– ओम प्रकाश सिंह
साल 1975 भा 1976 रहुवे जब पहिला बेर हमरा एगो भोजपुरी के खण्डकाव्य रमबोला के जानकारी एगो दोस्त से मिलल. ऊ हमरा के ओह काव्य के एगो अंश भेजले रहुवन जवना के हम आपन एगो पत्रिका भोजपुरिहा के पहिलका अंक में शामिल कइले रहीं. वइसे त ओह पत्रिका के जिक्र भोजपुरी प्रकाशन के सई बरीस नाम के एगो शोध किताब में आइल बा बाकिर बहुत कुछ कारण से ऊ पत्रिका आगे ना निकल पावल. बाकिर रमबोला के ऊ अंश हमरा जबानी याद हो गइल रहुवे. जबे मौका मिले ओह अंश के हम अपना यार दोस्तन के सुनावत रहीं.
बरीस बीतल. हम काॅलेज के देहरी पार करत रोजी का बाजार में आ गइनी बाकिर भोजपुरिहा के ललक आ याद पाछा ना छोड़लस. समय के फेर आ सितारन के गर्दिश का बीच बहुत उतार चढ़ाव देखत हम बलिया आ गइनी आ एकरे के आपन कर्मभूमि बना लिहनी. काम के कमी रहे से फुरसत में एगो दोस्त के इंटरनेट कैफे में बइठल करीं. ओहिजे से शुरुआत भइल रहुवे भोजपुरी के पहिलका वेबसाइट अंजोरिया के. बाद में एकर अफसोस हमेशा रहल कि ओकर नाम हम भोजपुरिहा काहे ना धइनी. खैर बात बहक जाई आ बात बहकावे के आजु ना त मौका बा ना जरूरत. एहसे लवटत बानी फेरू रमबोला पर. रहि रहि के हमरा हरेन्द्र हिमकर नाम के ओह कवि के याद आवे. नेट पर सर्च कइल करीं बाकिर कतहीं से उनकर जानकारी ना मिले कि कहाँ बाड़न, का करत बाड़न. संजोग से कई बरीस बाद अपना एगो दोस्त से संपर्क भइल. ऊ बेतिया के हउवन आ हम उनुका से निहोरा कइनी कि केहू तरह से हरेन्द्र हिमकर जी के संपर्क सूत्र खोज निकालसि. धन्यवाद ओह मित्र डा. रणजीत राय के जे हमरा के हरेन्द्र जी के जानकारी पठा दिहलन. फोन कइनी आ हरेन्द्र जी से बात हो गइल. उहाँ के लिखल कुछ कविता भोजपुरिका पर प्रकाशितो कइनी बाकिर रमबोला पूरा पढ़े के साध मने में रहि गइल. हरेन्द्रजी बतवनी कि रमबोला छपे का प्रक्रिया में बावे आ छपते ओकर एक काॅपी हमरा के भेजवा देम.
काल्हु फेरू हरेन्द्रजी के फोन आइल कि रमबोला हमरा मेल पर आवे वाला बा आ आजु सबेरे हमरा मेल पर आइयो गइल बा. एगो सिधवा साहित्यकार का तरह हरेन्द्र जी के नेट के इस्तेमाल करे ना आवे आ ना ही अपना कृति के व्यवसायिक इस्तेमाल करे. पूरा किताब हमरा लगे आ गइल बा बाकिर किताब के ना त कवर आइल बा ना ओकर संपर्क सूत्र. ओकरा के त हम मँगवा लेब बाकिर अबहीं पूरा रमबोला हम भोजपुरिका पर परोसब ना. गँवे गँवे ओकरा के प्रकाशित करब आ कोशिश करब कि ओकरा के ई-बुक का रुप में पेश क के कवि खातिर कुछ सांकेतिक राशि जमा करा सकीं. एह तरह के ई पहिला कोशिश होखी हमार. देखत बानी कि सफलता मिलत बा कि ना. तब ले पेश बा खुद हरेन्द्रजी के लिखल रमबोला के परोसत आपन कुछ पंक्ति :
अक्षर के फूल
पलना के सोहर, अॅंचरा के लोरी, अॅंगना के मंगल, दुअरा के कीर्तन, गॉंव के गमक सनाइल गीतन के रस, सबके-सब हमरा रोऑं-रोऑं में भीनल बा.
दइया, माई आ बहिन के आवाज जस के तस कान में रेंग रहल बा.
ककहरा से लेके कॉलेज तक के गुरु लोग के मान, मन का भोर ना परी.
साथी-सॅंघाती लोग के बेहवार, भाव का भुक्खड़ के पेट भरल बा.
गॉंव के धूरा से शहर के रोड़ा तक, चिकन-रूखर जे बा, जीनगी सभकर गुलाम बा.
‘फुलवारी‘ : त बड़का विद्वानन के ह, बाकि भोजपुरी-भारती का चरण में चढ़ावे ला, फूलल बिन फूलल अक्षर के फूलन के जोर-नार के जवन माला बनवले बानी अपने लोगन के अशीष पावेला अपने सभन का सोझा आपन ‘रमबोला‘ लेके खाड़ बानी.
केकरा के सॅंउपीं!
केकरा के छोड़ीं!!– हरीन्द्र ‘हिमकर‘