पढ़े-लिखे वाला पाठक, पठनीयता आ “पाती” – हमार पन्ना

डॉ अशोक द्विवेदी एगो जमाना रहे कि ‘पाती’ (चिट्ठी) शुभ-अशुभ, सुख-दुख का सनेस के सबसे बड़ माध्यम रहे। बैरन, पोस्टकार्ड, अन्तर्देशी आ लिफाफा में लोग नेह-छोह, प्रेम-विरह, चिन्ता-फिकिर, दशा-दिशा आ…

तबे स्वस्थ आलोचना के राहि विकसित होई

दू दिन पहिले विमल जी के पत्रिका सँझवत के जानकारी आ सामग्री मिलल. एने कई एक महीना से हम थाकल महसूसत बानी जवना चलते अब अँजोरिया भा एकरा दोसरा साईटन…

बोले-बतियावे से आगा / पढ़े-पढ़ावे के जरूरत !

– अशोक द्विवेदी लोकभाषा भोजपुरी में अभिव्यक्ति के पुरनका रूप, अउर भाषा सब नियर भले वाचिक (कहे-सुने वाला) रहे बाकिर जब ए भाषा में लिखे-पढ़े का साथ साहित्यो रचाये लागल…

केने बाड़ें ऊ लोग जिनका भोजपुरी प नाज बा

– कुलदीप कुमार कहे के त कहल जाला कि जवन भासा रोजगार के मौका ना दिआ सके ओह भासा के अस्तित्व गँवे-गँवे खतम हो जाला. बाकिर ई बाति भोजपुरी प…

पाती के चौहत्तरवाँ अंक का बहाने कुछ मन क बात

– अशोक द्विवेदी पत्रिका के 74वाँ अंक रउवा सभ के सामने परोसत हम अपना स्रम के बड़भागी मान रहल बानी जे 1979 से जूझत-जागत, ठोंकत-ठेठावत हमनी का पैंतीसवाँ बरिस में…

जिए भोजपुरी ! बाकिर जिए त जिए कइसे?

भोजपुरीए ना हिन्दीओ पत्रिकन के प्रकाशन आजुकाल्हु मुश्किल हो गइल बा काहे कि एक त लोग पढ़े के आदत छोड़ दिहले बा आ दोसरे किताब खरीदे के. रोज रोज के…

भोजपुरी पंचायत पत्रिका के दिसम्बर 14 वाला अंक

बावन पेज के पत्रिका, चार पेज विज्ञापन के, चार पेज संपादकीय सामग्री, बाँचल चउवालीस पेज. तरह तरह के तेरह गो संपादक बाकिर प्रूफ आ भाषा के गलतियन के भरमार का…

भोजपुरी पंचायत के नवम्बर 14 के अंक

– – ओमप्रकाश सिंह आजुए ईमेल से मिलल भोजपुरी पंचायत पत्रिका के नवम्बर 2014 अंक देखि के मन मिजाज खुश हो गइल. अगर भोजपुरी से छोह के बात हटा दिहल…

मॉरीशस : आपन बोली-आपन लोग

– मनोज श्रीवास्तव केहू के जब आपन खाली घर-दुआर आ आपन गाँव जवार छुटेला त मन केतना भारी हो जाला आ तब त आपन देसे छुटल रहे. ओह घरी कवनो…

तनी हट-हटा के ….

– प्रगत द्विवेदी बचपन से आजु ले पिताजी के भोजपुरी-भोजपुरी रटत देखत अइलीं. ऊ आजु ले ना थकलन, बाकिर हमनी का जरूर घबड़ा गइली जा. भोजपुरी के पहिचान, ओकरा प्रसार…

भोजपुरी सरोकारन से जुड़ल पत्रिका भोजपुरी पंचायत

आजु जब भोजपुरी के पत्रिका प्रकाशन के स्थिति खराब चलत बा आ शायदे कवनो पत्रिका बिया जवना के नियमित प्रकाशन आ उहो समय पर हो रहल बा. एह दिसाईं दिल्ली…

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