– डा. अशोक द्विवेदी
बाहुबलियन से चलत बा काम जब सरकार के
का सुनी, केहू भला कमजोर के, लाचार के !
हर खबर में बा मसाला, पढ़ीं चाहे, मत पढ़ीं
टाट पर मखमल चढ़ावल काम बा अखबार के !
पुर्जा-पुर्जा नोचि के ड्राइवर-खलासी ले उड़ल
बात गाड़ी के करीं, अब करीं मत रफ्तार के !
लोकसंसद में बहस का जगह नश्तर बा चलत
बात के नइखे बखत अब जोर बा हँउजार के !
जुगन से सुनते -सुनत, बा कान पाकल लोग के
अब त कान्ही चढ़ गइल बा प्रेत भ्रष्टाचार के !
छल – छहन्तर, नट-कला आ पैंतराबाजी में तेज
राजनेता के मुखौटा, काम बा घड़ियार के !