लोकजीवन के “बढ़नी”

- डाॅ. अशोक द्विवेदी 'लोक' के बतिये निराली बा. आदर-निरादर, उपेक्षा-तिरस्कार के व्यक्त करे क टोन आ तरीका अलगा बा. हम काल्हु अपना एगो मित्र किहाँ गइल रहलीं. उहाँ दुइये…

नाता जोरे भर नेह

- डाॅ. अशोक द्विवेदी आज फजिरहीं बहरा निकलते झमरझम बरखा से सामन भइल. राजधानी घंटन बरखा से नहात रहे. गाँवे़ं फोन लगाइ के एगो सँघतिया से टोह लेहनी त पता…

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