रहे. तब उड़ीसा के कांग्रेसी मुख्यमंत्री अपना सांसद मत के इस्तेमाल बाजपेयी सरकार के गिरावे खातिर कइले रहले. बाजपेयी जी तीन बेर प्रधानमंत्री बनल रहलें. पहिला बेर उनकर सरकार तेरह तीन चलल त दोसरका बेर तेरह महीना. तीसरका बेर ऊ तेरहवाँ लोकसभा में प्रधानंमत्री बनलन त लोग कहत रहे कि अब तेरह साल ले रहीहें.
राजनीति में शुचिता आ सभके साथ ले के चले वाला अटल बिहारी के विरोधियने के कवनो मुद्दा ना मिलत रहे त लोग कहत रहे कि एगो बढ़िया आदमी गलत पार्टी में बा. राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से राजनीति में आइल बाजपेयी हमेशा स्वंयसेवक रहलन बाकिर संघ के कट्टरता से अलगा रहत रहलें. जवना चलते गोविन्दाचार्य एक बेर उनका के मुखौटा नाम दे दिहले रहलें. उहे एगो बयान गोविन्दाचार्य के सन्यास दिलवा दिहलसि.
आजु अटल बिहारी बाजेपयी अस्वस्थ आ बीमार भलही होखसु उनका के शुभकामना दिहल हम आपन कर्तव्य समुझत बान. काश देश में आजुओ कवनो नेता रहीत जे उनकर कमी पूरा कर सके. उनुकर कवि वाला व्यक्तित्व मन के छुवे वाला बा. पेश बा बाजपेयी जी के लिखल एगो हिन्दी कविता
यमुना तट, टीले रेतीले, घास फूस का घर डंडे पर,
गोबर से लीपे आँगन में, तुलसी का बिरवा, घंटी स्वर.
माँ के मुँह से रामायण के दोहे चौपाई रस घोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें.
बाबा की बैठक में बिछी चतई बाहर रखे खड़ाऊँ,
मिलने वालों के मन में असमंजस, जाऊं या ना जाऊं,
माथे तिलक, आंख पर ऐनक, पोथी खुली स्वंय से बोलें,
आओ मन की गाँठें खोलें.
सरस्वती की देख साधना, लक्ष्मी ने संबंध ना जोड़ा,
मिट्टी ने माथे के चंदन बनने का संकल्प ना तोड़ा,
नये वर्ष की अगवानी में, टुक रुक लें, कुछ ताजा हो लें,
आओ मन की गाँठें खोलें.