– जयंती पांडेय
बाबा लस्टमानंद अचके में कहले कि जान जा रामचेला कि एक दिन रात में अचके मोदी जी के अंघी खुल गइल. नेता लोग खास कर मंत्री लोग के अंघी टूट गईल बड़ा बडहन आ शुभ बात हऽ. अब जब अंघी टूटि गइल तऽ पलंग पर उठि के बईठ गइले. बईठ के र्आख खोल तारे तऽ सामने का देखऽतारे की महंगई खाड़ बिया. देखते ऊ खिसिया गइले, कहले अरे डाईन, एहिजा काहे खाड़ा बाड़े?
महंगाई हंसलस कि वाह प्रधानमंत्री जी आपके ‘महंगाई डायन खाय जात है’ वाला गीत याद बा? मोदी जी आउर खिसिया गइले. कहले, अरे जब ‘जब दिल मांगे मोर’ वाला याद रह सकेला त डाइन वाला काहे ना, लेकिन तूं बताव कि एहिजा काहे आइल बाड़िस?
महंगाई फेर हंसलस आ कहलस कि ‘दिल मांगे मोर.’
मोदी ज खिसिया गइले, तोर अतना साहस कि तूं हमरा बोल में बोल मिलावे.
महंगाई कहलस, चाचा जब आपके पार्टी के लोग आपके समर्थक लोग आ अब त इहां ले सुनाता कि संघ वाला गण लोगो आपके सुर में सुर मिलावऽता. हम मिला दिहनी त कवन अपराध हो गइल?
मोदी जी पैंतरा बदलले कि अब ले त तोरा एहिजा से चल जाये के चाहत रहे लेकिन ते ना गइले.
महंगाई इतरा के कहलस, मोदी चाचा, हम कवनो गुजरल समय ना हईं कि लवट के ना आ सकीं. वइसे हम गइले कब रहनीं. ई त अलग बात बा कि आपके चुनाव प्रचार के समय लोग आपके आवे के मतलब हमरा जाये से लगा लिहल. ई त हमार गलती ना हऽ.
अब मोदी जी एकदम जामा से बाहर हो गइले आ शेर अइसन गुरगुरा के कहले, कि अरे तोरा हमरा से डर नइखे लागत?
महंगाई कहलस, डर काहे लागी, अपने से तोगड़िया डेरइहें, संघ वाला लोग डेराई लेकिन हम काहे डेराएब? जहां ले डेराये के सवाल बा तऽ डेरवाये में हम अपने से कम नइखी.जहां ले बानी बेसी बानी.
मोदी जी कहले, हमरा पर रोब मत गांठ. मालूम बा कि हमरा से अमरीका ब्रिटेन के राष्ट्रपति आ प्रधानमंत्री लोगो रोब खाला.
महंगाई कहलस, चाचा हमरा के अमरीका ब्रिटेन मत देखावऽ. हम त अपने ग्लोबल हईं.
मोदी जी कहले, अतने हिम्मत रहे त राति खान लुका के काहे आइल बाड़ू हमार नींद खराब करे?
महंगाई कहलस, चाचा, हमरा वजह से नींद त बहुत लोग के खराब होला. ई दोष त सभे देला. सरकार होखे चाहे गंवार. आ आपके उठावल त हमार इरादा ना रहे, हम त चाहेनी कि सरकार घोड़ा बेंच के सुतो कि हमार बढ़ोत्तर दिन दुगुना आ रात चौगुना होखो. ई नारा त भुला जाई आ अपना लोग बाग के समझा दीं कि अब ना कहो कि ‘बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार.’
अब लगले मादी ओकरा से पोलिटिक्स करे, ‘अइसन ना हो सके कि हम सब एकठ्ठे ना रह सकीं.’
महंगाई कहलस, ऊ तऽ हम तबसे करऽतानी. हम साथहीं रहे के आइल बानी एह रात में. कइसे छोड़ी हमार आ राउर राशि नाम एके ह. छोड़ब कइसे?
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.