सिनेमा के कवनो भाषा ना होले – मनोज श्रीपति झा

पवन सिंह अभिनीत सुपर हिट फिल्म “प्यार बिना चैन कहाँ रे” के निर्देशक मनोज श्रीपति झा आजुकाल्हु बेहद सक्रिय बाड़न. उनकर आवे वाली फिलिमन, “चुन्नू बाबू सिंगापुरी”, “कोठा”, आ एगो मैथिली फिल्म जवना के अबहीं नाम नइखे धराइल, के बहुते चरचा हो रहल बा. कहल जात बा कि ई सब आम भोजपुरी फिल्मन से हट के बाड़ी सँ.

“प्यार बिना चैन कहाँ रे” के बेहतर कइला के कारण बतावत मनोज श्रीपति कहलें कि ई फिल्म साफ सुथर आ मनोरंजन से भरपूर रहे. कहानी आसानी से समुझ में आवे लायक, गीत जुबान पर चढ़ जाये लायक, आ संगीत के धुन दिल छु लेबे वाली रहे.

अपना बहुचर्चित डाकुमेन्टरी फिल्म “रक्त तिलक” का बारे में बतावत मनोज कहलें कि एह २५ मिनट के वृत चित्र में बलि प्रथा के बचपन के मानसिकता पर पड़े वाला असर देखावे के कोशिश कइल बा. एह फिल्म के एगो खासियत इ रहल कि एकर कवनो कलाकार एहसे पहिले कैमरा का सोझा ना आइल रहे. ओह बाल कलाकारन का अभिनय में सहजता बा. मनोज का मुताबिक फिल्म के प्रशंसा आ आलोचना दुनु मिलल जवना से उनुको बहुत कुछ सीखे जाने के मिलल बा.

अबले अंतर्राष्ट्रीय भा विज्ञापन फिल्म बनावत आइल मनोज श्रीपति भोजपुरी फिल्म में आवे का बारे में बतावत कहलें कि फिल्म के कवनो भाषा ना होले, ओकर अपने भाषा होले “सिनेमा”. हमनी का दर्शक लोग ओकरा के अलग अलग भाषा का खांचा में डालत रहीलें. ओहिजो हम सिनेमे में काम करत रहीं, एहिजो सिनेमे में बानीं. बाकिर एक बात से मनोज सहमत रहलें कि भोजपुरी भा मैथिली में नया करे लायक बहुत कुछ बा.

बतवलें कि ऊ नागार्जुन आ फणीश्वरनाथ रेणु के लिखल कहानियन पर फिल्म बनावे में लागल बाड़े काहे कि एह लोग के कहानी के परिवेश ग्रामीण रहल जवना के ऊ आराम से अपना सकेलें. कहलें कि एह लोग का कहानी में सिनेमा के अपार संभावना मिलेला.


(स्रोत – संजय भूषण पटियाला)

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