फगुनवा मे
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी बियहल तिरिया के मातल नयनवा, फगुनवा में ॥ पियवा करवलस ना गवनवां, फगुनवा में ॥ सगरी सहेलिया कुल्हि भुलनी नइहरा । हमही बिहउती सम्हारत बानी अँचरा…
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- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी होरी आइल बा जरत देश बा-धू धू कईके सद्बुद्धि बिलाइल बा. कइसे कहीं कि होरी आइल बा. चंद फितरती लोग बिगाड़ें मनई इनकर नियत न ताड़ें…
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी हमरा मालूम न नीमन-बाउर, भर दिन कलई खोलब. हमहु बोली बोलब. चीचरी परलका कागज लाइब, दुअरा बईठ के किरिया खाइब, मंच पर चढ़के दांत चियारब, जी…
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी बिला गइल माथा के संतुलन बेगाथा के बौंडियात बानी एनी ओनि सुनाइल एघर से भागल बा ॥ बुझाता ए एनियों लुत्ती लागल बा ॥ भइल बंद…
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी माटी के थाती छोड़ी जब से पराइल बा, नीमन बबुआ तभिए से भकुआइल बा ॥ जिनगी के अहार न विचार परसार टुटल घर आ दुआर बहत…
- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी आजु हमरा के नियरा बईठा के बाबूजी बहुते कुछ समुझवनी ह । दुनियाँ – समाज के रहन सभ हमरा के विस्तार मे बतवनी ह ॥ बाबूजी…