मानिक मोर हेरइलें

– आचार्य विद्यानिवास मिश्र भोजपुरी में लिखे के मन बहुते बनवलीं त एकाध कविता लिखलीं, एसे अधिक ना लिखि पवलीं। कान सोचीलें त लागेला जे का लिखीं, लिखले में कुछ…

हिन्दी के ‘खाता’ आ हिन्दी के ‘त्राता’ से रार पर मनुहार

– डॉ प्रकाश उदय भइया हो, (पाती के संपादक) जतने मयगर तूँ भाई, संपादक तूँ ओतने कसाई। लिखे खातिर तहरा दिकदिकवला के मारे असकत से हमार मुहब्बत बेर-बेर बीचे में…

साँच उघारल जरूरी बा !

– डॉ अशोक द्विवेदी हम भोजपुरी धरती क सन्तान, ओकरे धूरि-माटी, हवा-बतास में अँखफोर भइनी। हमार बचपन आ किशोर वय ओकरे सानी-पानी आ सरेहि में गुजरल । भोजपुरी बोली-बानी से…

लोकभाषा के काव्य आ ओकरा चर्चा पर चर्चा

– डॉ अशोक द्विवेदी लोकभाषा में रचल साहित्य का भाव भूमि से जुड़े आ ओकरा संवेदन-स्थिति में पहुँचे खातिर,लोके का मनोभूमि पर उतरे के परेला। लोक कविताई के सौन्दर्यशास्त्र समझे…

प्रेम में डूबल औरत अउर हम : दू गो कविता

– अल्पना मिश्र (1) प्रेम में डूबल औरत प्रेम में डूबल औरत एक-एक पल-छिन सहेजत-सम्हारत रहेले। ‘कइसे उठाईं ई ‘छन’ कहाँ धरीं जतन से…’ इहे सोच-सोच के कई बरिस ले…

दइब टेढ़ भइले करमवो बा फूटल : गजल

– रामयश अविकल चलीं ई सबुर के बन्हल-बान्ह टूटल कमाये बदे आज घर-गाँव छूटल। मिलल मार गारी, मजूरी का बदला सरेआम अब आबरू जाय लूटल। भवन तीन-महला शहर में बा…

भोजपुरी-वर्तनी के आधार

– स्व. आचार्य विश्वनाथ सिंह (ई दस्तावेजी आलेख एह खातिर दिहल जाता कि भोजपुरी लिखे-पढे़े में लोगन के सहायक-होखो) भोजपुरी भाषा में उच्च कोटि के साहित्य-रचने करे खातिर ना, ओकर…

लोकजीवन के ‘बढ़नी’ आ ‘बढ़ावन’

– डा॰ अशोक द्विवेदी ‘लोक’ के बतिये निराली बा, आदर-निरादर, उपेक्षा-तिरस्कार सब के व्यक्त करे क ‘टोन’ आ तरीका अलगा बा. हम काल्हु अपना एगो मित्र किहाँ गइल रहलीं, उहाँ…

निरउठ

– डा. अशोक द्विवेदी दिल्ली फजिरहीं पहुँच गउवीं. तर-तरकारी कीने क बेंवत ना बइठुवे त सोचुवीं आलुवे-पियाज कीनि लीं. दाम पुछते माथा घूम गउवे. साठ रुपिया किलो पियाज रे भइया.…

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