रेडियो के अमर किरदार – लोहा सिंह

  • लव कांत सिंह ’लव’

एतवार के दिन होखे त सब लोग फटाफट आपन काम निपटा लेवल चाहत रहे, सभे जल्दी-जल्दी बाजार से लवट के आ जात रहे, दोकानदार अपना-अपना रेडियो सेट से सट जात रहस, मेहरारू लोग जल्दी-जल्दी खाना-पानी तइयार के लेत रहे, लड़िका सब जल्दी खेल खतम करके 6 बजे तक कौनो हाल में घरे पहुंच जात रहस. 6 बजे से पांच मिनट पहिले पान के दोकान पर राहगीर रुक के 6 बजे के पैरा जोहे लागत रहस. गली-मोहल्ला सुनसान हो जाईल करत रहे आ फेर सांझ के 6 बजते पटना आकाशवाणी से प्रसारित होखत रहे लोकप्रिय हास्य नाटक ’लोहा सिंह’. बाद में ई रोज प्रसारित होखे लागल. चुकी रेडियो ओह बेरा पढ़ल-लिखल, अनपढ़, अमीर -गरीब, समाज के हर तबका में बहुत आसानी से पहुँचे वाला संचार माध्यम रहत रहे. इहे कारण रहत रहे कि ना खाली भारत बलुक विदेशन में भी एह नाटक के गूंज पहुंचे में कामयाब रहे.

जिला रोहतास के धरती से एगो साधारण व्यक्ति विश्व पटल पर पहचान बनावे में ना खाली कामयाब भइल बलुक इतिहासो में अपना स्थान बना गइल. रामेश्वर सिंह ‘कश्यप’ विश्व में कुछे अइसन लोग में से रहलें, जे आपन रेडियो नाटक ‘लोहा सिंह’ के कारण जासूसी आ बहादुरी के प्रतीक ‘शेरलॉक होम्स’ आ ‘जेम्स बांड’ के जइसन ओही नाम ‘‘लोहा सिंह’’ पर प्रसिद्ध भइलन. कश्यप जी के जन्म रोहतास जिला के सासाराम के लगे सेमरा नामक गांव में 12 अगस्त 1927 के भइल रहे. अंगरेजी सरकार के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (डीएसपी) राय बहादुर जानकी सिंह आ रामसखी देवी के बेटा के रूप में जन्मल कश्यप जी बहुत लाड़-प्यार से रहल रहलें. प्रारंभिक शिक्षा मुंगेर, नवगछिया से भइल आ आगे के पढ़ाई खातिर इलाहाबाद चले गइलें.

सन 1948 में जब आकशवाणी पटना के शुरुआत भइल त कश्यप जी चौपाल कार्यक्रम में ‘तपेश्वर भाई’ के रूप में भाग लेवे लगलें. वार्ताकार, नाटककार, कहानीकार आ कवि के रूप में सैंकड़न रचना में इनकर सहभागिता रहल. कश्यप जी के भीतर के साहित्यकार रचनाधर्मी लोग से मिलल-जुलल बहुत पसन्द करत रहे. कुछ समय बाद रेडियो पर इनकर लिखल एगो भोजपुरी नाटक ‘तसलवा तोर कि मोर’ के प्रसारण भइल. एह नाटक में लोहा सिंह एगो पात्र रहे जवना के बहुत पसंद कइल गइल आ बहुत लोग के चिट्ठी आइल जवना में लोहा सिंह नाटक फेर से सुनवावे के बात लिखल रहे. ओही घरी लोहा सिंह नाटक के आधारशिला रखाए लागल. कश्यप जी के एगो खासियत ई रहे कि ऊ अपना नाटकन में जवन पात्र राखत रहलें उ कहीं न कहीं अपना आसे-पास से उठावत रहलें. लोहा सिंह के किरदार ऊ अपने घर से उठवले रहलें. इनका घर के एगो नोकर के भाई रिटायर्ड फौजी रहे जवन गलत-सलत अंग्रेज़ी, हिन्दी आ भोजपुरी मिलाके एगो नाया भाषा बोलत रहे. उहे भाषा इनको नोकर बोलत रहे जवना के सुनके कश्यप जी लोहा सिंह चरित्र बना देहलें. हिंदी-भोजपुरी क्षेत्र के लोग भले ही उनका के लगभग भुला देले होखे बाकी तबो उनकर कालजयी डायलॉग आजो ज़िंदा बा आ आगहूं रही. –

‘अरे ओ खदेरन को मदर जब हम काबुल का मोर्चा में था नु’ लोग ई डायलॉग सुनते लोट-पोट हो जात रहे.
’खदेरन को मदर’ बनत रहली प्रसिद्ध लोक गायिका प्रो. विन्ध्वासिनी देवी. प्रो. शांति जैन, शत्रुघ्न बाबा, प्रो.एन एन पांडे आ आकाशवाणी के झलक बाबा जइसन लोग ओह अमर नाटक श्रृंखला के पात्र रहलें.

लोहा सिंह खाली हास्य नाटक ना होके सामाजिक, सांस्कृतिक आ राजनैतिक व्यवस्था पर बरियार व्यंग्यो रहे. 1962 के लड़ाई से लौटल फौजी लोहा सिंह (प्रोफ़ेसर रामेश्वर सिंह ‘कश्यप’) जब अपना फौजी आ भोजपुरी मिलल हिन्दी में अपना मेहरारू ‘खदेरन को मदर’ आ आपन दोस्त ‘फाटक बाबा’ (पाठक बाबा) के काबुल के मोर्चा के कहानी सुनावस त सुनेवाला कबो हंसते-हंसते लोट-पोट हो जाए त कबो गंभीर हो जाए. अपना एह नाटक के माध्यम से बाल विआह, छूआछूत आ धार्मिक गड़बड़ियन पर जोरदार प्रहार करत रहलें.

सुनील बादल जी अपना एगो लेख में लिखले बारें कि उनका पर शोध करेवाला डॉक्टर गुरुचरण सिंह बतावेलें की- “तब ई नाटक देशवासियन के भीतर देशप्रेम आ राष्ट्रीय चेतना के भाव भरत रहे. रेडियो सेट भी बहुत कम रहत रहे एहीसे पान दुकानवाला लाउडस्पीकर पर रेडियो के एह बिजोड़ नाटक सुनवावत रहलें. सीमा पर लड़ेवाला सेना के साथ- साथ आम लोग भी भाव- विभोर हो जात रहलें. ” हिन्दी के आलोचक डॉक्टर जीतेंद्र सहाय तब एगो आलोचनात्मक निबंध ‘हास्य की आढ़ती’ में लिखले बारें की -“चीन युद्ध के बेर श्री कश्यप चीनी सेना के भर्त्सना एह नाटक के माध्यम से कइल शुरू कइलें त रेडियो पीकिंग के ई टिप्पणी आइल कि जवाहरलाल आकाशवाणी के पटना केन्द्र में एगो अइसन भईंसा पोस के रखले बारें, जवन चीन जे देवार में सींग मारत रहेला . ”

प्रोफेसर रामेश्वर सिंह कश्यप के पद्मश्री, बिहार गौरव, बिहार रत्न आदि सम्मानों से सम्मानित कइल गइल रहे . एक दिन अचानक 24 अक्तूबर 1992 के हास्य-व्यंग्य आ ग्रामीण चरित्र से निकल देश के झकझोरे वाला एगो लमहर बड़ के गाछ धराशाई हो गइल. निराशाजनक ई बा कि इनकर बेटा लोग भी ना ही उनका साहित्य के प्रकाशित करवले आ ना बचा के राखे में रुचि दिखवेलें आ ना सरकार कुछ कइलक. सासाराम में इनकरा नाम पर बनल सड़क ‘लोहा सिंह मार्ग’ के जाननेवाला लोग भी अब कम होत जा रहल बा. डर इहे बा कि अपना रेडियो नाटक से इतिहास रचेवाला कश्यप जी कहीं इतिहास के पन्ना में भुला मत जास.

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