– सौरभ पाण्डेय
कवनो सरकार आपन लउकत अछमता के बावजूद ओइसन असहाय ना होखे, जइसन कई बेर अटलजी के अगुआई में बनल केन्द्र सरकार में भइल करे। अटलजी के सरकार से आमजन, बिसेस क के हिन्दू जन के, बनल संभावना आ सरकार के कई तरहा के बन्धन, ई दूनो चीझु एकही लग्गी के अलगा-अलगा दू छोर लउकल करे। अटलजी के नेतृत्व में बनल सरकार एह मामिला में मोदीजी के अगुआई में बनल मौजूदा सरकार ’शठे शाठ्यम् समाचरेत’ के सूत्र प काम करे वाली सरकार के सामने, सचकी कहल जाव, त दुधकट्टू अस बुझाय। दण्चण् मोदीजी के अगुआई में वर्तमान केन्द्र सरकार कबो तनिका नरम, कबो तनिका गरम ढंग से काम करें में भरोसा करत रहल बिया। बाकिर तबहूँ, मौजूदा केन्द्र सरकार से अर्बन-नक्सलियन के बिरुद्ध जइसन कडे़र कोरसिस करे के चाहत रहे ओइसन उत्जोग, कई हाली बुझाला, जे होत नइखे। बाकिर एकरो पाछा सेकुलरन, लिबरलन आ कांगरेस, कौम्युनिस्ट जइसन राजनीतिक पटियन के गुर्गन के देस के बेवस्था में बन चुकल गतेंर-गते चहुँप, धमक आ प्रशासनिक बेवस्था में इन्हनीं के उड़िस नियर मौजूदगी मूल कारन बड़ुए। गोधरा रेलवे-इस्टेसन प ठाढ़ साबरमती एक्सप्रेस के स्लीपर-कोच एस-६ में लगावल गइल आगि, जवना में उनसठ-साठ साधारन जात्री के जियते जारि के मुआ दिहल गइल, के बिरोध में सउँसे गुजरात लहक उठल रहे। 2002 साल के ओह दंगा के ऐतिहासिक, बलुक सत्तापरक भर ले ना, बेक्तीपरक तक, घोषित करे-करवावे खातिर इन्ह लिबरलन, सेकुलरन आ नक्सल-अर्बन गुट का ओर से बरिसन घुरपेंच साजिस कइल गइल। बरिसन लोअरकोट से हाईकोट, आ फेर सुप्रीमकोट ले घिंचात ई मुकदमा के निकहे सर्हियाइ के लसरावल गइल। सुप्रीमकोट लगभग सोरह बरिस बाद गुजरात दंगा के मुताल्लिक हर तरहा के आरोप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बरी क दिहलस। निहतनियन का ओर से बलात कइल गइल एह घटना के लेके अब सुप्रीमकोट के जवन फैसला आइल बा, ऊ भारत के पचास फीसदी जनता के पहिलहीं से मालूम रहे। एह फैसला के आजु घोसित भइला से निकहा पहिले, २०१४ में, देस के जनता मोदीजी के अगुआई में भाजपा के केन्द्र-सत्ता सौंप दिहलस। आ दोसरका पारी, २०१९ में, ओहू से मजगर सीट से भाजपा के केन्द्र के सत्ता मिलल! एक तरह से ई साँच के जीत बरिसन बितला पर अटल जी के पार्टी के मिलल।
सेकुलरन आ लिबरलन के नाँव प काम करत एगो खुर्चेली उतपाती जमात के पाखण्ड अपना देस के एगो सोआर्थी वर्ग के कुत्सित इच्छा के पूर्ती खातिर एगो निकहा जरिया बन गइल बा। एकनी के बिरोध में उठावल गइल कवनो कदम इन्हनीं के ईको-सिस्टम आ धमक के बिरोध में उठावल गइल कदम हो जाला। एही से मोदीजी आ उनका अगुआई में चलत केन्द्र सरकार के सभ कदम सर्हियाइ के राखे के होला। ना त, इन्हनीं के खिलाफ कइल जात कवनो उत्जोग देस के एगो सोआर्थी वर्ग के कुचक्र के कारन भड़कल भीड़ के भदेस हड़बोंग में बदलत देर ना लागी। माने, ई भारतीय बिचार के पच्छधर आ एकरा बिरोधियन के बीच एगो अझुरा वाला बैचारिक जुद्ध अस बा। ई जुद्ध आपन-आपन बिचार आ बात के रखला भर के मान में नइखे।
पाछिल तीन-सवा तीन महीना में देस केअलगा-अलगा राज्यन में कवन-कवन ना खेला भ गइल। अघाड़ी का नाँवे महाराष्ट्र में अढ़ाई बरिस से जवन ना टेढ़-बाँगुर सरकार चलत रहे, ओकरा पच्छ में कवन बिचारवान बेक्ती सकारात्मक सोच राखत रहे? कवनो ना। छल, बल, लंठई, गुंडई, हत्या, फिरौती, अधरम, कुकरम कौन अनैतिक, अतार्किक, अलबताह काम महाराष्ट्र में रोजीना भइल करे? बाकिर तबहूँ, फर्जी सेकुलरिजम आ लिबरलिजम के नाँव प देस पाखण्डियन के झाल आ गाल बजावत देखत रहल। सउँसे देस ओह युती-सरकार के हर तरी के गलथेथरई कइला के पराकाष्ठा देखत रहल। एह युती-सरकार के मुख्यमंत्री जवन पाटी, माने शिवसेना, से रहले ओह पाटी के पृष्ठभूमी आ पहिचान हिन्दू हित खातिर एगो अगुआ पाटी के रहल करे। बाकिर एह युती-सरकार में ओह पाटी के मुख्यमंत्री के अगुआई में आपन पहिचान के साफ उलट बेवहार करत लउकल। नेशनल कांगरेस पाटी के जवन मुखिया, शरद पवार, एक समै शिवसेना के तत्कालीन मुखिया, बाला साहेब, के आँखी के किरकिरी भइल करसु, बाला साहेब के पूता मुख्यमंत्री बने के फेरा में ओही शरद पवार का कोरा में बइठ गइल। ना अपना दिवंगत बाप के गरिमा, बेवहार के चिंता कइलस, ना आपन पाटी के भविष्य के फिकिर। तवना प एगो भोंभाड़ भइल मुँहें अपान-प्रान के साधक, शाब्दिक-विष्टा के उत्सर्जक, एगो छुतहर सहकर्मी के बेतुक बकबकी से जनता में मारि कुफुत भ गइल। तले अचके में ई कूल्हि के एकवटियावत महाराष्ट्र के सियासत में जवन ना खेला भइल, जे मुख्यमंत्री के गोड़ तरे जमीनवे ले ना, सूबा के राजगद्दी, आ सियासत से पाटी ले घिंचा गइल। शिवसेना के दू फार हो गइल। सूबा के सरकार गिर गइल। एह सभके पाछा कांगरेस के जवन हिनाई भइल बा, ई सभके बुझा रहल बा। बाकिर थेथर आ चलाँक बिलार के कबो लाज ना लागे। ऊ आपन आँखि बस मूँदत अपना फेर में परल रहेले।
दरअसल बात ई बा जे कांगरेस सेकुलरिजम का ओट में मुसलमान-तुष्टीकरन के निर्लज्ज खेला खेलेले। बाकिर, का एको तथाकथित सेकुलरन के, लिबलरन के, उन्हनीं ’माउथपीस’ पत्रिका आ ओह गोल के अखबारन के पत्रकारन का ओर से एह कूल्हि के खिलाफ कुछऊ बोलात, इचिको लिखात कबो लउकलल? ना ! त ईहे ‘परसेप्शन’ साधल कहाला। ईहे कहाला खुल्लमखुल्ला आपन एजेंडा चलावल। टूलकिट के एग्जेक्यूट कइल। दोसर हाल देखीं। केरल में, जहँवाँ के मुख्यमंत्रिये सोना के तस्करी में नामित बाड़े। ई देस के कवनो राज्य के पहिल सरकार होखी, जेकरा मुख्यमंत्री प, उनकर दूगो मंत्री प, मुख्यंत्री के खासमखास सखी प इस्मगलिंग के केस चलत होखे। बाकिर का कवनो सेकुलर, लिबरल, शहरी-नक्सली, कौमुनिस्ट बिचार के अखबार आ चैनल के पत्रकारन का ओर से कवनो सवालो पुछाइल? बवाल काटल त दूर के बात बा। बवाल काटे के राफेल के मामिला बा। जवना में कौनो बेजायँ ट्रांजेक्शन नइखे भइल। ई बात सुप्रिमवे कोट कहि चुकल बा। बवाल खातिर किसानन के हित में बनल कानून बा। हिजाब के बवाल बा, जवना के तथ्य में कवनो दम नइखे। ई ओह लोगन खातिर हद नइखे, जे अपना बिचार से कथित सेकुलर बाड़े, सोच से लिबरल बाड़े। त केरल राज्य के एहू केस में ओह पाला के पत्रकारन के बकार नइखे फूटत। केरल ऊ सूबा में से बा जहँवाँ कट्टर मुसलमानी धमक के बजार निकहा गरम बा। मुसलमानी धमक आ एह जमात के ई हाल बा जे बिरोध में मुँह खोलते जान के खतरा बा। बाकिर, मजाल जे वामी, कामी, सेकुलर, लिबरल, गुट आ पत्रकारन के बकारओ फूटित। सबले उप्पर, बंगाल के नाँव काँहें छाँड़ल जाव? एह राज्य के रहनि आ कारबार त अउरी गजब के बा। दू-तिहाई सीट से जीतल एगो पाटी आ ओकर मुख्यमंत्री, जवन महिला बाड़ी, जवन ना खुल्लमखुल्ला हिंसा के खेला कइली, कि मानवता त्राहि-त्राहि क उठल। ई कूल्हि केकरा बिरोध में, त ओकनी के बिरोध में जे पाटी आ मुख्यमंत्री के मंतव्य से सहमत ना रहले। ई लोकतंत्र के कवन रूप ह? बाकिर मजाल जे कथित सेकुलर, लिबरल के कीरा कटले मनइयन से भरल कोट कचहरी मीडिया पत्रकार के खँखारो निकलित। ई लोकतंत्र ना, राछछन के समाज के क्रूर बेवहार ह।
भारत के सनातन समाज एक सुरुए से हर तरी के मत-परम्परा के अपनावे आ अपना में समाहित कइ लेबे वाला बिचारन के प्रश्रय देत रहल बा। अइसना सनातनी सोच के, हिन्दू बिचार के, कमतर बतावत खिल्ली उड़ावल कवनो खतरनाक खड्जंत्र से इचिको कमतर नइखे। ई खड्जंत्र राछछी सोच आ बेवहार के ओड़े वाला, आ पच्छधर बा। सन सैंतालिस से, मने, स्वतंत्रता मिल गइला के बादे से, भारत के बहुसंख्यक जमात, सोझ हिन्दू कहल जाव, के सोच में, मर्म में, कमतरी के अहसास पगावे के अइसन खड्जंत्र सुरू भइल, जे सही कहाउ त, बहुसंख्यक समाज खातिर छाती प सील धइला लेखा हो गइल रहे। पाछिल आठ-नौ बरिस से देस के बहुसंख्यक जनता अपना छाती प धइल सील के हटाइ के जागरुकता के अंगड़ाई लेवे लागल बिया। एक समै अजोध्याजी में रामलला के मंदिर रहस्यमय सवाल अस लागल करे। आजु ओजुगा विशाल मन्दिर के निर्मान हो रहल बा। काशी के बिसनाथबाबा के आँगन आजु निकहा फइलाव लेले कवनो चमत्कार लेखा सज-सँवर के जनता खातिर खुल चुकल बा। के नइखे जानत जे एह मन्दिर के कइसे ध्वस्त कइल गइल रहे? आ उहँवाँ कइसे ग्यानवापी महजिद बनावल गइल रहे? बाकिर समाज के एगो वर्ग जबरी ग्यानवापी महजिद के आपरूपी साबित करे में लागल बा। कचहरी के हुकुम से ओह महजिद के हालिया दौरा से जवन कुछ सोझा आइल बा, ऊ पीढ़ी दर पीढ़ी जन-मानस के बीच होत चर्चवे के साँच साबित क रहल बा।
देस के बहुसंख्यक जन पीढ़ी दर पीढ़ी मन्दिर प मुँहामुँही चलल आवत बातन के जनला के बादहूँ बलाते ग्यानवापी प आपन हक नइखे बतावत। बलुक न्यायालय के घोसना के इंतजारी क रहल बा। ई काँहें? एह से, जे हिन्दू जनमानस के जर में तर्क आ नीति के महत्व दिहला के आचरन बा। ईहे जवन सनातन परम्परा के मूल ह। बाकिर आन्हर जमात आ पंथ के लोगन के आचरन कइसन बा? त, बेर-बेर हिन्दू समाज के लहान बतावल। एकर परम्परा, संस्कार, सभ पूजा पद्धती के मजाक उड़ावल। हिन्दू प्रतीक-चिन्हन प कुतर्क कइल। जबकि आजु ई साबित हो चुकल बा, आ एक तरहा से हर रोज साबित हो रहल बा, जे सनातनी भा हिन्दू पद्धती के बेवहार आ संस्कार में बैग्यानिकता के अस्तर निकहा ऊँच रहल बा। बाकिर सनातनी बिचार के खिलाफ खाद-पानी मिल रहल बा ओही सेकुलरन, लिबरलन, कौम्युनिस्टन आ शहरी नक्सलियन से, जे भारत के मूल बिचार, हिन्दू परम्परा आ समाजिक बेवहार से घिनाइले नइखन स, बलुक बेतुके खँउँझाइलो रहेलन स।
मनोदशा आ प्रवृती के हिसाब से तीन तरहा के गुन आ एकर मेल के मनई होले। ऊ तीन गुन ह, सत, रजस आ तमस। एही तीन गुनन के मेल-मिलावट से कवनो बेकती के मूल प्रवृती बनेला। कवनो समाज के अधिकांश मनई सात्विक बेवहार के आदती हो जाला, मन से नरम हो जाला। अइसनन के समाज तामसिक प्रवृती वाला लोगन से फरिका रहे लागेला। अलगा जीये, अलगा बरताव करे लागेला। कारन, जे अइसनन के सोच, बिचार, अध्ययन, बेवहार तामसिक प्रवृती के मनइयन आ जमात से ढेर-ढेर ऊँच हो जाला। मन से कतहीं ऊँच बेवहार करे में सच्छम अइसन मनई, आ अइसनन के जमात, सरीर से अबर, दूबर हो जाले। शास्त्र, तर्क आ बिचार से मजगर अइसन जमात अस्त्र-शस्त्र के प्रयोग करे में अकसरहाँ अच्छम हो जाले। तब सात्विक बिचार आ गमखोर, माने सहिष्णु, जमात के तामसिक गोल के मनइयन से बचावे खातिर, उन्हनीं से रच्छा करे आ सहज बढ़ंती खातिर राजसिक, बलवान, कड़ेर बिचार के लोगन के जरूरत होला। जे शठ संगे शठ, त उदार संगे उदार के बेवहार में सच्छम होले। बल, रोआब, सोआरथ, परिश्रम आ आपन लच्छ के लेके महासुरियाह मनइयने से तामसिक लँहेंड़न से रच्छा हो सकेला। तन से मनई, मन से जानवर राछछ लोगन से बेवहार ’काँट के काँट निकलेला’ वाला होला। ई बेवहार राजसिक प्रवृतिये के लोगन से संभव बा। अइसना लोगन के लेके श्रीमद्भाग्वद्गीता में भगवान कहलहूँ बाड़े, –
यत्तुकामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुनः।
क्रियते बहुलायासम् तद्राजसमुउदाहृतम्।। (आ० १८, श्लो०२४)
आजु हिन्दू समाज के अइसने श्लोक आ अइसने पाठ के बारंबार फेरू मन पारे के परी। आपन धर्म, आपन नीति आ सनातनी परम्परा से विरत होत जात, भा हो चुकल, समाज के आपन वांगमय का ओर बढ़े के परी। अपना मूल परम्परा के वैग्यानिकता, आ एकर बल-दम जाने-बूझे के परी। तामसिक लोग तन आ मन से राकस होले। नकारात्मक बिचार से भरल होले। राकस प्रवृती वाला मनई लोगन के राछसी उत्पात के खिलाफ कृष्ण-कन्हैया अस राजसिक दम-खम आ बिचार वाला लोगन के जरूरत होला। ’ढेर तकबऽ, त आँखि काढ़ि लेब’ के चढ़ल ताव से बरोबरी के भाव राखेवाला के जरूरत होला। भारत में आजु हर बसिष्ठ, हर बिश्वामित्र के राम-लखन के जोड़ी चाहीं। साँच बात ई बा, जे राछछ लोग मन से मूरुख ना, बलुक नकारात्मक होले। बिचार से अहंकारी होले। जे किसिम-किसिम के रूप धरे में माहिर होले। ई रक्तबीज हवें स। ना खतम होखे वाला रक्तबीज।
रक्तबीज बेर-बेर किसिम-किसिम के आपन रूप, रंग-ढंग बदलत रहेलन स। रक्तबीजन के संहार हरमेस चलत रहे वाला क्रिया होला। अबहीं के दौर में हर कौम, हर समाज, हर जाती में अपना-अपना हिसाब से रक्तबीज तत्पर बाड़न स। सत्ता कवनो तरहा के होखो, देस के राजनीत में कतना ना पाटी रक्तबीजे के रूपधारी, नामधारी लउक रहल बाड़ी स। इन्हनीं के बेवहार में ऊ पाखण्ड आ दोगलई सोझ लउकेले, जे कौ हाली ई सोच के मन अचम्भा में परि जाला जे का एह पटियन के नेता लोग फजिरे-फजिरे आपन मुँह आईना में देखतो होई? कांगरेस एहकु अलख के जगावनहार अस बीया। काँहें, जे कांगरेस के मत, एकर वाद, एक मंत्र-साधना खलसा ’सत्ता पवला’ खातिर बा। येन-केन-प्रकारेन, केन्द्रीय पकड़ त सर्वोच्च इच्छा ह, सूबहूँ-सूबे, कइसहूँ काँहें नत होखो, सत्ता भेंटा जावो। एह खातिर पड़ोसी पाकिस्तान, भा चीन संगे मुँहचूमाचुमियो से कवनो परहेज नइखे। ई अप्राकृतिक-प्रेम कौ हाली उपटि के दिठार होत रहल बा। देस आ समाजिकता से कवनो सरोकार नइखे। अरबन नक्सल कवन काँइयाँ थेथरन के नाँव ह, ई अब का कहे के बा ? अपना सोच, अपना बेवहार आ कारगुजारी से इन्हनीं के संवेदनशील लोगन के भक्क क देले बाड़न स। शिक्षा के तंत्र होखो, प्रशासनिक बेवस्था होखो, हर जगहा इन्हनीं के सोर भेंटा जाई। सबले ऊपर न्यायालयन तक में अइसन व्यवस्था गते-गते रेंगत-रेंगत पहुँच बना चुकल बिया। जेकर थुथुन कतनो कुँचाव बेर-बेर मुँह उठा के तत्पर हो जातिया। एहसे रक्तबजी तत्वन से सचेत रहल जरूरी बा।
संपर्क – एम-2/ए-17, पी0डी0ए0 कॉलोनी, नैनी,
प्रयागराज-211008, उ0प्र0
मो0 सं0-9919889911
(पाती के दिसम्बर 2022 अंक से साभार)