स्व. सत्तन के भोजपुरी कविता संग्रह “का हो ! कइसे” के विमोचन

KaHoKaise-vimochan
शबद सहारे राखिये, शबद के हाथ न पाँव.
एक शबद औषधि बने, एक शबद करे घाव.

दीनदयाल विश्वविद्यालय गोरखपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष रहल प्रो. रामदेव शुक्ल कबीरदास के लिखल एह दोहा के दोहरावत कहलन कि स्व. सत्यनारायण मिश्र सत्तन कमे लिखलन बाकिर जवन लिखलन तवन बेहतर लिखलन. ऊ पिछला मंगल का दिने गोरखपुर के जर्नलिस्ट प्रेस-क्लब के खचा-खच भरल हॉल में स्व. सत्यनारायण मिश्र सत्तन के लिखल भोजपुरी कविता संग्रह “का हो ! कइसे” के विमोचन का मौका पर आपन संबोधन देत रहनी. कहनी कि सत्तन मिश्र शब्द के धड़न चिन्हत रहलें आ उनकर लीखल कविता आगा चलि के समाज के राह देखाई.

कवि डा. आद्या प्रसाद द्विवेदी कहनी कि फड़ि डाला फुलवा रहि जाला बाँस के बाति सत्तन जी पर सोरहा आना साँच उतरेला. आजु सत्तन जी हमहन का बीच नइखन बाकिर उनुकर कविता सदियन ले उनुका के जिन्दा राखी.

प्रो. रामदरश राय कहनी कि भोजपुरी भाषा में सत्तन के योगदान भुलावल ना जा सके.

एह निम्मन आ सफल कार्यक्रम में पुरहर भीड़ अन्तिम ले रूकल रहल. हिन्दी विभागाध्यक्ष रहल प्रो.राम देव शुक्ल, मुख्य अतिथि पं. हरिराम द्विवेदी जी, संचालक रविन्द्र श्रीवास्तव जुगानी जी के साथे प्रो. राम दरश राय, प्रो. चितरंजन मिश्र, डॉ. प्रेमशीला शुक्ला मंच पर मौदूद रहीं. वक्ता लोगन में डॉ वेद प्रकाश पाण्डेय, सूर्य देव पाठक’पराग’, डॉ आद्या प्रसाद द्विवेदी, डॉ विमलेश मिश्र, नरसिंह बहादुर चंद, चन्देश्वर परवाना, अउर शहर के आ कुछ बाहरो के लोग रहलें.

कार्यक्रम के अंत में सत्तन जी के कई गो कविता पाठ के २३ मिनट के वीडियो प्रोजेक्टर पर चलल, जवन सबके नीक लगल.

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