डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल के डायरी
तीन-चार दिन पहिले कपड़ा-ओपड़ा कीने खातिर निकलल रहीं जा. प्लेटफॉर्म प चढ़ते जवन लउकल, ओसे त चका गइलीं हम. जहाँ एक दिन पहिलहूँ खोजला पर पिछला जनम के दिया-दियरी मिलेले आ ऊहो जइसन-तइसन, ओहिजा रेलवे स्टेशन पर कई गो दियरी, रूई के बाती आ माचिस एक साथ पैक कइके मिल रहल बा आ ऊहो जगह-जगह पर. धन्य बाड़े भारतीय, भावना में बहिहें त सभ पीछा आ वैचारिकता में त पुछहीं के नइखे, दुनिया लोहा मानेले. नीक लागल. आतंकवाद केहूके भावे ना. चीन का उल्टा चलला के ई नतीजा ह कि बाजार के रुख बदलि गइल. अब बाजारो के सोचेके परी कि “जनविरोधी आ राष्ट्रविरोधी काम कइलऽ कि गइलऽ.” अब ना चाहीं केहूके चाक-चीक, दिये-दियरी से हमनी के काम चलि जाई. चलीं, अनासे एगो बड़हन काम हो गइल. कोंहार अपना शिल्पकला के कोसत-कोसत छोड़ेके स्थिति में आ गइल रहले हा. जइसहीं दीया-दियरी के दिन बहुरल कि उनुकरो मन हरियरा गइल आ अब त चानिये चानी बा. साँच कहीं त बरियार आदिमी ना होखे. समय होखेला. समये घाव देला आ ऊहे भरबो करेला.
दिवाली के परब नगिचाइल बा बाकिर मन में ऊ उत्साह नइखे. मन नइखे होत कि टीवी के समाचार देखल जाव. एगो डर समाइले रहता. सीमा पर भा कश्मीर से कवनो दुखदायी खबर जनि आओ. अइसना में जब केहूँ पाकिस्तानियन के तरफदारी करेला भा असहिष्णुता के बात करेला त हमरा नजर का सोझा जइसे सुग्रीव आ जाले. बड़ भाई दुश्मन के पिठियावत गुफा में ढुकि गइल आ साहेब दुआरी प एगो बरियार पत्थर ओठँघाके किष्किंधा लवटि अइले आउर निश्चिंत गद्दी पर बइठि गइले. आजु-काल्ह जेकरे के देखीं, शुरू हो जाता. स्वतंत्रता आ स्वच्छंदता के अंतर लोग भुलाए लागल बाड़े, कर्ट्सी-मैनर के त बाते छोड़ दीं. बढ़िया समय ना कहाई. तबो हर स्थिति में दिवाली धूमधाम से मनो- ईहे हम चाहबि. स्वदेशी से देश के भावना जुड़ रहल बा. देश अपना थाती के पहचाने आ याद करे लागल बा. ई शुभ बा. नीमन दिन अब दूर नइखे. हम त ईहे शुभकामना करबि कि जइसे दीया-दियरी के दिन बहुरल ओसहीं हर मनई के दिन बहुरो, समाज के समरसता भंग करेवाली प्रवृत्ति के विनाश होखो आ सभका मन में प्रेम, सम्मान आ सद्भाव के उजास होखो.