अगस्त के महीना भइल बड़ा सोर

  • श्री सत्यवादी छपरहिया

‘अगस्त’ संस्कृत ‘अगस्त्य’ आ अँगरेजी ‘औगस्ट’ के भोजपुरी रूप हवे. एह शब्द से कई एक गो माने-मतलब निकलेला. पौराणिक युग में अगस्त नाँव के एगो लमहर ज्ञानी-ध्यानी ऋषि भइल रहले. एक बेर ऊ किरोध में आके पूरा समुन्दरे सोख गइलन आ जब ओमें के जिआ-जन्त दुख से अललाये-बिललाये लगले सन तब फेर उगिल देहले. पंचवटी जाए का पहिले सीता आ लछुमन का साथे रामजी इनके आश्रम में टिकल रहीं. एगो जोन्हीं के भी नाँव अगस्त ह, जवना के भादो का अँजोरिया पाख में उदय होला. अगस्त नाँव के एगो गांछी होखेला आ एकर झूरी लोग बड़ा सवख से खाले. खास कके, गोधन का दिन अगस्त का फूल के बजका खइला के बड़ा महातिम मानल जाला. चउथा अगस्त के माने एगो महीना ह, जवन आम तौर से सावन-भादो का बीच में पड़ेला. सावनी पूजा, नाग-पंचमी, रक्षा-बंधन, पनढकउआ, बहुरा आ जन्माष्टमी अइसन परब-तेवहार एही अगस्त में कइल जाला.

अँगरेजी अगस्त के दीगर-दीगर कोशकार अपना-अपना ढंग से माने बतवले बाड़न. वेब्सटर युनिसर्वल डिक्शनरी में एकर माने ‘कन्सेक्रेटेड’, ‘वेनेरेबुल’ आ ‘मैजेस्टिक’ देहल बड़ ुए. चेम्बर्स डिक्शनरी में ‘बेनेरेबुल’, ‘इम्पोजिंग’, ‘सबलाइम’ आ ‘मैजेस्टिक’ बतावल बा. औक्सफोर्ड डिक्शनरी में अगस्त के माने विलियम अपना शब्दकोश में एह शब्द के मतलब ‘प्रतापवान’, ‘अत्युत्कृष्ट’, ‘महामहिम’, ‘अतिमहान’ आ ‘राज्ययोग्य’ बतवले बाड़न. महान शब्द-शाó आ कोशकार डा0 रघुवीर का अनुसार एकर माने हवे ‘ओजस्वी’ आ ‘गम्भीर’. राँची सेंट जेवियर्स कालेज के हिंदी विभागाध्यक्ष आ कोशकार फादर कामिल वुल्के अपना शब्दकोश में अगस्त के माने ‘भव्य’, ‘प्रतापी’, ‘महान’ आ ‘सम्भाव्य’ लिखले बाड़न. अइसहीं डा0 हरदेव बाहरी का वृहत हिन्दी-अंग्रेजी शब्दकोश में एकर माने ‘ऐश्वर्यपूर्ण’, ‘प्रभावपूर्ण’, ‘गरिमायुक्त’, ‘महिमान्वित’, ‘प्रतापी’, ‘श्रद्धास्पद’, ‘सम्माननीय’, ‘नृपोचित’ आ ‘राजस्वी’ बतावल बा.

अगस्त का महीना में प्रकृति छटा बड़ा मनसायन होखेला. धरती का हरियर मलद्दच पर रंग-बिरंग के कसीदा देखते बनेला. गरजत बादर, चमकत बिजुली आ झमरत पानी देख के जियरा जुड़ा जाला. झेंगुर क झनकार, ढायुस के ढेंढों-ढेंढों आ मछरियन के छिप-छुप बड़ा निम्मन लागेला. रात में बअदुरी के फुर-फुर आ भगजोगनी के भुक-भुक देख के खूब मजा आवेला. किसानन खातिर त ई जियका-जिनगी के महीना ह. सब जाना जीवन-जान से खेती गिरहस्ती में लाग जाले. केहु कतिका-अगहनी का रोपनी में लागे त, केहू अमीरन के सवख आ गरीबन के भोजन अलुआ-सुथनी रोपे में- ‘सुथनी सकरकन अगिया के मोल मिले, जरो भइले अनमोल भाई लोगनी’. कहीं मड़ुआ गदराला, त कहीं मकई मोचियाला. कहीं सारो-साठी आ सावां-टँगुनी फर के झूले लागेला त कहीं जनेरा-मसुरिया गमके महके के शुरू कर देला. कहीं घेंवड़ा-तरोई, भिंडी-करइला, अरुई-कंदा आ चिचिरा-सेमरहरिया लदर जाला त, कहीं टेकुआ-ठढ़िया, करमी-झुनखुन, पोय-नोनी आ केना-गंधपुरना लहलहात रहेला. अइसहीं लउका-कोंहरा, सेम कवाछ आ बैगन-मरिचा अलगे लथर जाला. एही महीना में सेव-नासपाती, अंगूर-विदाना आ केरा-अमरूध तनी गरीबो-गुरबा का चीखे लायक भाव पर आ जाले सन. अगस्त के मस्ती के बारे में त, कुछ कहहीं के नइखे. कहीं कजरी के बहार मचेला- ‘नींक सइयाँ बिन भवनवाँ नाहीं लागे सखिया’ त कहीं झूलन के झकझोरी सुनाला- ‘झूला लगे कदम की डारी, झूले कृष्ण मुरारी ना’. चारू ओर धरती माता के धानी चुनरिया देख के मुँहजोर मउगी त, एकदम से बउरा जाली सन- ‘सबुज रंग चुनरी मँगा दे पियवा हो. चुनरी मँगा दे पिया, चुनरी मँगा दे. आरे, बीचे-बीचे गोटवा लगा दे पियवा हो।’ भला, अइसन रसगर-लसगर अगस्त कवना आदमी का ना सोहाई?

अगस्त अँगरेजी कलेंडर के आठवाँ महीना हवे. ई, नाँव महान विजयी जुलियस सीजर के पोता आ पहिला रोमन सम्राट औगस्टस सीजर का नाँव पर धराइल, जे अब तक उनका जस के इयाद करावत बड़ ुए. अगस्त के जइसन लमहर माने-मतलब ऊपर बतावल गइल बा ओइसने एकर गुनो लमहर बाटे- ‘यथा नामः तथा गुणः।’ देश-विेदश के बड़-बड़ राजपुरुष, साहित्यिक आ ज्ञानी-विज्ञानी के जनम, बड़की-बड़की घटना आ भारी-भारी लोग के मृत्यु हत्या एही महीना में भइल बाटे.

इतिहास में मुगल शाहंशाह जहाँगीर एगो अजगुत आदमी भइलन. तरुनाई में उनका अनारकली से मोहब्बत करे के सवख जागल. अनारकली भुलावा में आ गइली आ आपन औकात ना देख के दिल-दुआ सब दे बइठली. प्यार के जिनगी कुछ दिन बड़ा निमन से कटल, बाकी मुसीबत के दिन जल्दिए आ गइल. बादशाह अकबर का कान में ई बात पहुँचल आ दस्तूर का मोताबिक अनारकली ‘अलविदा-अलविदा’ करत देवाल में चुनवा दिहल गइली बाकी सलीम पर एगो जूँ भी ना रेंगल. 20वीं सदी में ब्रिटिश साम्राज्य के उत्तराधिकारी युवराज अष्टम एडवर्ड आपन प्रेमिका लेडी शिम्पसन खातिर राजगद्दी तक त्याग देहले. बाकिर एह शाहजादा का दिल में अनारकली खातिर प्रेम के कवनो हिलकोरा ना आइल. ऊ केश अइसन मजनू ना बनले, फहराद अइसन कोहकन ना कटले आ रंझाँ अइसन हथकड़ी-बेड़ी ना पहिर सकले. अनारकली ‘मुहब्बत की झूठी कहानी’ पर रोअत आ अपना ‘धड़कन दिल के पयाम’ देत इश्क पर कुरबान हो गइली- ‘खुदा निगहवाँ हो तुम्हारा, धड़कते दिल का पयाम ले लो. तुम्हारी दुनियाँ से जा रहे हैं, उठो हमारा सलाम ले लो।’ बाकिर उनका ‘किस्मत के खरीदार’ दगाबाज ‘सिपहिया’ पर कोई असर ना पड़ल. सलीम का एह बेवफाई आ बुजदिली के दुनिया के आशिक-माशूक कबो माफ ना करी. एक ओर त, ई भइल, दोसरा ओर गद्दी पर बइठते मेहरुन्निसा खातिर शेर अफगान के मरवा दिहलन आ साम-दाम-दंड-भेद का सहारे ओह अलचार बेवा से बियाह कइ के ओकरा के नूरजहाँ नाँव से मलका-ए-हिंद बना देलन. एक ओर अपना कान से गरीब-दुखियन के पुकार सुने खातिर महल में इंसाफ के घंटा लटकवले. त दोसरा ओर नूरजहाँ के हाथ में शासन के बागडोर थमा के शराब कबाब में पूरा डूब गइले-‘आध सेर कबाब और आध सेर शराब हो, नूरेजहाँ की सलतनत है क्या खूब हो या खराब हो।’ अइसन अनोखा बादशाह जहाँगीर के जनम 30 अगस्त, 1569 के भइल रहे.

अँगरेजी विश्व के बहुत भरल-पूरल भाषा हवे. दुनिया के करीब दू तिहाई लोग अँगरेजी बोलेला-समझेला. ब्रिटिश साम्राज्य के सूरुज डूबे का पहिले, संसार का कोना-कोना में अँगरेजी के बोलबाला रहे. अबो एकरा एगो दमगर अन्तरराष्ट्रीय भाषा होवे के गौरव हासिल बा. अँगरेजी में साहित्य-कला, ज्ञान-विज्ञान आ दर्शन-राजनीति के एक से एक निम्मन चीज बाड़ी सन. एकरा कवियन आ लेखकन के दुनिया भर में इज्जत-शोहरत मिलल बा. एह लोगन में से सतरहवीं शताब्दी में रेस्टोरेशन-काल के महान साहित्यकार, अनुवादक, समालोचक आ ‘मैकफ्लेवनो’, ‘टेम्पेस्ट’ आ ‘हिरोइक स्टैजाज’ आदि के लिखनिहार जौन डाइडन के जनम अगस्त, 1631 में भइल रहे. सब से बड़हन उपन्यासकार, कहानीकार आ कवि सर वाल्टर स्कौट 15 अगस्त, 1771 में पैदा भइलन, इनका रचना में ‘लेडी आफ दि लेक’, ‘दि टेलिमैन’, ‘दि मोनास्टरी’, ‘लाइफ आफ नेपोलियन’ आ ‘टेल्स आफ ग्रैंड फादर’ प्रसिद्ध बाड़े सन. विक्टोरिया युग के महान साहित्यकार लार्ड एल्फ्रेंड टेनिरान जे संसार के आपन ‘लोटस ईअर्स’, ‘युलिसिज’, ‘दी प्रिंसेज’, ‘इन मेमोरियल’, ‘दि चार्ज आफ लाइट बिग्रेड’ आ ‘दि होली ग्रेल’ अइसन रचना दे गइल बाड़े, 6 अगस्त, 1809 के जनमल रहले. अइसहीं प्रसिद्ध अँगरेज दार्शनिक जौन लौक के 29 अगस्त, 1632 के जनम भइल रहे.

संसार भर में प्रसिद्ध जर्मन साहित्यकार जे0 डब्लू0 भी0 गेटे 28 अगस्त 1749 के पैदा लिहले. लड़ाई में संसार के कँपा देबे वाला आ ‘इम्पौसिवुल इज ए वर्ड फाउण्ड इन दि डिक्शनरी आफ फूल्स’ के कहनिहार बहादुर पेनोलियन बोनापार्ट के जनम 15 अगस्त, 1766 के भइल रहे. आधुनिक लघु-कथा के जनक मोपासा 5 अगस्त, 1840 के पैदा लिहलन. लरिकन का पढ़ाई-लिखाई खातिर मौंटेसरी शिक्षा-पद्धति के प्रवर्तक आ महान शिक्षा-शाóी इटली के बड़हन सपूत मेरिया मौंटेसरी के 31 जगस्त, 1870 के जनम भइल. महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी आ पांडिचेरी आश्रम के अधिष्ठाता योगीराज अरविंद घोष 15 अगस्त, 1872 के एह धरा-धाम पर अइलन. हिन्दी साहित्य गगन के जगमग निछत्तर, बिहार में कई-एक गो कवि-लेखक बनवनिहार ‘मुँडमाल’, ‘भगजोगनी’ आ ‘कहानी का प्लाट’ अइसन दमगर कहानियन के लिखे वाला आचार्य शिवपूजन सहाय के अगस्त, 1893 में जनम भइल रहे.

हमरा परिवार में भी अगस्त के कवनो कम मोल नइखे. हमार बड़की बेटी ऋद्धि 2 अगस्त 1964 के जनम लेहली. अबतक हमनी चारो भाई का बीचे एको बहिन ना होखे से घर में फीकापन-सूनापन रहे ऊ बेदी पाके काफी हर तक दूर हो गइल. कुछ दिन का बाद नवम्बर, 1968 में दोसरकी बेटी ‘सिद्धि’ भी पैदा भइली. दुनों बहिनी हरसाल बड़ा प्रेम-हुलास से रक्षा-बंधन आ गोधन मनावेली. जब दुनों रक्षा-बन्धन के दिन हमरा तीनों छगन-मगन के ‘रखिया बन्हा ल भइया, सावन आइल, जीअ तू लाख बरीस हो’ गावत राखी बान्हेली त देख के हमार बहिन खातिर तरसत हिरिदा अगरा उठेला. बाकिर गोधन का दिन ओकनी का मुँह से ‘हम परदेसी ए भइआ मोटरिया के हो आस’ सुनके करेजा फाटे लागेला आ मोटिया रुमाल भींज के पोतन हो जाला. ओही घड़ी हम ‘काहे के जनमलू ए बेटी’ के परतछ मरम समुझ पाईले.

अगस्त में बड़की-बड़की घटनो घटल बाड़ी सन, जवना के इतिहास, समाज, साहित्य आ राजनीति पर खूब असर पड़ल बाटे. पनरहवीं सदी में यूरोप के बहुत बहादुर जहाजी भारत के पता लगावे खातिर जहाज ले के निकलले बाकी किन्हहूँ का सफलता ना मिलल. आखिर में कप्तान क्रिस्टोफर कोलम्बस भारत का खोज में निकलले. लेकिन उनकर जहाज भटक गइल आ ऊ अगस्त, 1492 में अमेरिका पहुँच गइलन. एकरा पहिले अमेरिका के केहू ना जानत रहे. एह से एकर नाँव ‘नई दुनिया’ पड़ल. धीरे-धीरे यूरोप के अउर-अउर लोग उहाँ जाके रहे-बसे लागल आ आज अमेरिका खुशहाली का चोटी पर पहुँचल बा. कुछ दिन के बाद ओ लोग का भारत के पता लागल आ कइएक ठो विदेशी-कम्पनी इहाँ बैपार करे आ गइली सन. अइसने कम्पनियन में एगो ब्रिटिश ईस्ट इन्डिया कम्पनी रहे, जवना के मुगल सम्राट शाहआलम नं0 2 अगस्त, 1765 में बंगाल, बिहार आ उड़ीसा के दीवानी सौंप दिहलन. साँच पूछीं त, ओही दिन से भारत में अँगरेजी राज के रास्ता खुल गइल आ करीब 300 बरिस तक हमनी अँगरेजन के गुलाम बनल रह गइनीं.

संसार में तहलका मचावे वाली फ्रेंच-क्रान्ति के मोटा-मोटी शुरुआत 4 अगस्त, 1789 के हो गइल रहे. फ्रांस के नेशनल असेम्बली 4 अगस्त 1789 के एगो डिक्री पास कइलस, जवना से उहाँ युग-युग से चलल आवत सामन्तशाही के जड़ कोड़ा-खोना गइल. पोर्तुगाल, जवन जालिम सालाजार का समय तक स्वतंत्र भारत का छाती पर कबाब में हड्डी अइसन गोआ-डमन-डिउ में जमल रहे, 20 अगस्त, 1911 के गणराज्य बनल. पहिलका विश्वयुद्ध 20 अगस्त, 1914 के शुरू भइल. महात्मा गाँधी का नेतृत्व में भारतीय असहयोग आन्दोलन अगस्त, 1920 में चलावल गइल. दोसरका विश्वयुद्ध छिड़ला पर अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट आ ब्रिटेन के प्रधानमंत्री सर विंस्टन चर्चिल 14 अगस्त, 1941 के अटलांटिक चार्टर पर हस्ताक्षर कइलन लोग.

ब्रिटिश साम्राज्यवाद से भारत का आजादी के जवन लड़ाई 1857 में बहादुशाह ‘जफर’, लक्ष्मीबाई आ कुँवर सिंह का कमानदारी में शुरू भइल ऊ 1947 से करीब एक शताब्दी तक चलल. भलहीं, समय-समय पर परिस्थिति का अनुसार एकर रूप बदल गइल, बाकी स्पिरिट में कवनो कमी ना आइल. भारतीय राजनीति में गाँधी जी के उतरला पर संघर्ष के रूप बिल्कुल अहिंसात्मक हो गइल. लेकिन उनका असहयोग आन्दोलन आ व्यक्तिगत सत्याग्रह से, जवना के श्री गणेश आचार्य विनोबा भावे कइले रहस, जालिम फिरंगी पर कवनो खास असर ना पड़ल. उल्टे जालियाँवाला बाग कांड भइल आ दमन के चक्की तेजी से चले लागल. एने देश में आजादी खातिर बैखरा समा गइल आ जनता सब कुछ कुरबान करे खातिर कम कस लिहलस. एही सब माजरा पर विचार करे आ कवनो ठोस रास्ता निकाले खातिर बम्बई में काँग्रेस-कार्य-समिति के मीटिंग होत रहे. सरकार घबड़ा गइल आ 9 अगस्त, 1942 के गाँधी जी समेट सब राष्ट्रीय नेता गिरफ्तार कर लिहल गइले. बस, समूचे देश में ओही दिन से सुप्रसिद्ध भारत छोड़ो आन्दोलन शुरू हो गइल. गिरफ्तारी का बेरा गाँधी जी ‘करो या मरो’ के संदेश दे गइले. लोग एकर अपना-अपना ढंग से मतलब लगावल आ ‘करे-मरे’ में जोश खरोस से लाग गइल. पुलिस-थाना, डाक-घर आ रेलवे स्टेशन के फूँकल-लूटल, रेलवे-टेलीफोन के लाइन उखाड़ल, टेलीफोन-टेलीग्राम के तार काटल आ अँगरेज अफसरन के मारल-मुआवल एगो आम बात हो गइल रहे. चर्चिल-एमरी-लिनलिथगो के सब हैंकड़ी बन्द हो गइल. सगरो किसिम किसिम के दमन चक्र धुँआधार चले लागल. बाकीर ‘सरफरोशी की तमन्ना’ के आगे ‘बाजु-ए-कातिल’ का जोर जुलुम के कवनो नतीजा ना निकलल.

हमार ‘सत्तू खोर’ प्रान्त भी कवनो बात में केहू से कबो कम नइखे रहल. बिहार आ पटना के लोग बड़ा जोश-खरोस का साथ आन्दोलन में कूद पड़ल आ अँगरेजन के छरपट छोड़ावे लागल. 11 अगस्त, 1942 के पटना सेक्रेटेरियट पर तिरंगा झंडा फहरावे खातिर जमा निहत्थन का भीड़ पर तत्कालीन अँगरेज डी0 एम0 मिस्टर आर्चर का हुकुम से अन्हाधुन गोली चलल. गोली से सात गो स्कूलिया लरिकन का वीरगति प्राप्त भइल. पुरनका सेक्रेटेरियट के पुरवारी फाटक का सामने के शहीद-स्मारक एही लोग का यादगारी में बनल बा- ‘वतन पै मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।’ एह सातों में दूगो भोजपुरियो नवहा रहलन. तीसरा भोजपुरिया बने के हमार साध ना पूरा हो सकल. सेक्रेटेरियट पर पर झंडा फहरावे खातिर हमरो जाए के प्रोग्राम रहे. बाकिर हमार बड़ भाई जाए ना दिहले आ खिसिया के घर में बन्द कर देलन. हम मछरी अइसन छटपटा के रह गइनीं.

ओह घड़ी हम अपना शहर के एगो गैर-सरकारी हाईस्कूल में पढ़त रहीं. कांग्रेस के कट्टर समर्थक आ गाँधी-नेहरू, पटेल-प्रसाद आ आजाद-गफ्फार के परम भक्त रहलीं. जेहल से निकल गइला पर सुभाष आ जेपी के भी भक्त बन गइनीं. अपना मासूमियत में गाँधी जी के भगवान के अवतार, चरखा के सुदर्शन-चक्र आ खादी के पीताम्बर मानीं. आन्दोलन के विरोध कइला खातिर राय-जिन्ना-जोशी के घोर देशद्रोही समझीं. खादी के कुरता पाजामा, गाँधी टोपी आ दास कम्पनी के चप्पल इहे हमार ड्रेस रहे. स्कूल के लरिका हमरा के ‘गाँधी जी’ कहसन. काफी दिन तक हम ई ड्रेस रखनीं, बाकी आजादी मिलला का बाद जब बहुत से अवांछनीय लोग ‘मुंड मँुड़ाय भये संन्यासी’ अइसन राताराती खदर पहिर के लीडराने वतन बने लगलन आ एकरा आड़ में सब करम कुकरम करे लगलन तब खादी पहिरल हमरा उचित ना बुझाइल. अब खादी त्याग-तपस्या के पोशाक ना रह सकल आ लूट-खसोट करे के पासपोर्ट बन गइल. तब हम बड़ा मायूसी का साथ आपन सब खादी के कपड़ा पेटी में बन्द कर देनी. अबो दू चार गो गाँधी टोपी बक्सा में पड़ल ओह जमाना के इयाद दिआवत रहेला. अब त पैंट, बुशशर्ट पर मोजा लागल बाटा के फूल शू ड्रेस बन गइल बा आ जाड़ा में गरम सूट बूट भी डटाइले.

आन्दोलन से हमार स्कूल भी अछूता ना रह सकल. राष्ट्रीय नेता लोग का गिरफ्तारी के खबर सुनते हमनी स्कूल छोड़ देनीं. आन्दोलनकारी संघतिया हमरा के आपन मेठ बना दिहले सन. रोज जुलूस निकाल के स्कूल-कालेज, दोकान-बाजार आ कोर्ट-कचहरी बन्द करावल हमनी के खास काम रहे. सेक्रेटेरियट जाए के प्रोग्राम पहिलहीं बन गइल. स्कूल में हम एगो फ्री-स्टूडेंट रहीं. हमार हेडमास्टर साहब, ते अब स्वर्गीय हो गइले,, बराबर धिरावस- ‘आन्दोलन में शामिल होगे, तो, फ्री-शिप तोड़ देंगे. सेक्रेटेरियट जाओगे तो रेस्टिकेट कर देंगे।’ कबो कबो डरो लागे आ मने-मने सोचीं, ‘फ्री-शिप टूट जाई, त, फीस देबे के पइसा कहाँ से आई. बाकिर सोन का बाढ़ के पानी आ नवहा के जोस कवनो रोक ना माने.’

सेक्रेटेरियट में गोली चले का दिन, एकदम भोरहीं, विहार विभूति श्री अनुग्रह नारायण सिंह अपना कदमकुआँ आवास पर तत्कालीन डी0एम0 श्री आचर का हाथे गिरफ्तार कइल गइनीं. आर्चर साहब के कार देखते चारों ओर तहलका मच गइल आ गिरफ्तारी से बचल छोट-मोट नेता लोग, जेमे फूआजी श्रीमती भगवती देवी (राजेन्द्र बाबू के बड़ बहिन) प्रमुख रहली, स्कूल कालेज के विद्यार्थी, वकील-प्रोफेसर आ आम पब्लिक काफी संख्या में उहाँ जमा हो गइले. हमहूँ अपना भइया का साथे, जे पाछे गिरफ्तार करके कुछ दिन बाँकीपुर जेल में आ फेर काफी दिन ले हजारीबाग सेन्ट्रल जेल में रखल गइले, उहाँ गइल रहीं. अनुग्रह बाबू का तैयार होखे में 5-7 मिनट लागल. एह बीच अपना खरखाह लोगन से बातचीत का दौरान श्री आर्चर का मुँह से निकल गइल-‘टुडे आई शैल आस्क टु फायर।’ ई बात हमरा भाई साहब का कान में भी गइल. ‘बाबूसाहेब’ के गिरफ्तारी का बाद भीड़ छँटला पर ऊ हमरा के लेके सीधे डेरा पर लौट अइले. भला, कवन बड़ भाई जान-सुन के भी अपना छोट भाई के गोली खाये खातिर जाये दी. हमरा लाख रोवला-पिटला पर भी ऊ हमरा के सेक्रेटेरियट जाये ना देहले. एकरा पराछित में हम तीन साँझ तक खाना ना खइनीं आ मुँह धोए तबे उठनीं, जब भइया आपन खराब-खराब कसम देबे लगलन. तब, त, हमरा उनका पर बड़ा खीस बरल, बाकी आज, जबकि ऊ दुनिया में नइखन, सब बात इयाद अइला पर आँख बरबस सावन-भादो बन जाला.

अब विश्वयुद्ध में धुरी-राष्ट्र के हार पर हार होखे लागल. हार खाके हिटलर आ मुसोनिली अंडर-ग्राउंड हो गइले. मोर्चा पर अकेले डटल जापान मित्र-राष्ट्रन का सेना के बहादुरी से मोकबिला करत रहे, बाकी कुछ दिन में उहो हार जाइत. लेकिन, अमेरिका आपन सुपरमेसी जमावे खातिर धीरज आ विवेक दुनों खो बइठल. ऊ ना आव देखलस ना ताव, संसार के पहिलका ऐटम बम, 6 अगस्त, 1945 के हिरोशिमा पर आ दोसरका ऐटम बम 9 अगस्त, 1945 के नागासाकी पर गिरा देहलस. चंगेज खाँ आ नादिर साह का कत्लेआम से भी जियादे संहार भइल आ सगरो ‘त्राहि-त्राहि’ मच गइल. अलचार होके जापान 14 अगस्त, 1945 के आत्मसमर्पण कर देलस आ दोसरका विश्वयुद्ध के अन्त हो गइल.

लड़ाई खतम भइला पर ब्रिटेन में आम चुनाव भइल आ श्री एटली का रहनुमाई में लेबर पार्टी के सरकार बनल. नया सरकार के भारत का प्रति उदार नीति रहे. एह से 1942 के गिरफ्तार सब राष्ट्रीय नेता लोग छोड़ देहल गइले आ समझौता के बातचीत चले लागल. तत्कालीन गर्वनर जनरल श्री वेवेल, जे लिनलिथगो का बदला में आइल रहलन, ‘फारगेट ऐंड फारगिव’ (भूल जाईं आ माफ करीं) के दोहाई देबे लगले. भारत में भी आम चुनाव भइल, जेमें, कांग्रेस आ मुस्लिम लीग का बहुमत मिलल. समझौता का मोताबिक कांग्रेस वायसराय का कार्य-परिषद में शामिल भइल. मुस्लिम लीग पहिले एकर बहिष्कार कइलस आ विरोध में 16 अगस्त 1946 के देश भर में प्रत्यक्ष कार्रवाई के आयोजन कइलस. प्रत्यक्ष कार्रवाई का दौरान कलकता में लाखन-लाख निर्दोष हिन्दू औरत-मरद, बूढ़-बालक आ नवहा-नवही मारल गइलन. ई कातिल घटना इतिहास में ‘सेट कलकता किलिंग्स’ का नाँव से प्रसिद्ध बा. एकरा बाद नोआखाली, टिपरा, नगरनौसा आदि जगहन में जे साम्प्रदायिक उपदरो के तूफान शुरू भइल ऊ समूचा देश के झकझोर दिहलस. वैवेल साहब वापस बोला लेहल गइले आ उनका बदला में श्री माउंटवेटेन गवर्नर-जेनरल बन के भारत अइलन.

माउन्टवेटेन साहेब के अइला पर कांग्रेस आ मुस्लिम लीग से समझौता का दिसाईं बड़ तेजी आइल. लीग का पाकिस्तान के मार्ग पर डटल रहला से साम्प्रदायिक आग फइलत जात रहे. एने कांग्रेस आ देश में आजादी खातिर बैचेनी बढ़ल जात रहे. ओने राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्थिति का चलते अंगरेजी सरकार का भारत छोड़े का मजबूरी में तेजी आवे लागल. कोई बीच के रास्ता निकालल जरूरी हो गइल. आखिर राष्ट्र-हित में कांग्रेस कुछ हेर-फेर का साथ भारत विभाजन के सवाल पर गांधीजी के इच्छा का विरूद्ध, जबकि ऊ नोआखपाली में ‘ईश्वर अल्ला तेरा नाम, सबको सन्मति दे भगवान’ का मिशन पर डटल रहले, सहमत हो गइल. एकरा बाद 14 अगस्त, 1947 के भारत माता के तीन टुकड़ा कइ के एगो नया देश पाकिस्तान के निर्माण भइल, जवना के गवर्नर जेनरल कायदे आजम मुहम्मद अली जिन्ना भइले. भारत अपना मर्जी से एक दिन बाद 15 अगस्त, 1947 के स्वाधीनता स्वीकार कइलस. स्वतंत्र भारत के गवर्नर जेनरल का रूप में कइ एक कारन से माउंटवेटेन साहेब के रख लिआइल, जे आखिरी गवर्नर जनरल भइलन. तब से हर साल 15 अगस्त के बहुत धूमधाम का साथे देश का कोना-कोना में स्वतंत्रता दिवस मनावल जाला. एह साल 1975 में 15 अगस्त के उन्तीसवाँ स्वतंत्रता दिवस मनावल गइल ह.

भारत का आजाद होते, पड़ोसी देशन में भी आजादी खातिर बैखरा समा गइल आ स्वतंत्रता के लड़ाई होखे लागल. कांग्रेस आपन 1942 के ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव ‘एशिया छोड़ो’ में बदल देलस. साम्राज्यवादियन का सामने आपन बोरिया-बिस्तर बान्हला का सिवाय कोई रास्ता ना रह गइल. धीरे-धीरे दोसरो-दोसर देश गुलामी से मुक्त होखे लगले सन. पहिले, इंडोनेशिया आजाद आ उहाँ 17 अगस्त, 1949 के गण-राज्य के घोषणा भइल. अइसहीं सिंगापुर का भी आजादी मिलल. सिंगापुर 09 अगस्त, 1965 के अपना के सर्वप्रभुता-संपन्न गणराज्य घोषित कइलस. न्यूक्लियर हथियार इन्सान खातिर कतना घातक आ नोकसानदेह बा ई बतलावे के जरूरत नइखे. एह वजह से काफी सोच-विचार आ बहस मुबाहिसा का बाद संसार के न्यूक्लियर देश अणु-परीक्षण पर रोक लगावे खातिर राजी हो गइलन. एकरा मोताबिक 05 अगस्त, 1962 के अणु परीक्षण निषेध-संधि पर न्यूक्लियर देशन के हस्ताक्षर भइल आ मानवता राहत के साँस लिहलस.

अभी तक भारत एगो तटस्थ देश रहल ह. बाकिर संसार के एगो बड़हन देश सोवियत रूस शुरुए से हमनीं का साथ सहानुभूति आ हीत मीत के भाव रखत आवता. एह देश के स्वराज्य दिआवे में रूस के बहुत लमहर हाथ रहल ह. काश्मीर से लेके गोआ तक, पाकिस्तान आक्रमण से लेके चीनी आक्रमण तक आ बंगलादेश से लेके सिक्किम तक ऊ हरमेसा भारत का नीति के डट के सर्मथन कइलस. बंगला देश का दिसाईं अमेरिका के भारत-विरोधी रवैया का चलते रूस से नगीची लगाव आ पकिया दोस्ती कइल बहुत जरूरी रहे. ओने चीन के रूस विरोधी हरकत आ अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति का वजह से रूस का भी भारत से दमगर दोस्ती कइल जरूरी बुझाइल. एह से 9 अगस्त, 1971 के भारत आ रूस का बीच बीस-वर्षीय शान्ति-मैत्री सहयोग-संधि पर हस्ताक्षर भइल आ संसार का इतिहास में एगो नया अध्याय जुटल. एह संधि के सबसे बड़ा नतीजा ई भल कि बंगलादेश का संदर्भ में पाकिस्तान से छिड़ल लड़ाई के समय अमेरिका के सातवाँ बेड़ा हिन्द महासागर में आके लाग गइल, बाकी भारत का खिलाफ एगो खरो खरकावे के ओकरा हिम्मत ना भइल. ई संधि अबो बरकरार बा आ दुनों देश के दोस्ती-हीतई रोजो-रोज गाढ़-मीठ भइल जाता.

आज संसार के सबसे खुशहाल, भरल-पूरल आ लोकतांत्रिक देश अमेरिका में कुछ दिन से बड़ सनसनीखेज घटना हो रहल बाटे. राष्ट्रपति केनेडी के हत्या भइल, आ सीनेटर केनेडी के हत्या भइल आ हाले राष्ट्रपति फोर्ड पर भी दू-दू दफे हमला हो चुकल. बाकिर सबसे ज्यादा सनसनीसेज बाटरगेट कांड रहल ह, जवना के दुनिया भर में जोर सोर से चर्चा रहुए. आखि में राष्ट्रपति रिचार्ड निक्सन का एगो महान देश के महान लोक का आगे झुके के पड़ल आ ऊ ‘अगस्त’ 1974 के सकार लिहलन कि वाटरगेट कांड में उनकर पूरा हाथ रहल ह. दुनिया के सबसे बड़हन लोकतांत्रिक देश अमेरिका के नागरिक लोग का अपना राष्ट्रपति के ई नाजायज हरकत तनिको ना सोहइल. अलचार होके राष्ट्रपति निक्सन, भरल आँख से, 09 अगस्त, 1974 के अपना पद से इस्तीफा दे दिहलन आ ओही दिन श्री जेरार्ड फोर्ड, उनका जगे पर राष्ट्रपति का पद के भार ग्रहण कइलन. विश्व भर के लोकतंत्र-पसन्द देश आ लोग एह लोकतांत्रिक पद्धति का जीत पर निहाल हो उठल. 15 अगस्त, 1974 के स्वतंत्र भारत का इतिहास में पहिला बेर बिहार का राजधानी पटना में कइएक सार्वजनिक जगहन में सरकारी समारोह का समानान्तर स्वतंत्रता दिवस पूरा जोस खरोस का साथ मनावल गइल, जहाँ अबतक के परंपरा का खिलाफ कवनो भी0आई0पी0 का बजाय जन-साधारण से रिक्सा वाला राष्ट्रीय झंडा फहरवले.

देशरत्न डा0 राजेन्द्र प्रसाद के आधुनिक भारत का इतिहास में बहुत ऊँचा स्थान बाटे. उहाँ का त्याग-तपस्या, गुण-आदर्श आ विद्या बुद्धि के एह छोट लेख में बखन कइल संभव नइखे. साँच पूछीं त, राष्ट्रपति बनवला से उहाँ के कवनो महातम ना बढ़ल, बलु राष्ट्रपतिए का पद के गरिमा बढ़ गइल. एने, हमनी में अपना महापुरुष लोग के भूलत बिसारत जाए के प्रवृत्ति बढ़ल जाता. ‘डूबल सुरुज के केहु ना पूजे, ऊगत सुरुज के सभे पूजेला’ वाला कहाउत हमनीं पर पूरा-पूरा लागू होता. राजेन बाबू के भी हमनीं करीब भूलते जात बानीं. उनका जन्म-दिन के, देश में के कहो, उनका जन्म-भूमि बिहार में भी, सार्वजनिक छुट्टी ना होखे आ कवनो दमगर समारोह ना मनावल जाय. अभी तक पटना में उहाँ के कवनो कहे लायक स्मारक नइखे बन सकल. ई कवनो निमन बात ना ह. बाकिर खुशी के बात ह कि अब बिहार सरकार के ध्यान एह तरफ जा रहल बा. 14 अगस्त, 1975 के पटना में राज भवन के सामने, जहाँ पहिले सम्राट पंचम जार्ज के मूर्ति रहे, राजेन्द्र बाबू के मूर्ति बइठावल गइल. मूर्ति के अनावरण बिहार के राज्यपाल महामहिम श्री रामचन्द धोंडिबा भंडारे जी कइनीं आ एगो बहुत लमहर कमी पूरा हो सकल. उमेद बा, आगे भी एह दिशा में कुछ कारगर कदम उठावल जाई.

बंगला देश का इतिहास में शेख मुजीबुरहमान के नाँव सोना का कलम से लिखाई. पाकिस्तानी तानाशाही का खिलाफ मुक्ति-आंदोलन उनके गतिशील रहनुमाई में शुरू भइल. आगे चल के ई आन्दोनल जुध के रूप धर लिहलस आ एगो अन्तराष्ट्रीय समस्या बन गइल. विस्तार में जाए खातिर एह लेख में ना जगह बा आ ना कवनो जरूरते. काफी जद्द-जहद, खून खराबी आ तबाही-बरबादी का बाद बंगला देश आजाद भइल आ शेख मुजीब एकर प्रधानमंत्री बनावल गइले. कुछे दिन का बाद उहाँ संसदीय शासन-प्रणाली माकूल ना बुझाइल. एह से संविधान में संशोधन क के राष्ट्रपतीय शासन-प्रणाली कायम कइल गइल आ बंग-बन्धु मुजीब राष्ट्रपति बनले. कुछ अन्दरूनी कारण से सब विरोधी पार्टियन आ अखबारन पर रोक लगा के अब शेख जी का पार्टी के एकदलुआ शासन चलत रहल ह, बाकी ‘होता है वही जो मंजूरे खुदा होता है’. 15 अगस्त, 1975 के बंगलादेश में खूनी सैनिक विद्रोह हो गइल. बंग-बन्धु बड़ा बेरहमी से, अपना परिवार के सभ लोग के साथे, मारल गइलन आ उनका जगे पर श्री खोंडकर मुस्ताक अहमद बंगलादेश के राष्ट्रपति बनले. श्री मुजीब का मृत्यु के भारत के एगो दमगर दोस्त दुनिया से उठ गइल, जवना के पूरा कइल आसान नइखे. खुशी के बात बा कि नयका सरकार भी भारत से हीतई’-मीतई बनवले रखे के एलान कइले बाटे. एही बीच 17 अगस्त, 1975 के लीबिया में चउथा बेर सैनिक विद्रोह भइल, बाकी नाकाम कर दिहल गइल.

पटना शहर चारों ओर गंगा, सोन आ पुनपुन नदी से घेराइल बाटे. एह तरे एकरा पर तीनों नदियन से बाढ़ के खतरा बराबर बनल रहेला. अगर कबो तीनों एकवट के एके बेर धावा बोले त, पटना में कयामत भइल निश्चित बा. साइत इहे बात सोच के चन्द्रगुप्त आ अशोक आपन राजधानी मौजूदा पटना के बदला पटना सीटी में रखले रहलन. हजारन बरिस पहिले भगवान बुद्ध पटना पर आग, पानी आ फूट से खतरा बतवले रहीं. तथागत के ई बचन समय-समय पर साँचे होत गइल बा, जवना के दोहरावे के कवनो जरूरत नइखे. हमरा होस में 1948 आ 1967 में पुनपुन छरिअइली आ 1971 में गंगा खिसिअइली. बाकिर ‘मीठे स्वर गावे’ वाला सोनभद्र का प्रकोप से 25 अगस्त, 1975 के जे बाढ़ आइल ऊ अभूतपूर्व आ सबसे भयंकर रहे. सोन बाबा ‘राजा भोज’ आ ‘भोजवा तेली’ केहू के ना छोड़ले. 27 अगस्त, 1975 तक पटना के तीन चौथाई आबादी आ इलाका बाढ़ का चपेट में आ गइल. इतिहास में पहिला बेर राजभवन, मुख्यमंत्री-आवास, सचिवालय, हाईकोर्ट, जी0पी0ओ0, पटना जंक्शन, टेलीफोन एक्सचेंज आदि में बाढ़ के पाँच-पाँ छव-छव फीट पानी घुसल. पाटलीपुत्र, राजेन्द्र नगर, कदमकुआं, आर0 ब्लाक, बोरिंग रोड आ बेली रोड अइसन अमीरन के इलाका, श्री कृष्णपुरी, राजबंशी नगर, शाóी नगर, किदवईपुरी आ गर्दनीबाग अइसन सफेदपोश गरीबन के इलाका अउर मन्दिरी, सालिमपुर अहरा, जक्कनपुर, मीठापुर, लोहानीपुर आ पीरमोहानी अइसन आम इलाका बाढ़ के परतच्छ शिकार भइले सन.

सिकन्दर का आक्रमण अइसन बाढ़ आइल आ चलिओ गइल, बाकी किसिम-किसिम के लोग का बीचे किसिम-किसिम के बतकही अबो सुनात बा. केहू बाढ़ के ‘मैन मेड’ कहता, केहू ‘भगवानी लीला’ कहता त, केहू अतना दिन से बिटोराइल पापन के फल बतावता. अब त, बहुते जाना जोतिसबाजी शुरू कइले बाड़न आ बहुते जाना आपन काविलियत छाँटतारे, बाकी असली मोका पर किनहूँ अपना बिल-मान से बाहर ना निकलले. आम लोग का इहे गुनावन बाटे कि बाढ़ कुछ हद तक पटना के पाप, गंदगी त जरूर धो दिहलस, बाकी एको पाप-महल के गिरा-भहरा ना सकल. एह से बहुते लोग एकरो ले जबरजस्त-जोरदार बाढ़ लेके आवे खातिर गंगा मइया के चुनरी-पियरी आ खोंसी-पाठा भाख रहल बाड़न. कुछ लोग त, अउरी आगा बढ़ के बाढ़ देवी के लहुरा माई भूकम्प देवता के गोहरा-मना रहल बाड़े, ताकि ‘गढ़-लंक’ अइसन चमकत-दमकत पाप-महल बालू के घरौना अइसन एकजोराहें से ढह-बह जा मन आ सभकर प्यारा पठना सीता मइया अइसन पाक-पवित्तर हो सके.

बड़हन देशन के खुदगरजी, धींगा-मस्ती आ गोटी बइठउअल का चलते छोट-छोट देशन में बराबर झंझट-झमेला मचल रहत बा. एह तरे छोट देशन के जनता आ शासक दुनों में केहू का चैन नइखे आ सभकर जिनगी साँसत में पड़ल रहता. कब कहाँ गृह-युद्ध, उलट-फेर आ सैनिक-विद्रोह हो जाई, कहल नइखे जा सकत. अरब-इóाइल, लंका-पोर्तुगाल, लेबनान-फिलस्तिीन आदि में झंझट लागले बा. 29 अगस्त, 1975 के लैटिन अमेरिका के एगो छोटहन देश पेरू में सैनिक विद्रोह भइल. ऊहाँ ‘कूप’ में राष्ट्रपति बन गइले आ आपन सरकार कायम कइलन.

अगस्त महीना मनहूसियो में कवनो कम नइखे आ बहुते लोग पर गाज गिरवले बा. एह महीना में जहाँ निमन-निमन लोग के जनम आ निमन-निमन घटना भइल बाड़ी सन, उहाँ कइएक लोग के मृत्यु, हत्या आ आत्महत्या भी अगस्ते में भइल बडुए. आज से करीब दू हजार बरिस पहिले मिó देश के रानी आ अपना नमाना के विश्वसुन्दरी क्लिओपेट्रा 30 अगस्त, ई0पू0 30 में जुलियस सीजर से हार खइला पर जहरइला साँप से कटवा के आत्म-हत्या कर लिहली आ एगो परम सुन्दरी के दुखदायी अन्त भइल. अंगरेजी में ‘पोयटिकल स्केचेज’, ‘ऐन आइलैंड इन दि मून’, ‘सौंग्स ऑफ इन्नोमेंट’, ‘मैरेज आम् हेवुन ऐंड हेल’ आ ‘दि बुक ऑफ युरिजन’ के रचइता, कवि, कलाकार, दार्शनिक आ स्वप्नद्रष्टा विलियम ब्लेक 12 अगस्त, 1827 के सुरधाम गइलन. हालीउड के सुप्रसिद्ध अभिनेत्री, अंगरेजी फिलिम ‘नियाग्रा’, सेवुन इयर्स इच’, ‘हालीउड आन बस्ट’, ‘बस स्टौप’ आ ‘दि मिरेक्ल’ के हिरोइन लाखन-लाख दिलदारन का हिरदा के रानी आ 18 इंच सीना-24 इंच कमर-36 इंच नितम्ब-वाली परम भावुक सुन्दरी मेरिलीन मनरो अपना 36 वां बसन्त में 5 अगस्त, 1970 के नीन आवे वाला दवाई खा के आत्म-हत्या कर लिहली आ दुनिया भर में अपना ‘फैन’ सभ पर गाज गिरा देली.

अमेरिका में हिन्दू-धर्म के झंडा ऊपर उठवनिहार स्वामी विवेकानन्द के गुरु आ देश-विदेश में रामकृष्ण मिशन आश्रम के आराध्यदेव महर्षि रामकृष्ण परमहंस जी 16 अगस्त, 1886 के अपना नश्वर शरीर के त्याग कइनीं. ‘स्वराज्य हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है’ नारा के देनिहार, श्रीमद्भगवतगीता के भाष्यकार आ राष्ट्र-पितामह लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का 1 अगस्त, 1920 के गंगा-लाभ भइल. सोवियत रूस के तानाशाह जोसेफ स्टालिन के संघतिया आ महान क्रान्तिकारी लिओन ट्राटस्की 20 अगस्त, 1940 के मेक्सिको में बड़ बेरहमी से मार देहल गइलन, जवना के खबर सुन के समूचा संसार सन्न रह गइल.

भारत में नोबुल पुरस्कार के पहिला पवनिहार, राष्ट्र-गीत ‘जन-गन-मन अधिनायक’ के रचयिता आ महात्मा गाँधी के गुरुदेव विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर के 7 अगस्त 1941 के सरगबास भइल. भारतीय राष्ट्रगीत का रूप में ‘जन-गन-मन’ के सबसे पहिले अपनावे वाला, आजाद हिन्द फौज के प्रवर्त्तक ‘जय हिंद’ आ ‘दिल्ली चलो’ नारा के देनिहार आ महान क्रांतिकारी नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के अगस्त, 1945 में एगो विमान-दुर्घटना में तथाकथित मृत्यु भइल. नेपाल के दसवाँ नरेश श्री पाँच महाराजाधिराज वीरेन्द्र विक्रम शाह देव के दादी, स्वर्गीय राजा महेन्द्र के माई आ स्वर्गीय राजा त्रिभुवन के मेहरारू रानी उषा देवी 21 अगस्त, 1975 के शांत भइली. भारत के पकिया दोस्त आ बंगलादेश के जनक शेख मुजीबुर्रहमान 15 अगस्त, 1975 के सैनिक विद्रोह में मारल गइलन.

अगस्त का मनहूस साया से संगीत संसार भी नइखे बाँचल. भारत के सुप्रसिद्ध संगीतशास्त्री आ संगीतज्ञ पùभूषण विनायक राव पटवर्द्धन 23 अगस्त 1975 के सरगबासी भइलन. आधुनिक आयरलैंड के राष्ट्रपिता, भारतीय स्वतंता आन्दोलन के पकिया हिमायती, आयरिश गणराज्य के भूतपूर्व प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति श्री ईमन डिबेलरा के 29 अगस्त, 1875 के मृत्यु भइल.

एह तरे अगस्त में बहुते छोट-बड़, भारी-हलुक आ निमन-बाउर सब तरे के घटना भइल बाड़ी सन, जवना के लेके देश, विदेश आ दुनिया में बड़ा सोर मचत रहल. अबहीं जब तक लय भा कयामत नइखे हो जात तब तक अगस्त अइबे करी आ अइसन-अइसन घटना होते रही, जवना से एह महीना के महातिम आगहूँ बढ़त जाई. अगर दुनिया का कलेंडर से अगस्त निकाल दियाव चाहे एक महीना में भइल बातन के अलगा छाँट दियाव त, संसार के इतिहास अधूरा-अधूरा रह जाई. लेकिन अइसन पागलपन केहू कबो ना करी. सृष्टि का साथे-साथे अगस्त के नाँव भी आगे बढ़त रही, एह में कवनो शको-सुबहा नइखे.

(भोजपुरी दिशा-बोध के पत्रिका पाती से साभार)

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