– ओ. पी. सिंह
जब सोशल मीडिया ना रहल त जवन रहल ऊ टीवी चैनल. जब टीवी चैनल ना रहल त जवन रहल ऊ अखबार. पता ना जब अखबार ना रहल त एह कोना के खबर ओह कोना ले कइसे चहुँपत रहल. हम त जब से होश सम्हरली तब से अखबार के जमाना देखत आइल बानी. एही कोलकाता, जब ई कलकत्ता रहुवे, के एगो मशहूर हिन्दी अखबार के सम्पादक ताल ठोंक के कहसु कि हम त राजभक्त हईं. जेकर राज रही ओकरे भक्ति करब. काहे कि हमरा विज्ञापन चाहीं. तबो केहू उनुका के भक्त के पदवी ना दीहल. आ अब जब सोशल मीडिया परवान धइले बा त बाकायदा एगो पदवी चल निकलल बा भक्त के. भर जिनिगी सरकार में आ सरकार के दलाली क के आपन रसूख बनावे वाला टीवी एंकरन के सभले बड़का परेशानी एही भक्तन से बा. पहिले त अइसनकन के एगो देवी जी इंटरनेटी हिन्दू के तगमा दिहली. सोचली कि ई गारी ह आ ई लोग तनि सकुचा जाई इन्टरनेटी हिन्दू कहला प. बाकि हो गइल उलुटा. ई लोग एकरा के बाकायदा आपन सम्मान बना लीहल आ शान से अपना का इन्टरनेटी हिन्दू कहे लागल.
ई ऊ समय रहल जब प्रेश्या शब्द बनलो ना रहल आ कुछ का कहीं, अधिकतर चैनल सम्पादकन के सूई 2002 प अटकल रहल. कवनो बात होखे, कवनो खबर होखे ओकरा के एह बहाने भा ओह बहाने 2002 आ मोदी से जोड़ला बिना काम ना चले. सुनत सुनत आदमी के कान पाके लागल जइसे कि रिपब्लिक टीवी के पहिलका दिन के पहिलका खुलासा कपरबथी करा दिहलसि. रिपब्लिक टीवी चालू भइल त पुरनका चैनलन के जमूरा एकरा ला एगो नया विशेषण खोज निकललें – सुपारी जर्नलिज्म. जइसे सुपारी ले के कुछ लोग खून करे के धंधा करेला वइसने कुछ पत्रकारन का बारे में कहाए लागल बा कि ई सुपारी ले के लालू, केजरीवाल, शशि थरुर जइसन नेकनीयत वालन के इमेज के खून करे में लागल बाड़ें. आ एही सुपारी जर्नलिज्म के शब्द सुन के हमार मन क गइल कि आजु भक्त, दल्ला आ टार्ड के चरचा क लीं.
सोचे के बात बा कि कुछ लोग के भक्त के तगमा देबे वाला लोग का सोच के ई तगमा दीहल. भक्त त अपना आराध्य ला अपना के भुला जाला आ अपना आराध्य का भजन में लाग जाला. आ ऊ अपना के अपना आराध्य से अलगा ना देखे सोचे. ओकरा के भक्त कहल त ओकर सनमान कइल हो गइल. अरे भाई, कुछ अउरी सोचले रहतऽ लोग. जइसे कि सोशल मीडिया प चालू दोसर तगमा हई सँ लिब्टार्ड, आपटार्ड, दल्ला वगैरह. चमचा त बहुत पुरान हो गइल बा. आ चमचई के कलाकारन के एक से बढ़ि के एक नमूना रउरा अगले बगल भेंटा जाई. दल्ला दलाली से बनल शब्द ह. बाकि दलाल से ऊ बोध ना हो पावे जवन दल्ला से हो रहल बा. राशन कार्ड एक जमाना से बनि रहल बा बाकि एकरा के बाकायदा एगो कला का तौर प इस्तेमाल करे ला आपियन के जोड़ ना मिली. एह कला के अइसन इस्तेमाल हो गइल बा कि कवनो महिला से राशन कार्ड बनवा लेबे के पूछला प सैन्डिल से पुजाई होखे के डर हो गइल बा. आआपियन ला हम कबो आप के इस्तेमाल ना करीं काहे कि फेर कवनो शरीफ आदमी के आप कहल मुश्किल हो जाई. हर केहू भोजपुरिया त भेंटाई ना कि रउरा कह के काम चलि जाई. एगो नीकहा आदर वाला शब्द के गाली के पर्याय बना दीहला के कूवत अरविन्द ले अधिका ना हो सके केहू का लगे. लिब्टार्ड, आपटार्ड त बाकायदा गाली ह जवना के सेफ बना लीहल गइल बा. बाकि ढेर दिन नइखे जब इहो शब्द कोषन में शामिल हो जइहे सँ बतौर गाली. बास्टर्ड के टर्ड निकाल के आपियन से जोड़ के आपटार्ड बन गइल त सिकूलर से जोड़ के सिकटार्ड, लिबरल से जोड़ के लिबटार्ड बन गइल बा. वइसे आम बोलचाल में त सिकूलरो गारिए बनि गइल बा. काहे कि एह लोग के करम अइसने बा. ना त लालबत्ती ना उतारे वाला ललकेसवा के ओकर सही जबाब मिल गइल रहीत अबले. पैलेट गन से आन्हर भइल लोग एही चलते एगो लेफ्टीनेन्ट प भइल अत्याचार नइखे देख पावत. एहीसे हम सेकूलरिज्म से दू हाथ फरके रहीले. आ रउरो रहे के चाहीं.