जरूरत बा कुछ सहयोगियन के

अगर रउरा भोजपुरी भाषी हईं, (ना रहतीं त एहिजा अइतीं काहे?)
बिहार, यूपी, झारखंड, भा छत्तीसगढ़ के ओह इलाका में रहीलें जहाँ भोजपुरी बोलल जाले.(राज्य के राजधानी में रहल जरूरी नइखे, जिला मुख्यालय पर होखल जरूरी बा.)
इंटरनेट के उपयोग जानीलें.(ना जनतीं त अइतीं कइसे?)
यूटीएफ फांट में टाइप करे आवेला भा सीखे के इरादा बा.(ई जरूर तनी सीखे वाला काम बा.)
लैपटॉप भा कंप्यूटर रखले बानी.(जमाना तेजी से बदलत बा. पढ़ाई करे खातिर किताब कापी से कम महत्व नइखे कंप्यूटर के.)
मोबाइल फोन त होखहीं के चाहीं.(एह घरी त हर पाकिट में मौजूद बा.)
साथ ही कुछ कर देखावे के तइयार बानी, मेहनत करे से ना घबड़ाईं, लोग से मिले जुले में खुशी होला.(अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम, दास मलूका कहि गए सबके दाता राम. एह कहाउत से काम ना चली. ई सरकारी नौकरी ना ह कि ना कइलो पर पाकिट भरात रही.)
कवनो कॉलेज में पढ़ाई करत बानी आ पास कर के नौकरी मिले से पहिले अपना कमाई से कुछ पाकिट खरचा निकालल चाहत बानी.(एहसे फायदा ई बा कि रउरा अबहीं घर परिवार का जिम्मेदारी से आजाद बानी आ दिन में कबो एकाध घंटा निकालिए सकीलें एह काम खातिर. दोसरे अगर सफल रहनी त बाद में कामे आई ई अनुभव.)
त आजुए आपन पूरा विवरण देत (नाम, मौजूदा पता, कॉलेज के नाम, वर्ग, विषय, मैट्रिक परीक्षा में हिंदी आ अंगरेजी में मिलल अंक, आपन मोबाइल फोन नम्बर, आ अपना कॉलेज से मिलल फोटो परि्चय पत्र के स्कैन कॉपी देत) इमेल भेजीं “ई डी आई टी ओ आर एट ए एन जे ओ आर आई ए डॉट कॉम” पर.(एह बारे में फोन कइला भा कवनो सोर्स पैरवी लगावे के जरूरत नइखे. एको जगह त अइसन होखो जहाँ आदमी अपना योग्यता से चिन्हाव. पैरवी हो सकेला कि राउर काम बिगाड़ देव.)
कोशिश रही कि हर जिला मुख्यालय पर हर आवेदक के मौका दिहल जाव. अंतिम चयन खातिर हर जिला मुख्यालय के प्रतिभागियन का बीच जे सबले अधिका सफल होखी ओकरा के चुनल जाई.(पता ना हर जगहा से आवेदक मिलबो करीहें कि ना?)
एह काम ला कवनो तरह के आवेदन शुल्क नइखे देबे के, ना अबहीं ना बाद में कबो.(कमाई से पहिले गँवाई काहे ला केहु. असालतन नौकरी त देत नइखीं.)
हँ आवेदन जरूर भोजपुरी में होखे के चाहीं आ यूटीएफ फांट में टाइप. कइसे करब इहो एगो इम्तिहान बा.(असल बाधा एहिजे आई.)
अधूरा भा बिना काम के आवेदन सीधे छाँट दिहल जाई. बस ओही आवेदक के जवाब दिहल जाई जे काम लायक आवेदन कइले होई. आवेदन काहे छाँटल गइल एकर जबाब ना दिहल जाई.(पिछला अनुभव बतावत बा कि लोग असहीं ढेला फेंक देला कि आई आम चाही लबेदा.)
कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, सूरत वगैरह के आवेदकन के बाद में मौका मिली पहिले घर त सम्हार के देखल जाव कि आरा छपरा बलिया देवरिया जइसन जगहा से कतना आ कइसन आवेदक सामने आवत बाड़ें.(भोजपुरी के बात भोजपुरीए इलाका से शुरू होखे के चाहीं. पाँच कवर भीतर तब देवता पितर,)
मानदेय भा मेहनताना कतना दिहल जाई एह बारे में अबहीं कुछ तय नइखे. (जइसन देवता होलें तइसने पुजाई चढ़ेला. शिवजी के धतूर त बर्हम बाबा के कनईल के फूल. अतना तय बा कि भेंटाई ओही में से जवन हमरा भेंटाई. हँ अंतर अतने बा कि हम पहिले भुगतान करब बाद में हमार हिस्सा आई. बा कि ना? कवनो धरम खाता त चलावे के नइखे. अगर हर जगहा से काम लायक सहयोगी मिल जासु त एगो बढ़िया ढाँचा खड़ा कइल जा सकेला आ तब भुगतानो बढ़िया हो सकेला. बाकिर कब कतना आ कइसे ई अबहीं बतावल जरूरी नइखे लागत.)

रोज देखत रहीं ई जगहा. एहिजे जानकारी मिलत रही कि कइसन सुगबुगाहट भइल बा एह बाति से. केहु आवेदन कइल कि ना, आइल त कतना आवेदन, अगर पाँच सौ से कम आवेदन मिलल त समुझ लीं कि काम नइखे बने वाला.

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