चेयर-चिपकेरिया

  • मुक्तेश्वर तिवारी ‘बेसुध’ (चतुरी चाचा)

नाँव सुनिके चिहुकीं, चिहाईं जनि. मलेरिया, फाइलेरिया, हिस्टीरिया, डायरिया वगैरह बेमारिये नीअर ‘चेयर-चिपकेरियो’ एगो बेमारी हवे जेवन आजु काल्हि हमरा देश में बड़ा जोर-शोर से फइललि बाटे. अउरी बेमारी आ एह बेमारी में अन्तर एतने बा कि अउरी कुल्हि बेमारी के असर देहि पर परेला आ देहिं दूबर लउके लागेले. बाकिर ई दिमागी बेमारी हवे. एमें देहि भलहीं रेंगरात रही बाकिर मन बराबर छत्तीस कोठा धउरत रहेला. एगो अन्तर अउरी ई बा कि अउरी बेमारी में बेमरिहा खटिया धइ लेला बाकिर ‘चेयर-चिपकेरिया’ के रोगी ‘चेयर’ यानी कुरुसी धइ लेला. आ ऊहो अइसन कि ऊ ओके छोड़े के नांव ना लेला. ऊ बराबर ‘चेयर’ से चिपकल रहल चाहेला. कोशिस ओकर ईहे रहेला कि अगर ओके कहीं से नट आ बल्टू मिलि जा त ऊ पेंचकस से अपना के कुरुसी में अइसन कसि के फिट कइ देउ कि ओके कुरुसी से हटावे के सवाले ना उठे. एने ओने ऊ भरिसक सहरेसो खोजे के उपाइ लगावेला कि ऊ अपना के ‘चेयर’ से अइसन चिपकाइ देउ कि ‘चेयर’ भलहीं ओकरा संगे संगे रसातल के चलि जाउ बाकिर ऊ कबहूं कुरसी से अलगा जनि होखे. ‘चेयर’ से चिपकले खातिर एह बेमारी के नांव ‘चेयर-चिपकेरिया’ पड़ल बाटे.

‘चेयर-चिपकेरिया’ के रोगी ना फेंकरेला, ना घिघिआला, ना चिचिआला, ना डेंकरेला. ना ऊ कबे कहंरेला, ना बाप माई करेला. ऊ बराबर सिंह का नीअर दहाड़त रहेला ताकि दोसरा का कगरी आवे के फरह ना परो. दोसरी बेमारी में रोगी चाहे ला संगी संहाती लोग कगरी आके इची लोर पोंछसु, ताकि किछु ढाढ़स मिलो, बाकिर एह रोग में रोगी ईहे चाहेला कि एगो चिरइयो के पूत हमरी कगरी जनि आवो. ओकर सूतत जागत बस ईहे फिकिरि रहेला कि केहू आके हमार कुरुसिया जनि हथवसि लेउ. निगिचा पास अगर केहू सगबगाये के कोशिस करेला त ऊ ओके अइसन झटहेरि देला कि ऊ ओहीजा चारू खाने चित्त होके पटाइ जाला. फेरु कबों मूंड़ी उठावे के हिम्मति ना करेला. आ एकरा बाद त ऊ टांगि पसारि के चैन के वंशी बजावेला.

अब सवाल ई उठत बा कि ई रोग केवना केवना जगहा पर हो सकेला? त महाराज, रउरा सभे नोट कर लेईं- ‘चेयर-चिपकेरिया’ के रोग अइसने स्थान आ संस्थन में फइलेला जहाँ किछु माल टाल बा. ‘ऊपर-झापर’ झटके के गुंजाइश बाटे. बन्हल बन्हावल तनखाह आ भत्ता के जानकारी त सभका रहेला. बसिया भात में खुदा मियां के केवन चिरौरी बा? ऊ तक मिलहीं के बा. असली ललक त ‘ऊपर झापर’ से बा. जेवन ‘बिलेक बिहारी जी’ का किरिपा से मिले के बा. असल में हवे त ई ‘आकाश वृत्ति’ जेवना के बनियादम का भाषा में- ‘नम्बर दू’ के आमदनी कहल जाला. साँच पूछी तक ईहे ‘ब्लैकानन्द’ हवे. एइजा बूड़ि के पानी पिये के होला. अइसन चोरी कि खुदो मियां ना जानसु. बाकिर सजग रहे के परेला. न त टेंगरा अटंकि गइला पर गाता गमि ना चलेला. बस मोटे में ईहे जानि लीं कि जहवाँ ‘ब्लैकानन्द’ होला ओही जा ‘ब्लैकानन्दी’ लोगन का ‘चेयर-चिपकेरिया’ के बेमारी होला. एमें दुइ राय नइखे.

एह बेमारी के शुरूआत ‘चुनावे’ से होले. एही से एकर रोगी ‘चुनाव’ खातिर बड़ा सजग रहेलन. ऊ बराबर ‘चुनाव’ के दबाइ के राखल चाहेलन. ऊ कबों ई ना चाहेलन कि ‘चुनाव’ सामने आवे पावो. अगर केवनों तरह ‘चुनाव’ कपारे परियो जाला त ऊ लोग केहू तरे हिस पट, हुश पट-कन्टी-कइ के आपन गोटी बइठा लेलन आ कुरुसी हथिया लेलन. चुनाव देखते एह लोगन का आँखी का आगा अन्हरिया छाइ जाले. नीनि हराम हो जाले. दुआरी दुआरी दांत चिआरत फिरेलन. लोगन के गोड़धरिया करेलन. नाकि रगरेलन, बाकिर ‘वोटर’ अइसन कठकरेजी होलन कि पसीजे के नाँव ना लेलन. ऊ तक उड़ती चिरई का हरदी लगावत चलेलन. ‘चेयर-चिपकेरिया’ का एही दौरा में ‘सेल्फ प्रेजेरियो’ के दौरा हो जाला आ रोगी अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बने लागेला. आपन बड़ाई करत देखि के लोग दिल्लगी करे लागेला. ओ लोग का का बुझाये के बा कि बेचारा रोग के मारल बा. आपन लाज शरम के ताखा पर धई के चारि गो चमचन के पाछा पाछा ले ले अपना बड़ाई के नारा लगवावत फिरत बा. अपना तारीफ के पुल बन्हवावत फिरत बा. बेचारा थगली के मुंह खोलि के पइसा पानी नीअर बहावता. वोट खातिर नोट बरिसावता. कतो अनाज, कतों कपड़ा, कतों कमरा बँटवावता. आ दू दिन खातिर दानी कर्ण के मात करता. कुल्ही का पाछा ओकर ई हे उद्देश्य रहेला कि चाहे लाख बेइज्जती भलही होखो बाकिर थेथर बनि के कुरुसी कइसहूँ हथिआइबि. कुरुसी बहके ना देइबि.

‘चेयर-चिपकेरिया’ के ई रोग राज-रोग हवे. हामां सूमां का ई रोग ना होला. ई रोग ओही का होला जे ‘चेयर’ पर बइठेला. आ कुरुसिया अइसन जेवना का हेठा अधिकार के गद्दा होला जेवना में रकमि के रूई भरल होले. अइसना कुरुसी पर बइठते ऊ कान से अइसन बहिर हो जाला कि ओके दोसरा के आवाज सुनइबे ना करेले. आंखि के जोति अइसन मद्धिम हो जाले कि दोसरा के दुख दर्द लउकबे ना करे. ऊ टाँगि से लँगड़ा आ जबान से तगड़ हो जाला. बिना सवारी के ऊ चली ना सके. ओकर गोड़ भुइयां परबे ना करे. बाकिर भाषन त अइसन भीषण देला कि सुने वाला का कान के परदा उधियाइ जाला. कुरुसी पवते ऊ अपना सात पुहुत के अजाची बना देवे का फिकिर में परि जाला. एकरा खातिर भाई-भतीजावाद, जाति-जवारवाद वगैरह अनेकन हथकण्डा अपनावेला. ऊ ईहे बनाबर सोचेला कि ओकरा ‘चेयर’ का निगिचा जेतने ओकर सगा संबंधी रहिहन ओतने ओकर चेयर अहथिर रही. बाकिर ‘चेयर छीनू’ लोग ओकरो से चल्हांक होलन. ए मियां एढ़ा त हम तोहरो ले डेढ़ा. रोगी डाढ़ि डाढ़ि चलेला त ई लोग पात पात चलेला. ई लोग ‘चेयर’ में समस्यन का केवाछु के अइसन रोंई छिरिक देलन कि बेचारा खजुहट का मारे ना त चैन से कुरुसी पर बइठिये सकेला और ना त अपना मन में ओके छोड़िये सकेला. भइ गति सांप छुछुंदर केरी- सेहे हालि होकर हो जाला.

ओइसे त ई रोग बहुत पुरान हवे. महाभारत काल में ‘दुर्योधन’ का ई रोग भइल रहे जेवना का इलाज खातिर ‘महाभारत’ के लड़ाई लड़े के परल. रामायण काल में ‘कैकेयी’ का एह रोग के शुरूआत जइसहीं भइल, भरतजी ननिअउरा से पहुँच के दवा बिरो कइ के ठीक कइ दिहलन. एसे ओकर असर घरे तक रहि गइल. देवतन के राजा इन्द्र का ‘चेयर-चिपकेरिया’ के बहुत पुराना रोग हवे. एही से ऊ बड़ा सजग रहेलन. बलि जब जग्गि कइ के इची मुंड़ी उठावल चहलन त इन्द्र भगवान कीहें तुरंते गोडे पर गिर परलन आ भगवान का बलि के ले जाके पातालपुरी में मीसा में बन्द करे के परल. राजदरबारन में ई रोग ढेर लउकत बा. औरंगजेब ‘चेयर-चिपकेरिये’ का दौरा में शाहजहां के जेहलि में बन्द कइ दिहलसि. आजु काल्हि आजादी मिलला का बाद ‘चेयर-चिपकेरिया’ के रोग किछु ढेर लउकत बा. ‘चेयर’ खातिर जेवन काटा काटी होखति बा ई कुल्ही ‘चेयर-चिपकेरिये’ के लक्षण हवे. ‘चेयर-चिपकेरिया’
के दौरा से देश में अनेकन राजनीतिक पार्टी बनि गइल बाड़ी स. ‘दलबदलेरिया’ के मरीज दलबदलू लोगन पर ‘चेयर-चिपकेरिया’ के असर हवे.

‘चेयर-चिपकेरिया’ का रोगी खातिर ‘पचपन साल आ रिटायर होखे के केवनों सवाल नइखे. एहजा त-सट्ठा तब पट्ठा-मानल जाला. भलहीं शरीर जर्जर हो गइल बा, चले फिरे के गँवे नइखे. तबों ‘चेयर’ छोड़े के मन नइखे. जबले साँस तबले आस-तेवने हालि बा. ऊहो कहाव का बा कि हम अपना खातिर ना, देश खातिर, समाज खातिर त्याग करत बानीं. हमार भारत त ऊ देश हवे जहां पचास बरिस का बाद राजा लोग आपन राज पाट युवराजन के दे के वानप्रस्थ आश्रम में चलि जात रहलन हां. ओह लोगन का ‘चेयर-चिपकेरिया’ के बेमारी ना होखति रहलि हवे. बाकिर आजु हालति ई बा कि शरीर जर्जर हो गइल बा, ना आँखि से लउकत बा ना कान से सुनाता बाकिर ‘चेयर’ से चिपकल बाड़न. ओके छोड़ल नइखन चाहत.

ई रोग खाली हमरे देश में नइखे. विदेशो में एकर बड़ा जोर बा. अमेरिका के पछिला राष्ट्रपति निक्सन ‘चेयर-चिपकेरिये’ का दौरा में ‘वाटरगेट’ के जइसन काण्ड करववले रहलन आ बार बार पूछला नकरि जासु. बाकिर ओइजा के नेता एक से एक पेहम रहलन. ओरी तर के भूत सात पुहुत के नांव जानेला. चमइनी से भला कतों पेट छीपी. बाद में कुल्ही बाति पिआजु का बोकला नीयर अलगा-अलगा छितिराइ गइल आ उनुका कुसरी छोड़ि के भागे के परल. एह माने में हमार देश अभागा बाटे. एइजा ‘चेयर-चिपकेरिया’ के रोगी त बाड़न बाकिर इलाज के बढ़िया इन्तजाम नइखे. सभे हेठा से ऊपर ले जहाँ देखीं सभे रोगिये रोगी बा. दवा के केकर करो. ऊपरा चढ़ि के देखा त सभे एके लेखा.

खैर रोग के जानकारी त हमरा कराई देवे के बा. ‘चेयर-चिपकेरियन कीटाणु’ दू तरह के होलन. ‘प्लस’ आ ‘माइनस’. जेकरा देहि में ‘प्लस’ ‘चेयर-चिपकेरियन’ कीटाणु होलन ऊ बराबर ‘चेयर’ से चिपकल रहेला आ ओके कबो छोड़ल ना चाहेला. जेकरा में ‘माइनस चेयर चिपकेरियन’ कीटाणु होलन ऊ ‘चेयर’ पर बराबर ‘चपेट’ कइल चाहेला. एकरा खातिर ऊ अपना एड़ी के पसेना चोटी ले ले जाला. नारा लगावेला, हड़ताल करावेला, अनशन करेला, आन्दोलन करावे ला. देवराज इन्द्र में ‘प्लस चेयर चिपकेरियन’ कीटाणु रहलन स. एसे ऊ कबो ‘चेयर’ ना छोड़सु. एही खातिर लोग ‘माइनस चेयर-चिपकेरियन’ कीटाणु वाला बलि के उकसावल. ऊ बेचारा पानी का नीअर पइसा बहवाइ के निनानबे गो जग्य करवलसि. प्लस आ माइनस कीटाणु में लड़ाई भइल आ प्लस चेयर-चिपकेरियन कीटाणु जीति गइलन स. इन्द्र अपना गद्दी पर बरकरार हो गइलन.

अउरी रोगन में रोग के असर खाली रोगी का देहिये पर होला बाकिर ‘चेयर-चिपकेरिया’ के असर रोगी का देहि पर त रहबे करेला, साथे साथे देश आ समाजो पर एकर कम असर ना पड़ेला. जेवना संस्था भा महकमा का मालिक में ‘चेयर-चिपकेरिया’ के असर हो जाई ऊ संस्था आ महकमा भ्रष्टाचार के अड्डा हो जाला. सभे अपना मन के हो जाला. केहू तीन घाट त केहू मीर घाट रहेला. केहू केहू से सांस तक ना लेला. सभका चेयर से चिपकल रहे के रहेला. मतलब खातिर त गदहा के ‘बाबू’ कहल जाला. ई त सब आदमी के संतान ठहरल.

अब एह रोग से बचे के उपाइ सुनीं. ‘चेयर-चिपकेरिया’ से बचे खातिर ‘ब्लैक बिहारी’ जी का मंदिर से फइलवें रहे के चाहीं. ‘ऊपर झापर’ के आसरा ना करे के चाहीं. नाहीं त रोग का हो गइला पर एकर इलाज बड़ा कठिन हो जाला. जल्दी काबू में आवे वाला ई रोग ना हवे. खाली ‘नो कान्फिडेन्सलीने’ (अविश्वास) एगो अइसन सुई बा जेवना के दे दिहला पर रोग किछु हद्द तक दबावल जा सकेला. ना त एकर इलाज ना एलोपैथी में बा ना होमियोपैथी में ना आयुर्वेदि में ना यूनानी में. ‘ढेलोपैथी’ में ‘घघेलियावलीन’ भा ‘गरदनियावलीन’ दू गो टेबुलेट जरूर निकसलि बाड़ी स. दू नो दू कम्पनी के तेयारी हवी स ओइसे असर दूनों के एक हीं तरह होला. इस्तेमाल के तरीका अलगा अलगा बा. ‘घघेलियावलीन’ आगा हाथ दे के दिहल जाला एमें कुरुसियों के टूटे के डर रहेला. बाकिर ‘गरदनियावलीन’ में हाथ पाछा गरदन पर रहेला. एसे कुरसी पर खतरा ना रहेला. मोका मोका से दूनों ‘टेबुलेट’ के इस्तेमाल कइल जा सकेला.

हमरा देश में 95 फीसदी लोगन का ई रोग हो गइल बा. एतना विस्तार से हमरा बतलवला के मतलब ईहे बा कि सब आत्मचिन्तन करो आ देखो कि ओकरा में त ‘चेयर-चिपकेरिया’ के रोग नइखे नू भइल. अगर भइल होखे त तुरन्ते ओकर इलाज करावे के चाहीं. एमें राउर भला बा, देश के भला बा, समाज के भला बा. बेकारी एसे मिटी, भ्रष्टाचार मिटी, भाई भतीजावाद के अन्त होई आ बीस सूत्री आर्थिक कार्यक्रम लागू करे में सहूलियत होई.

(भोजपुरी दिशा-बोध के पत्रिका पाती से साभार) http://bhojpuripaati.com

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